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» » » मोहम्मद रफी के जनाजे में पहुंचे थे 10 लाख लोग:बेटों से कहा था, मुझसे बड़े सिंगर बन पाओ तो ही फिल्म इंडस्ट्री में आना

फिल्मी दुनिया में कई कलाकार ऐसे रहे हैं जो अपनी कला के जरिए हर दिल में बसे। ऐसे ही कलाकारों में एक नाम मोहम्मद रफी का भी है। मोहम्मद रफी की आवाज का जादू ही कुछ ऐसा था कि आज भी उनके गाने कभी पुराने नहीं लगते। उन्होंने अपने करियर में करीब 28,000 गाने गाए। रफी साहब ने दो शादियां कीं जिनसे उनके सात बच्चे हुए। इनमें 4 बेटे और 3 बेटियां हैं। सुरों के इस फनकार ने 55 साल की उम्र में 31 जुलाई 1980 को दुनिया को अलविदा कह दिया था। रफी साहब की 44वीं पुण्यतिथि पर दैनिक भास्कर ने उनके बेटे शाहिद रफी और प्लेबैक सिंगर उदित नारायण से बात की। शाहिद ने जहां रफी साहब की जिंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें हमसे शेयर कीं। वहीं उदित नारायण ने बताया कि उन्हें अपनी पहली ही फिल्म में रफी साहब के साथ गाने का मौका मिला था। उदित ने ये भी कहा कि रफी साहब से पहली मुलाकात वो कभी नहीं भूल सकते हैं। न ही उस दिन को कभी भूल पाएंगे जब रफी साहब इस दुनिया से रुखसत हुए थे। उस दिन 10 लाख लोग उनके जनाजे में शामिल हुए थे। बेहद डाउन टू अर्थ थे अब्बा शाहिद रफी ने मोहम्मद रफी को याद करते हुए कहा, 'उनके बारे में क्या कहूं, वो बेहद विनम्र इंसान थे। बेहद डाउन टू अर्थ भी थे। घर में हमने कभी उनको इस नजरिए से नहीं देखा कि वो कितनी बड़ी शख्सियत थे, हमारे लिए वो सिर्फ हमारे अब्बा थे। सच बताऊं तो जब उनका निधन हुआ तो हमें इस बात का अंदाजा हुआ कि वो बहुत बड़ी शख्सियत थे। लोग उनको पूजते थे। लोग हमसे कहते थे कि वो भगवान थे, उनके गले में सरस्वती थीं।' घर और कारों के शौकीन थे 'अब्बा को गाड़ी और घर का बेहद शौक था। उन्हें ऐसी-ऐसी कारों का शौक था जो उस जमाने में इंडिया में लॉन्च तक नहीं हुई थीं। 1979 में उन्होंने विदेश में होंडा अकॉर्ड कार बुक की थी जो कि जून 1980 में इंडिया पहुंची थी। इस कार को शिप से इंडिया लाया गया था और कस्टम वाले भी कंफ्यूज हो गए थे कि इस पर ड्यूटी क्या लगाएं क्योंकि तब होंडा बाइक ही बनाता था और कार रफी साहब की स्पेशल डिमांड पर मंगवाई गई थी।' हर कॉन्सर्ट में गाते थे ये तीन गाने 'रफी साहब ने कभी इस बात का जिक्र तो नहीं किया कि उन्हें अपने कौन से गाने सबसे ज्यादा पसंद थे लेकिन जो मैं जानता हूं, उसके मुताबिक वो तीन गाने हर कॉन्सर्ट में जरुर गाते थे जिससे मुझे हमेशा लगता था कि वो तीन गाने ही उनके सबसे पसंदीदा थे। मेरे हिसाब से फिल्म 'बैजू बावरा' का 'ओ दुनिया के रखवाले', फिल्म 'दुलारी' का 'सुहानी रात ढल चुकी' और फिल्म 'कोहिनूर' का 'मधुबन में राधिका नाचे रे' उनके फेवरेट गाने थे। भले ही फरमाइश आए या न आए, उनकी हर परफॉर्मेंस में ये तीन गाने मैंने हमेशा उन्हें गाते हुए सुना था। उनके तो हर गाने अमर हैं।' पार्टियों से दूर भागते थे 'अब्बा से मिलने के लिए घर पर कई लोग आते थे लेकिन हमें वो कभी किसी से मिलने नहीं देते थे। वो हमें फिल्म इंडस्ट्री से दूर रखते थे और नहीं चाहते थे कि हम फिल्म इंडस्ट्री में घुसें। वो खुद भी काफी प्राइवेट इंसान थे। वो फैमिली ओरिएंटेड थे और काम के अलावा अपना सारा समय परिवार को देना ही पसंद करते थे। वो फैमिली मैन थे और उन्हें सोशल होना बिलकुल पसंद नहीं था। किसी की शादी या कोई फंक्शन में भी जाते थे तो वहां पहुंचकर गुलदस्ता या तोहफा देते थे और तुरंत वहां से निकल आते थे। उन्हें पार्टी में जाना बिलकुल पसंद नहीं था। वो ज्यादा बात भी नहीं करते थे। वीकेंड पर हम लोनावला वाले बंगले पर चले जाते थे। अब्बा काम में कितने भी बिजी रहें लेकिन फिर भी वे एक दिन का वक्त हमारे साथ बिताने के लिए जरुर आते थे।' जब उदित नारायण ने किया मोहम्मद रफी को इम्प्रेस रफी साहब के बारे में बात करते हुए उदित नारायण बोले, 'मैं खुद को उन चंद खुशकिस्मत गायकों में से एक मानता हूं, जिन्हें रफी साहब के साथ गाने का मौका मिला। मैं मुंबई में 1978 में आया था। उसके 1 साल बाद मुझे फिल्म ‘19-20’ में रफी साहब के साथ गाने का मौका मिला। उस गाने के बोल थे ‘मिल गया मिल गया’। उस गाने की रिकॉर्डिंग और रिहर्सल कुल 2 घंटे तक फेमस स्टूडियो में हुई थी। मैं उस लम्हे को कभी नहीं भूल सकता जब उस गाने से पहले मेरी रफी साहब से मुलाकात हुई थी। वह अपनी फिएट कार से उतरे। उन्होंने सफारी सूट पहन रखा था और चेहरे पर मुस्कान थी। उन्हें देखते ही मैं तो उनके चरणों पर गिर गया। उन्होंने गले लगाते हुए कहा, ‘घबराओ मत बरखुरदार। मैं भी कभी कोरस में गाया करता था।’ उनके अल्फाजों ने 2 मिनट में मेरी घबराहट दूर कर दी। वह इतनी बड़ी शख्सियत थे, मगर उनमें अहंकार नहीं था। म्यूजिक डायरेक्टर राजेश रोशन ने सेफ्टी के लिए वह गाना एक बार और रिकॉर्ड करवाया। रफी साहब ने मना नहीं किया। उन्होंने फिर से रिकॉर्डिंग की। मैंने भी की। रफी साहब को मेरा काम अच्छा लगा। उन्होंने कहा, ‘तुम गाते अच्छा हो। क्या गिटार बजाना सीख रहे हो? सीख जाओ अगर स्टेज पर तुमने गिटार के साथ गाना गाया तो महफिल लूट सकते हो।’

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