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Life-sized Dionysus mystery cult frescoes found in Pompeii

A large fresco with scenes of the secret initiation rites of the cult of Dionysus has been discovered in a villa in the Regio IX neighborhood of Pompeii. The fresco is a megalography, a Greek term meaning “large painting” used to describe paintings with large figures that cover a large space. The figures are almost life-sized and cover three walls of a banquet room. The frescoes were painted in the Second Pompeian Style and date to between 40 and 30 B.C.

Painted against a vivid red background, the frescoes depicts the ritual procession of Dionysus, the god of wine and ecstasy. Bacchantes, the god’s young female devotees, are shown as dancers and as hunters, carrying a slaughtered goat on their shoulders and a sword and the entrails of a sacrificed animal in their hands. Also in the procession are satyrs playing the double flute and pouring a wine libation over his shoulders. In the center of the procession is an elegantly dressed woman with Silenus (the drunkest and oldest of Dionysus’ adherents) holding a torch. She is being initiated into the mysteries of the Dionysus cult. Unusually, all of the figures are shown on pedestals, even though they are captured in dynamic movement.

The only other megalography of this type, period and scale known is the one in House of the Mysteries, a villa just outside the gates of Pompeii. However, its depiction of the Dionysus mysteries does not contain any imagery of the hunt. The newly-discovered fresco not only features bacchante huntresses, but also a smaller border frieze above them that features all kinds of animals, alive and dead. The border fresco depicts a fawn, wild boar, birds, fish and shellfish.

The domus has been named the House of the Thiasos after Dionysus’ retinue of revelers in ecstasy. It will be open to the public in limited numbers as part of the visits allowed to the Regio IX excavation and stabilization program.

Fawn and shellfish from border. Photo courtesy the Archaeological Park of Pompeii.“In 100 years’ time, today will be remembered as historic because the discovery we are presenting is historic,” said Italian Culture Minister Alessandro Giuli, who attended the unveiling of the frescoes.

“Alongside the Villa of the Mysteries, this fresco forms an unparalleled testament to the lesser-known aspects of ancient Mediterranean life.”



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डॉक्टरी की ताकि फिल्मों में आ सकें:डेडबॉडी तक का रोल किया; कार बेचकर साइकिल पर आए; अब छावा के कवि कलश बन छाए विनीत

विनीत कुमार एक ऐसा नाम जिसने सही मायनों में संघर्ष का मतलब बताया। आज-कल की दुनिया में हम एक-दो साल स्ट्रगल करके थक जाते हैं और खुद को दुखिया साबित कर देते हैं। विनीत कुमार 2000 के आस-पास मुंबई आए थे। 25 साल हो गए। इस दौरान काफी फिल्मों मेंं भी दिखे, लेकिन असल पहचान अब जाकर मिली है। भारत जैसे देश में डॉक्टरी की पढ़ाई करना अपने आप में एक युद्ध से कम नहीं होता। विनीत ने डॉक्टरी की पढ़ाई सिर्फ इसलिए की, ताकि रात में मरीज देख सकें और दिन में फिल्मों के लिए ऑडिशन दे सकें। जो लोग सिनेमा के शौकीन होंगे, उन्होंने इन्हें गैंग्स ऑफ वासेपुर और मुक्काबाज जैसी फिल्मों में देखा होगा। इन दोनों फिल्मों में इनके काम को जरूर सराहा गया, लेकिन प्रसिद्धि नहीं मिली। 14 फरवरी को रिलीज हुई फिल्म छावा ने शायद विनीत को वो पहचान दिला दी है, जिसके वे हमेशा से हकदार थे। इस फिल्म में उन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज के दोस्त कवि कलश का किरदार निभाया है। आज सक्सेस स्टोरी में कहानी एक्टर विनीत कुमार की.. जन्म बनारस में, पिता गणितज्ञ मेरा जन्म बनारस मे हुआ था। मेरे पिताजी डॉ. शिवराम सिंह मैथ के बहुत बड़े जानकार हैं। उन्हें बनारस के यूपी कॉलेज (उदय प्रताप कॉलेज) में रहने के लिए घर मिला हुआ था। इस तरह जीवन के शुरुआती 20 साल मेरे वहीं बीते। कॉलेज 100 एकड़ में फैला था। घर के सामने ही बड़ा सा मैदान था, जहां मैं खेला करता था। उस मैदान में इंटरनेशनल लेवल के प्लेयर्स प्रैक्टिस करने आते थे। मैं उन्हें देखकर इंस्पायर होता था। बास्केटबॉल में नेशनल खेल चुके, हाइट की वजह से छोड़ा मेरे घर पर सभी लोग एजुकेशन डिपार्टमेंट में हैं। घर पर पूरा पढ़ाई-लिखाई वाला माहौल था। हालांकि, मेरा इसमें मन नहीं लगता था। बास्केटबॉल खूब खेलता था। सब जूनियर और जूनियर लेवल पर नेशनल भी खेल चुका हूं। आगे चलकर एहसास हुआ कि यह खेल मेरे लिए नहीं है। इसके लिए लंबी हाइट होनी चाहिए थी। मैं भले ही 5 फीट 10 इंच था, लेकिन यह काफी नहीं था। बास्केटबॉल के लिए 6 फीट से ज्यादा हाइट सूटेबल होती है। घर वाले मुंबई भेजने के खिलाफ थे यूपी कॉलेज में काफी सारे कल्चरल इवेंट्स होते थे। मैं उसमें पार्टिसिपेट करता था। सरस्वती पूजा वाले दिन हर साल बड़े प्रोजेक्टर पर फिल्में दिखाते थे। मैं फिल्में देखकर खुद को उनसे रिलेट करता था। धीरे-धीरे मेरे अंदर एक्टिंग का रुझान पैदा हो गया। अब मेरी नजरों के सामने मुंबई की दुनिया दिखने लगी। घर वालों को एक-दो बार बताया भी, उन्होंने कोई खास रिस्पॉन्स नहीं दिया। वे मेरे मुंबई जाने के बिल्कुल खिलाफ थे। डॉक्टरी चुनी ताकि एक्टिंग के लिए समय निकाल सकें मैं समझ गया कि घरवाले तो कभी मुंबई भेजेंगे नहीं और न ही एक्टिंग की इजाजत देंगे। मैंने फिर थोड़ा हटकर सोचा। मैंने सोचा कि डॉक्टरी की पढ़ाई कर लेता हूं। डॉक्टर बन गया तो रात में मरीज देखूंगा और दिन में एक्टिंग के लिए मौके तलाशूंगा। यही सोच कर मैंने CPMT का पेपर दिया और निकाल भी लिया। हालांकि, उससे पहले मैंने BHU (बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी) से कल्चरल ऑनर्स में एडमिशन लिया था। CPMT निकलने के बाद मैंने पुराना कोर्स छोड़ दिया। हरिद्वार में एडमिशन लिया ताकि हर हफ्ते दिल्ली जा सकें मैंने हरिद्वार के एक सरकारी कॉलेज से BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) में दाखिला ले लिया। मुझे बनारस और लखनऊ में कॉलेज मिल रहे थे, लेकिन मैं ऐसे जगह रहना चाहता था, जहां से दिल्ली नजदीक हो। मैं हफ्ते में एक दिन हरिद्वार से दिल्ली ट्रैवल करता था। दिल्ली इसलिए क्योंकि वहां NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) था। मैं हर हफ्ते NSD जाकर प्ले और ड्रामे देखता था। कलाकारों को अभिनय करते देखकर सीखता था। चुनौती थी तो यूनिवर्सिटी टॉप किया BAMS कम्प्लीट होने वाला था। अब मुझे कैसे भी करके मुंबई जाना था, लेकिन वहां रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी। किसी सीनियर ने कहा कि तुम दूसरे स्टेट से पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर सकते हो, अगर ग्रेजुएशन में ज्यादा नंबर ला दो। मैंने मुंबई के कॉलेजेस सर्च किए। मैंने सोचा कि अगर वहां एडमिशन हो गया तो पढ़ाई भी करता रहूंगा और साथ में एक्टिंग के लिए भी ट्राई करता रहूंगा। इसी सोच के साथ मैंने यूनिवर्सिटी टॉप कर दिया। हालांकि, मुंबई में नहीं नागपुर के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला। चलो मुंबई नहीं तो नागपुर ही सही। मैंने भले ही नागपुर में एडमिशन ले लिया, लेकिन रहता मुंबई में था। दरअसल, मुंबई के पोद्दार मेडिकल कॉलेज में मेरे कुछ सीनियर थे। मैं उन्हीं के साथ चोरी-छिपे हॉस्टल में रहता था। इस तरह चोरी छिपे 4-5 साल तक मुंबई में ही रहा। इसी टाइम पीरियड में अपने लिए मौके तलाशता था। इसी दौरान मेरी मुलाकात डायरेक्टर महेश मांजरेकर से हुई। 2002 की उनकी फिल्म ‘पिता’ में मुझे छोटा सा रोल मिला, लेकिन पहचान नहीं मिली। डेडबॉडी तक का रोल किया महेश मांजरेकर सर ने मुझे अपने साथ रख लिया। मैं उनकी फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर बना। वहां से बहुत सारी चीजें सीखने को मिलती थी। इस दौरान मैं बस यही कोशिश करता था कि कैसे भी करके बस लोगों की नजरों में आ जाऊं। आप यकीन नहीं करेंगे कि मैंने एक फिल्म में डेड बॉडी तक का रोल किया है। एक फिल्म में सुनील शेट्टी का बॉडी डबल भी बना। क्राइम पेट्रोल जैसे शोज में छोटे-मोटे रोल भी किए। मेडिकल कॉलेज में चोरी पकड़ी गई मैं फिल्मों में काम करने के साथ ही पढ़ाई भी पूरी कर रहा था। महीने के 20 दिन अगर मुंबई रहता तो बाकी 10 दिन नागपुर जाकर सारा कोर्स कम्प्लीट करता था। मेडिकल में कितना पढ़ना पड़ता है, आपको पता ही है। अंतिम साल में मेरी चोरी पकड़ी गई। कॉलेज के डीन को पता चल गया कि मैं क्लासेस कम अटेंड करता हूं, साथ ही दूसरा काम भी करता हूं। उन्होंने मेरा एडमिट कार्ड रोक दिया। उसके बाद मैं पूरे एक साल कहीं नहीं गया, सिर्फ नागपुर रहा। 100% अटेंडेंस मेंटेन किया। एक दिन डीन ने बुलाकर पूछा कि आखिर तुम करना क्या चाहते हो? मैंने कहा कि MD (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) की डिग्री लेना चाहता हूं और पापा को दिखाना चाहता हूं। मुझे इस डिग्री में कोई इंटरेस्ट नहीं है, मैं तो बस अपने पिता की इच्छापूर्ति कर रहा हूं। डिग्री मिली तो उनके हाथ पर रख दूंगा और मुंबई निकल जाऊंगा। मैंने उनसे वादा किया था कि पढ़ाई नहीं छोडूंगा चाहे जो हो जाए। मेरी बात सुनते ही डीन ने एडमिट कार्ड निकाला और दे दिया। उन्होंने कहा कि भाई, तुम अलग ही मिट्टी के बने हो। मुझे तो तुम्हें पिछले साल ही रिलीज कर देना चाहिए था। इस तरह मैंने MD की डिग्री पूरी की और पापा के सामने जाकर रखा और वापस मुंबई निकल गया। भोजपुरी सीरियल्स में भी काम किया मुंबई आने पर मैंने कुछ टीवी सीरियल्स में काम किए। वहां से जो पैसे आते थे, उसी से खर्चे निकालता था। भोजपुरी सीरियल्स में भी बतौर लीड काम किया। जहां जैसा मौका मिला, काम करता गया। हालांकि, मुझे फिल्मों में एक्टर के तौर पर काम करना था, उन्हीं की तलाश में था, जो कि मिल नहीं रहे थे। महेश भट्ट ने कहा- तुम्हारे अंदर इरफान खान की झलक इसी बीच कुछ समय के लिए बनारस चला गया था। मेरे भाई ने बताया कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में महेश भट्ट साहब आने वाले हैं। मेरे भाई ने जुगाड़ लगाया और मेरी और महेश भट्ट साहब की मीटिंग फिक्स कराई। मैं दिन भर उनके साथ रहा। भट्ट साहब ने तब कहा कि विनीत मुझे तुम्हारे अंदर इरफान खान जैसा रॉ टैलैंट दिखता है। तुम्हारे अंदर कुछ भी बनावटी नहीं है। उन्होंने कहा कि मुंबई आना तब जरूर मिलना। फिल्म फेस्टिवल, बर्गर की शॉप और अनुराग कश्यप से मीटिंग 2009 में मेरी मुलाकात अनुराग कश्यप से हुई। हम लोग एक फिल्म फेस्टिवल में मिले। वहां फिल्मों की स्क्रीनिंग चल रही थी। अनुराग सर बैठने के लिए सीट ढूंढ रहे थे। मैंने उन्हें अपनी सीट देनी चाही। उन्होंने मना कर दिया। मैंने सोचा कि यार मौका हाथ से निकल गया। बाद में वे कहीं गायब हो गए। फिर मैं कुछ खाने के लिए बाहर निकला। वहां बर्गर की शॉप थी। अनुराग सर भी लाइन में आकर लग गए। मैंने उनसे कहा कि सर आप बैठिए, मैं आपके लिए ऑर्डर कर देता हूं। मैंने अपने और उनके लिए फूड लिए। उन्होंने कहा कि आओ, साथ में बैठकर खाते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या नाम है, क्या करते हो, कहां से हो? मैंने बताया कि बनारस से हूं। वे थोड़े उत्सुक हो उठे। उन्होंने पूछा कि कितने साल से मुंबई में हो? मैंने बताया कि 9-10 साल तो हो ही गए होंगे। वे चौंक गए। उन्होंने कहा कि इतने साल से मुंबई में हो तो कभी मिले क्यों नहीं? मेरे पास सच में उन्हें कुछ दिखाने को नहीं था। जो भी था, वो काफी नहीं था। फिर भी मैंने अब तक जो भी काम किया था, वो सारी चीजें एक CD में कैद थीं, मेरे भाई ने वह CD अनुराग सर को दिखाई। अनुराग सर को मेरी एक्टिंग प्रभावित कर गई। यह वही समय था जब गैंग्स ऑफ वासेपुर की कास्टिंग चल रही थी। अनुराग सर ने मुझे फिल्म के लिए कास्ट कर लिया। फिल्म में मेरा काफी यंग रोल था। इसके लिए मैंने 17 किलो वजन कम किया था। अनुराग कश्यप से बोले- सिर्फ सहबला नहीं, दूल्हा भी बनाइए एक दिन मैंने अनुराग सर से कहा कि कब तक मुझे सहबला बनाते रहेंगे, कभी दूल्हा भी तो बनाइए। उन्होंने कहा कि तुझे जितना निचोड़ना था, निचोड़ लिया है। मैं फिर थोड़ा संकोच में आ गया, अब कैसे काम मांगूं। तब मैंने फिल्म मुक्काबाज की कहानी लिखी। वह कहानी लेकर मैं कई फिल्म मेकर्स के पास गया। कुछ लोगों को कहानी काफी पसंद आई। वे मुझे स्टोरी के बदले 1 करोड़ तक दे रहे थे, लेकिन उनकी शर्त थी कि फिल्म में एक्टर कोई और रहेगा। मैं इसके लिए कतई तैयार नहीं था। मैं खुद हीरो बनना चाहता था। जब कहीं बात नहीं बनी, तब मैं फैंटम फिल्म (प्रोडक्शन कंपनी) के पास पहुंचा। अनुराग सर इस कंपनी से एसोसिएट थे। मैं चूंकि उन्हीं के जरिए फैंटम तक पहुंचा था, तो सोचा कि एक बार उन्हें भी कहानी सुना दूं। कहानी सुनते ही वे खुद ही फिल्म डायरेक्ट करने को तैयार हो गए। उन्होंने स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव किए और मुझे बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेने की हिदायत दी। कार सहित सब कुछ बेचकर पटियाला पहुंचे मैं मुंबई से सब कुछ बेचबाच कर ट्रेनिंग के लिए पटियाला निकल गया। मैंने अपनी कार भी बेच दी। मेरे पास 2.50 लाख रुपए इकट्ठा हो गए थे। ट्रेनिंग के दौरान किसी को नहीं बताया कि मैं एक्टर हूं। ट्रेनिंग के दौरान मुझे काफी मुक्के पड़े। बहुत खून बहा। काफी इंजरी हुई। ट्रेनर ने यहां तक कह दिया कि अगर रुके नहीं तो तुम्हारी जान भी जा सकती है। बॉक्सिंग ट्रेनिंग के दौरान अजूबा हुआ ट्रेनिंग के दौरान एक दिलचस्प वाकया हुआ। बॉक्सिंग के लिए न्यूरो मस्कुलर रिफ्लेक्सेस का सही तरीके से काम करना बहुत जरूरी होता है। साथ ही यह एक समय तक ही डेवलप होता है। 6 महीने तक लगातार ट्रेनिंग के दौरान एक अजूबा हुआ। मेरी आंखें झपकनी बंद हो गईं। मैं बहुत आराम से सामने वाले बॉक्सर का मूव देख पा रहा था। मेरे ट्रेनर ने कहा कि विनीत मैंने अपनी लाइफ में ऐसा अजूबा बस एक बार देखा था। आज दूसरी बार देख लिया है। मुक्काबाज के बाद भी ग्रोथ नहीं मिली, कार से सीधे साइकिल पर आए मुक्काबाज को लोगों ने प्यार बहुत दिया, लेकिन मुझे ग्रोथ नहीं मिल पाई। इस फिल्म के लिए मैंने ऑलरेडी अपना सब कुछ लगा दिया था। बिल वगैरह भरने के लिए भी पैसे नहीं थे। कार भी बेच दी थी। अब साइकिल से चलने की नौबत आ गई थी। उस वक्त यही सोच थी कि जो काम मिला, कर लूंगा। अब वो समय है, जब लोगों ने मुझे सच में पहचाना है। फिल्म छावा के जरिए मेरे काम को पहचान मिली। मुझे मास लेवल पर लोगों ने प्यार दिया। कवि कलश के रोल में ढलने के लिए मैं महाराष्ट्र के तुलापुर भी गया था। यहीं पर छत्रपति संभाजी महाराज और कवि कलश जी की समाधि स्थल है। जब मैं वहां बैठा, तब मुझे उनके होने का एहसास हुआ। मैं उस फीलिंग को साथ लेकर सेट पर आया। शायद इसी वजह से एक्टिंग काफी नेचुरल निकल पाई। ------------------------------------------ पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी यहां पढ़ें... दिवालिया हो गई थीं रश्मि देसाई: बिग बॉस गईं, वहां सुसाइड के ख्याल आए, अब दूसरी इनिंग शुरू टेलीविजन में बड़ा नाम रहीं रश्मि देसाई पिछले कुछ समय से इंडस्ट्री से गायब थीं। पिछले कुछ साल उनके लिए अच्छे नहीं रहे। आर्थिक और शारीरिक रूप से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पढ़ें पूरी खबर...

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Gene Hackman's daughters and Clint Eastwood lead tributes to star

Morgan Freeman describes the actor as "incredibly gifted" while Clint Eastwood said he was "extremely saddened" by the news.

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मूवी रिव्यू- CrazXy:थ्रिल, सस्पेंस और दमदार परफॉर्मेंस से भरपूर एक रोमांचक सफर, फिल्म अंत तक बांधे रखेगी

सोहम शाह स्टारर CrazXy एक हाई-ऑक्टेन, edge-of-the-seat थ्रिलर है, जो दर्शकों को शुरुआत से अंत तक बांधे रखती है। एक ग्रिपिंग कहानी, कसा हुआ निर्देशन और शानदार अभिनय इस फिल्म को एक अलग ही स्तर पर ले जाते हैं। निर्देशक गिरीश मलिक की यह डेब्यू फिल्म हर मोड़ पर नए ट्विस्ट और टर्न्स के साथ रहस्य और रोमांच को गहराता जाता है। इस फिल्म की लेंथ एक घंटा 33 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार रेटिंग दी है। फिल्म की स्टोरी क्या है? फिल्म की कहानी डॉ अभिमन्यु सूद (सोहम शाह) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक काबिल सर्जन तो है, लेकिन एक अच्छा पिता और इंसान नहीं। उसकी जिंदगी उस वक्त तहस-नहस हो जाती है, जब उसे एक अनजान नंबर से कॉल आता है। फोन उठाते ही उसकी दुनिया बदल जाती है। एक फिरौती कॉल, एक बैग, और वक्त के खिलाफ दौड़। उसकी बेटी और पूर्व पत्नी बॉबी की जिंदगी खतरे में है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, हर मोड़ पर नए रहस्य खुलते हैं, जो दर्शकों को लगातार सस्पेंस में रखते हैं। क्या वह अपनी बेटी को बचा पाएगा? कौन उसके पीछे है? CrazXy इन्हीं सवालों के साथ दर्शकों को बांधे रखती है। स्टार कास्ट की एक्टिंग कैसी है? पूरी फिल्म सोहम शाह के कंधों पर टिकी हुई है, और उन्होंने इसे बखूबी निभाया है। तुम्बाड जैसी फिल्म और महारानी जैसी सीरीज से अपनी अलग पहचान बना चुके सोहम इस फिल्म में पूरी तरह छाए हुए हैं। पूरे समय वह अकेले स्क्रीन पर दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी बारीक अदाकारी और चेहरे के एक्सप्रेशन्स इतने प्रभावी हैं कि आपको एक पल के लिए भी फिल्म से नजर हटाने का मन नहीं करेगा। उनकी परफॉर्मेंस ही इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है। इस फिल्म के प्रोड्यूसर भी सोहम शाह हैं, उन्होंने फिल्म के लिए बहुत ही बेहतरीन कहानी चुनी है। फिल्म का डायरेक्शन कैसा है? गिरीश मलिक ने इस फिल्म के साथ निर्देशन में कदम रखा है और उनकी पकड़ कहानी पर शुरुआत से अंत तक बनी रहती है। उन्होंने सिर्फ एक जबरदस्त स्क्रिप्ट ही नहीं लिखी, बल्कि उसे बखूबी पर्दे पर उतारा भी है। इसके साथ ही फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। सुनील रामकृष्णन बोरकर और कुलदीप ममानिया के कैमरे ने फिल्म के तनाव और रोमांच को शानदार तरीके से कैद किया है। एडिटिंग संयुक्ता काजा और रयथेम लैथ ने किया है, जो कहानी के तेज रफ्तार नैरेटिव को बनाए रखता है। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? फिल्म के संगीत में गुलजार के गीत और विशाल भारद्वाज की धुनें शामिल हैं। गाने फिल्म की थीम और सिचुएशन के हिसाब से एकदम सटीक हैं, हालांकि यह वो संगीत नहीं है जिसे फिल्म के बाहर भी बार-बार सुना जाए। सत्या फिल्म का गीत ‘गोली मार भेजे में’ और इंकलाब फिल्म का ‘अभिमन्यु फंस गया’ को बहुत अच्छा रीमिक्स किया गया है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर कहानी को प्रभावशाली बनाता है। फिल्म का फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं अगर आप थ्रिलर, रहस्य और हाई-स्टेक ड्रामा पसंद करते हैं, तो CrazXy आपके लिए है। दमदार परफॉर्मेंस, बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी और एक टाइट स्क्रीनप्ले इसे देखने लायक बनाते हैं। सोहम शाह की यह परफॉर्मेंस और क्लाइमैक्स में छिपा एक गहरा संदेश इस फिल्म को खास बनाता है। कुल मिलाकर, CrazXy एक फ्रेश पर्सपेक्टिव के साथ पेश की गई थ्रिलर है, जो आपको अंत तक बांधे रखेगी। जरूर देखें!

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The Nabateans are Coming

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जूनियर एनटीआर की फिल्म 'देवरा' जापान में रिलीज होगी:डायरेक्टर प्रशांत नील की एक्शन थ्रिलर में नजर आएंगे, फिल्म साल 2026 में आएगी

साउथ एक्टर जूनियर एनटीआर की फिल्म देवरा- पार्ट 1 इंडिया के बाद अब जापान के सिनेमाघरों में भी रिलीज हो रही है। फिल्म 28 मार्च को जापान में रिलीज होगी। वहीं, फिल्म के प्रमोशन के लिए एक्टर 22 मार्च को जापान जाएंगे। 'देवरा' से पहले एसएस राजामौली के निर्देशन में बनी उनकी फिल्म 'आरआरआर' भी जापान में रिलीज हो चुकी है। 'आरआरआर' में एनटीआर के साथ रामचरण भी मुख्य भूमिका में नजर आए थे। जापान में एनटीआर के काफी फैंस जापान में एनटीआर की काफी अच्छी फैन फॉलोइंग है। 'देवरा- पार्ट 1' की रिलीज को लेकर भी जापान के फैंस काफी एक्साइटेड हैं। फिल्म का डायरेक्शन कोराताला शिवा ने किया है। फिल्म ने भारत में 408 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की। इस फिल्म में जूनियर एनटीआर ने डबल रोल निभाया है। फिल्म देवरा में एनटीआर के साथ जान्हवी कपूर और सैफ अली खान भी थे। सैफ ने इस पैन-इंडिया फिल्म के साथ अपना तेलुगु डेब्यू किया था। बता दें, ये एक एक्शन ड्रामा फिल्म है, और दो-पार्ट वाली फ्रेंचाइजी है। एनटीआर, डायरेक्टर प्रशांत नील की फिल्म में नजर आएंगे एनटीआर के वर्क फ्रंट की बात करें तो एक्टर जल्द ही डायरेक्टर प्रशांत नील के साथ काम करने वाले हैं। प्रशांत नील 'केजीएफ: चैप्टर 1', 'केजीएफ: चैप्टर 2' और 'सालार पार्ट 1- सीजफायर' जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। इतना ही नहीं, जानकारी के अनुसार एनटीआर हैदराबाद की रामोजी फिल्म सिटी में डायरेक्टर प्रशांत नील के साथ अपने अपकमिंग प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। दोनों इन दिनों एक एक्शन थ्रिलर फिल्म बना रहे हैं, जिसका नाम फिलहाल 'एनटीआरनील' रखा गया है। हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि इस फिल्म का टाइटल 'ड्रैगन' भी हो सकता है। हाल ही में इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई है। फिलहाल एक्टर वॉर- 2 की शूटिंग में बिजी हैं। इसलिए 'एनटीआरनील' की शूटिंग मार्च से शुरू करेंगे। एनटीआर की यह एक्शन फिल्म 9 जनवरी 2026 को हिंदी के साथ तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम में सिनेमाघरों में रिलीज होगी। डायरेक्टर प्रशांत नील की इस फिल्म का प्रोडक्शन मैत्री मूवी मेकर्स और एनटीआर आर्ट्स करेगा। इस फिल्म में कल्याण राम नंदमुरी, नवीन यरनेनी, रवि शंकर यलमनचिली और हरि कृष्ण कोसाराजू ने भी इन्वेस्ट किया है।

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हिंदी इंडस्ट्री में सेट पर होती है चिकचिक:फिल्म ‘अगथिया’ की स्टार कास्ट ने बताया साउथ-नॉर्थ इंडस्ट्री का फर्क, जीवा बोले- बॉलीवुड का मेथड देख हैरान

फिल्म ‘अगथिया’ 28 फरवरी को पैन इंडिया रिलीज होने वाली है। ये फिल्म तमिल के अलावा हिंदी और तेलुगु में भी रिलीज होगी। राशि खन्ना, जीवा, अर्जुन सरजा और एडवर्ड सोनेंब्लिक स्टारर इस फिल्म के डायरेक्टर पा विजय हैं। ये एक पीरियड हॉरर एक्शन कॉमेडी फिल्म है। इस फिल्म में एंजेल और डेविल के साथ आयुर्वेद सिद्धा जैसी मेडिकल पद्धति पर बात की गई है। राशि की पिछले साल रिलीज हुई फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ काफी सुर्खियों में रही थी। वहीं, जीवा को रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण स्टारर फिल्म ‘83’ में देखा गया था। एडवर्ड अमेरिकी एक्टर हैं और उन्होंने ‘आरआरआर’ ‘केसरी‘, ‘मणिकर्णिका‘ जैसी फिल्मों में काम किया है। फिल्म की स्टारकास्ट राशि, जीवा और एडवर्ड ने दैनिक भास्कर से बातचीत की है। पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश… सवाल- जीवा, सबसे पहले तो आप अपने अमर चौधरी से जीवा बनने की कहानी बताइए। जवाब- मेरे पापा राजस्थान से और मेरी मम्मी मदुरई से हैं। मेरा असली नाम अमर चौधरी ही है। मैं जब इंडस्ट्री में आया, उस वक्त पर एक और एक्टर ने एंट्री ली थी। उनका नाम भी अमर था। जब उन्होंने अपना नाम अनाउंस किया, तभी मैंने अपना नाम चेंज करके जीवा रख लिया था। सवाल- राशि आप लगातार अच्छी फिल्में कर रही हैं। आपके स्क्रिप्ट का चुनाव बहुत अलग है। अभी तक जो रोल निभाया है, उसे ये किरदार कितना अलग है? जवाब- मुझे हॉरर ऐज जॉनर बहुत पसंद है। मुझे आसानी से डर नहीं लगता है। मेरे लिए हॉरर का मतलब है, जिससे मैं डर जाऊं। मैंने इस फिल्म को इसलिए साइन किया क्योंकि हॉरर फैंटेसी है और थ्रिलर भी है। मुझे नहीं लगता कि इस तरह की चीजों को हमने ज्यादा एक्सप्लोर किया है। इस फिल्म में कंप्यूटर जेनरेटेड इमेजरी (CGI) का काम एक साल तक चला है। मार्वल-डीसी के लिए जिन्होंने कंप्यूटर जेनरेटेड इमेजरी का काम किया है, उन्होंने इस फिल्म में काम किया है। वो आपको क्लाइमैक्स में दिखेगा। क्लाइमैक्स हमारी फिल्म का यूएसपी प्वाइंट है। बहुत सारे एलिमेंट है, जिसकी वजह से मैंने फिल्म साइन की है। इस फिल्म का हर कैरेक्टर इंपोर्टेंट है। फिल्म में थोड़ी बहुत कॉमेडी भी है। इमोशन और कई सारे लेयर्स भी मौजूद हैं। मैंने ऐसी फिल्म कभी नहीं की है तो मेरे लिए एक्साइटिंग फैक्टर भी था। मैंने सोचा चलो अलग-अलग जॉनर किया है, ये भी करके देखती हूं। मुझे बहुत मजा भी आया। सवाल- जीवा, आपके लिए 'अगथिया' क्या है? जवाब- मेरे लिए 'अगथिया' जरूरी फिल्म है। इस फिल्म में एक्शन, थ्रिलर, हॉरर सबकुछ है। साथ में अच्छे को-एक्टर्स भी हैं। जैसा कि आपने कहा कि फिल्म किसी भी भाषा में हो लेकिन ऑडियंस इमोशन से जुड़ जाती है। तो इस फिल्म में वो इमोशन देखने को मिलेगा। और मुझे लगता है कि पैन इंडिया ऑडियंस इस फिल्म से जुड़ पाएगी। ये एक तरह की फैमिली फिल्म है। बच्चे भी इसे देख सकते हैं। फिल्म में मार्वल के टेक्नीशियन हैं। ईरान के ग्राफिक टेक्नीशियन ने इसमें काम किया है। हमने साउथ इंडिया के ऑडियंस को दिमाग में रखकर काम किया था लेकिन फाइनल प्रोडक्ट देखने के बाद हमने इसे पैन इंडिया बनाया। सवाल- एडवर्ड आप तो पोस्टर और फिल्म हर जगह छाए हुए हो? जवाब- मुझे इस फिल्म में काम करके बहुत मजा आया। इस फिल्म में कंप्यूटर जेनरेटेड इमेजरी (CGI) का बहुत सारा काम दिखेगा। मैं खुद को इस अवतार में सोच भी नहीं सकता था, जब तक कि ये पोस्टर नहीं बना। मैंने खलनायक के रूप में बहुत काम किया है। इस फिल्म में भी मैं विलेन बना हूं। लेकिन ये वाला रोल मेरा थोड़ा अलग है क्योंकि मैं फ्रेंच विलेन बना हूं। मेरा किरदार और उसकी नीयत बहुत ज्यादा बुरी है। मैंने इसे और डरावना बनाने की कोशिश की है। सवाल- फिल्म में या सेट पर क्या चैलेंज रहा? जवाब/राशि- देखिए, मुझे तो कोई चैलेंज नहीं लगा। मैं पहले भी तमिल फिल्म कर चुकी हूं। मुझे आउटसाइडर जैसा फील नहीं होता है। मैं जब तमिल फिल्म करती हूं तो लगता है, यही की हूं। जब तेलुगु या हिंदी करती हूं तो वहां की हो जाती हूं। मेरे लिए चैलेंज डरना था। जैसा कि मैंने आपको बताया कि मुझे आसानी से नहीं डराया जा सकता है। और जब कुछ असल में नहीं हो रहा होता, ऐसे में आपको इमेजिन करना पड़ता है. तब थोड़ी मुश्किल होती है। सवाल- आजकल इंडस्ट्री में ऐतिहासिक और कल्चर से जुड़ी फिल्में ज्यादा बन रही हैं। लोगों को पसंद भी आ रही हैं। क्या कहना है आपलोगों का? जवाब/जीवा- हां, आजकल हर जगह या सोशल मीडिया पर वेस्टर्न कल्चर का इम्पैक्ट देखने मिल रहा है। लेकिन जब कहानी अपनी संस्कृति या जड़ से जुड़ी हो तो उसमें इमोशन कनेक्ट होता है। इस फिल्म की शूटिंग कोविड के बाद शुरू हुई थी। कोविड में बहुत सारे लोग आयुर्वेद, होम्योपैथी की तरफ लौटे थे। फिल्म में उसका थोड़ा इंफ्लुएंस है। इस फिल्म में हेल्थ के बारे में भी बहुत कुछ है। जवाब/राशि- मैं कहूंगी कि सिनेमा हमारे समाज और कल्चर का आईना होती है। जैसे-जैसे सोशल मीडिया आया लोग अपने कल्चर से दूर होते गए। पहले हम किताबें भी पढ़ते थे। गीत-पुराण पढ़ते थे लेकिन आजकल लोग इतना पढ़ते नहीं है। लोग विजुअल मीडिया को ज्यादा देख रहे हैं। लोग अपने कल्चर से जुड़े रहने के लिए पॉडकास्ट सुनते हैं, सिनेमा देखते हैं। ऐसे में जब ऐसी फिल्में बनती है तो लोग ज्यादा कनेक्ट कर पाते हैं। और हमें भी खुशी होती है कि हमारी फिल्म से समाज को एक मैसेज मिल रहा है। सवाल- एडवर्ड, आप भारतीय संस्कृति और आधयात्म के बारे में कितना जानते हैं? जवाब- मैं अपने परिवार के साथ हर साल एक महीने के लिए केरल आता हूं। वहां पर हम पंचकर्म केंद्र जाते हैं। मेरी पूरी फैमिली पंचकर्म ट्रीटमेंट लेती है। आयुर्वेद और सिद्धा (दक्षिण भारत की चिकित्सा पद्धति) मेरे दिल के बहुत करीब है। फिल्म में भी मेरे और अर्जुन सरजा के किरदार में सिद्धा की कहानी है। मैं तो कहूंगा कि सिद्धा इस देश और कल्चर के लिए बहुत बड़ा खजाना है। सवाल- आप तीनों ने हिंदी इंडस्ट्री में भी काम किया है और साउथ में भी। क्या अंतर महसूस होता है? जवाब/राशि- मुझे लगता है कि भाषा के अलावा ज्यादा कुछ अंतर होता नहीं है। दोनों ही इंडस्ट्री के लोग अच्छी फिल्म बनाना चाहते हैं। ऑडियंस तक अपनी रीच ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहते हैं। जवाब/एडवर्ड- मैं तो कहूंगा कि मुझे जो सबसे बड़ा अंतर दिखता है वो काम करने का तरीका है। साउथ में सेट पर काम करने का माहौल शांत रहता है। हिंदी इंडस्ट्री में सेट पर थोड़ा ज्यादा तमाशा होता है। साउथ का खाना मुझे अच्छा लगता है। जवाब/जीवा- मैंने एक फिल्म की थी 'जिप्सी'। इस फिल्म की शूटिंग ऑल ओवर इंडिया में हुई थी। उस दौरान मुझे पूरे देश में घूमने का मौका मिला। मुझे तो लोग एक जैसे लगे। इमोशन एक जैसे हैं, फैमिली भी एक जैसी हैं। बस क्लाइमेट और फूड का अंतर है। एक अंतर ये है कि साउथ में बीच है और नॉर्थ में नदी। मैं एडवर्ड की बातों से उतना सहमत नहीं हूं। मैंने फिल्म '83' में काम किया है। मैं तो हिंदी इंडस्ट्री के टेक्नीशियन और मेथड को देखकर हैरान था। मुझे लगता है कि एडवर्ड ने साउथ इंडियन फिल्म में डायरेक्टर के साथ काम नहीं किया है। वहां इससे ज्यादा चिकचिक होती है। बात नॉर्थ और साउथ की नहीं है। बात किसी एक सेट की होती है। अगर प्री प्रोडक्शन का काम बेहतर ना हुआ हो तो ऐसे में प्रोड्यूसर और डायरेक्टर चिकचिक करते हैं। सवाल- आमतौर पर ऐसी धारणा है कि साउथ के लोग ज्यादा डिसिप्लिन में रहते हैं। वहां के स्टार टाइम से सेट पर आते हैं। ऐसा है क्या? जवाब/राशि- मैंने अब तक दोनों इंडस्ट्री में जिस भी फिल्म में काम किया है। वहां पर सब टाइम से ही आते हैं। मेरा कोई भी ऐसा को-स्टार नहीं रहा है, सुबह छह बजे का कॉल टाइम है तो ग्यारह बजे आ रहा हो। सब छह बजे ही आते हैं। जवाब/एडवर्ड- मैंने भी देखा है। साउथ के स्टार टाइमिंग को लेकर डिसिप्लिन हैं। जवाब/जीवा- ऐसा कुछ नहीं है। मुंबई में ट्रैफिक का भी इशू है। साउथ में भी टाइमिंग को लेकर दिक्कत होती है। अगर हिंदी इंडस्ट्री में छह बजे के कॉल टाइम में कुछ स्टार 11 बजे आते हैं तो साउथ में तो कभी-कभी दिन के 3 बजे आते हैं। ये बात स्टार और स्टारडम के ऊपर भी निर्भर करती है। इसके अलावा कई दफा सीनियर एक्टर्स होते हैं तो वो भी कहते हैं कि अगर मेरा 4 डायलॉग है तो उसके लिए पूरे दिन बैठने का कोई मतलब नहीं होता है। मैं तो कहूंगा कि हर जगह ये चीज एक जैसी है। फिल्म '83' के समय हमलोग लंदन में शूट कर रहे थे। वहां सुबह सात बजे का कॉल टाइम होता था। रणवीर सिंह समेत पूरी टीम सेट पर टाइम पर ही आती थी। रणवीर सिंह के अलावा और भी जो एक्टर थे, जिनका लुक चेंज किया जाता था। मैंने उन्हें सुबह ठंड में एक घंटे पहले आते हुए देखा है। वो सुबह छह बजे बैठकर अपना मेकअप करवाते थे। सवाल- हॉरर जॉनर की कौन सी फिल्म आप तीनों की फेवरेट फिल्म है? जवाब/राशि- मुझे उर्मिला मातोंडकर मैम की 'कौन' बहुत डरावनी लगी थी। इसके अलावा हिंदी में एक 'नैना' फिल्म थी, वो भी डरावनी थी। इंग्लिश फिल्म में 'रिंग' और रीजनल में मुझे 'चंद्रमुखी' से काफी डरा लगा था। जवाब/जीवा- मेरे लिए हॉलीवुड फिल्म 'कंज्यूरिंग' सबसे ज्यादा डरावनी फिल्म है। ये किसी भी हॉरर फिल्म पर भारी पड़ती है। मेरी फिल्म 'सांगिली बंगिली' भी ठीक ठाक डरावनी है। जवाब/एडवर्ड- मैं हॉरर फिल्म थोड़ा अवॉइड करता हूं। मुझे डर लगता है। मैं बहुत ज्यादा डरावनी चीजें नहीं देख सकता। मैंने बचपन में एक फिल्म देखी थी 'एलियन'। उस मुझे पर अब तक गहरा प्रभाव है, शायद इस वजह से मैं हॉरर देखने से बचता हूं। सवाल- अगर आप तीनों को टाइम ट्रैवल करने का मौका मिले तो किस जमाने में जाना पसंद करोगे? जवाब/राशि- मैं तो 60-70 के दशक में जाने पसंद करूंगी। उस वक्त देश में नया-नया कल्चर डेवलप हो रहा था। फिल्मों में नयापन दिखने लगा था। सोसाइटी कैसी थी और सोशल मीडिया के बिना लोग कैसे रह रहे थे। तो मैं वो लाइफ देखना चाहूंगी। जवाब/जीवा- मैं भी सोशल मीडिया से पहले वाला दौर देखना चाहूंगा। अभी तो कुछ सीक्रेट नहीं रह गया है। अभी एक्टर की लाइफ की पल-पल जानकारी और पैपराजी कल्चर एक्टर्स को थोड़ा असहज करता है। इसके अलावा मैं टाइम ट्रैवल करके अपनी फ्लॉप फिल्मों को बदलना चाहूंगा। सवाल- अगर आप सबके पास गायब होने का पावर आ जाए या भूत बनने का मौका मिले तो किसे डराना चाहेंगे? जवाब/राशि- इनविजिबल पावर मिलने पर मैं तो गायब ही रहना पसंद करूंगी। भूत बनी तो मैं अपने भाई और अपनी दोस्त तमन्ना भाटिया को डराना पसंद करुंगी। तमन्ना को बहुत डर लगता है। जवाब/जीवा- राशि कहती रहती हैं कि इन्हें डर नहीं लगता तो मैं इन्हें ही डराऊंगा। और इनविजिबल होकर हॉलीवुड स्टूडियो में चिल करूंगा। वहां से काफी कुछ सीखूंगा और इंडिया में अप्लाई करूंगा। जवाब/एडवर्ड- अगर सुपर पावर मिले तो मुझे उड़ने का सुपर पावर चाहिए। मैं किसी को डराना नहीं चाहता हूं। किसी पर स्पाई नहीं करना चाहता हूं।

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‘Friends in Youth’ by Minoo Dinshaw review

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तब्बू ने ‘बागबान’ ठुकराई तो भड़की थीं उनकी मामी:चप्पल से मारने को कहा; एक्ट्रेस को 4 बच्चों की मां का रोल करने पर थी आपत्ति

फिल्म बागबान में हेमा मालिनी से पहले मेकर्स ने तब्बू को अप्रोच किया था। फिल्म की कहानी तब्बू को पसंद आई थी। वे इसे सुनकर रोने भी लगी थीं। हालांकि उन्होंने फिल्म में काम करने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि वे चार बच्चों की मां का रोल निभाने में कंफर्टेबल नहीं हैं। इससे उनके करियर पर बुरा असर भी पड़ सकता है। इस बात का खुलासा फिल्ममेकर रवि चोपड़ा की पत्नी और प्रोड्यूसर रेनू चोपड़ा ने किया है। रेनू ने कहा- हमने तब्बू को कास्ट करने के बारे में सोचा था। पहले उन्होंने स्क्रिप्ट सुनने के लिए कहा। कहानी सुनने के बाद वे बहुत रोईं, उन्हें कहानी पसंद आई। मुझे लगा कि वह अब फिल्म के लिए हां कर देंगी। तभी एक जानने वाली ने मुझसे कहा कि जब फिल्म की कहानी सुनकर तब्बू रोती हैं, वे उस फिल्म को नहीं करती हैं। यह बातें रेनू ने पिंकविला के इंटरव्यू में कहीं। तब्बू ने कहा था- मैं 4 बच्चों की मां का रोल नहीं निभा सकती हूं जब रेनू ने तब्बू से उनके फैसले के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- मुझे फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई है। मैं रोई भी हूं। लेकिन मैं 4 बच्चों की मां का किरदार नहीं निभाना चाहती हूं। मेरा पूरा करियर आगे पड़ा है, इसलिए रवि जी मुझे माफ कर दो। मामी ने तब्बू से कहा था- तुमने फिल्म क्यों ठुकराई, चप्पल से मारूंगी रेनू ने बताया कि जब फिल्म रिलीज हुई थी तो तब्बू अपनी मामी के साथ फिल्म देखने के लिए गई थीं। उन्होंने मामी को बताया कि इस फिल्म का ऑफर पहले उन्हें मिला था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। यह सुनने के बाद मामी भड़क गईं और कहा- यह चप्पल निकालकर तुम्हारे सिर पर मारूंगी। तुमने इस फिल्म के लिए न क्यों कहा? बॉक्स ऑफिस पर हिट थी फिल्म 2003 में रिलीज हुई बागबान में हेमा मालिनी के साथ अमिताभ बच्चन लीड रोल में थे। फिल्म में सलमान खान भी दिखे थे। रवि चोपड़ा के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म का बजट 12 करोड़ रुपए था। इसने दुनियाभर में 43.13 करोड़ की कमाई की थी।

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White House takes control of press pool that covers Trump

It will determine which outlets participate in the rotating pool that reports from the Oval Office and Air Force One.

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मूवी रिव्यू- सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव:दोस्ती, जज्बे-जुनून की कहानी; एक्टिंग, डायरेक्शन और राइटिंग सटीक;  जुलाहे, हिंदू-मुस्लिम और हिंसा से इतर मालेगांव की अलग दुनिया

डायरेक्टर रीमा कागती की फिल्म 'सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव' थिएटर में 28 फरवरी को रिलीज हो रही है। यह एक ऐसी प्रेरणादायक फिल्म है जो नासिर शेख की जिंदगी पर आधारित है। नासिर शेख एक जज्बाती, मेहनती और साहसी व्यक्ति हैं, जिन्होंने मालेगांव के लोगों के लिए सिनेमा को एक नई उम्मीद और मुस्कान का जरिया बना दिया। यह फिल्म न केवल फिल्ममेकिंग की चुनौतीपूर्ण राह पर चलने वाले हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, बल्कि उन सपनों को भी सलाम करती है जिनमें संसाधनों की कमी के बावजूद जुनून की कोई सीमा नहीं होती। इस फिल्म को रीमा कागती, जोया अख्तर, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी ने प्रोड्यूस किया है। इस फिल्म में आदर्श गौरव, विनीत कुमार सिंह, शशांक अरोड़ा, अनुज सिंह दुहान, साकिब अयूब, पल्लव सिंह और मंजरी जैसे उम्दा कलाकारों की अहम भूमिका है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 7 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 4 स्टार रेटिंग दी है। फिल्म की स्टोरी क्या है? फिल्म की कहानी मालेगांव की आम जिंदगी में छुपी कहानियों को उजागर करती है। नासिर (आदर्श गौरव) अपने भाई के लोकल वीडियो पार्लर से जुड़ी दुनिया में रच-बस गया है। शादियों में वीडियो रिकॉर्डिंग से लेकर एडिटिंग सीखने तक, नासिर ने कम संसाधनों में भी ऐसी फिल्में बना दीं जो मालेगांव के दिलों को छू गईं। अपने दोस्त फरोग जाफरी (विनीत कुमार सिंह), अकराम (अनुज दुहान), अलीम (पल्लव सिंह), शफीक (शशांक अरोड़ा) और इरफान (साकिब अय्यूब) की मदद से नासिर ने बॉलीवुड की हिट फिल्म 'शोले' का स्पूफ', ‘मालेगांव की शोले' बनाया, लेकिन जैसे ही सफलता की राह पर कदम बढ़ते हैं, दोस्तों के बीच मतभेद और व्यक्तिगत संघर्ष उभर आते हैं। जब शफीक को लंग कैंसर की खबर मिलती है, तो नासिर अपने दोस्तों के साथ मिलकर शफीक को हीरो बनाते हुए 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव' बनाने की ठान लेता है। इस फिल्म में एक भावुक मोड़ जहां दोस्ती, जुनून और जीवन की जंग एक साथ झलकती है। स्टार कास्ट की एक्टिंग कैसी है? फिल्म की सबसे खूबसूरत बात इसकी असली और बेहतरीन कास्टिंग है। नासिर का किरदार निभाने वाले आदर्श गौरव ने गहराई से उस जज्बे को दर्शाया है जो हर संघर्षरत कलाकार के अंदर होता है। फरोग के किरदार में विनीत कुमार सिंह ने दर्द, सच्चाई और लेखक की गंभीरता को इस कदर उकेरा है कि जब आप असली फरोग के वीडियो देखें, तो लगे कि उनकी ही शख्सियत पर विनीत ने जादू कर डाला है। शफीक का किरदार शशांक अरोड़ा की दमदार अदाकारी से दर्शकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ जाता है। बाकी कलाकार भी अपनी-अपनी भूमिकाओं में इतनी प्रामाणिकता और मेहनत लाते हैं कि फिल्म के हर पल में जीवन की झलक महसूस होती है। फिल्म का डायरेक्शन कैसा है? डायरेक्टर रीमा कागती ने कहानी के हर पहलू पर न्याय करते हुए कलाकारों से शानदार प्रदर्शन निकलवाया है। वरुण ग्रोवर की कलम से निकली कहानी ने फिल्म को एक नई दिशा और भावनात्मक गहराई प्रदान की है। उनकी लिखावट में न केवल प्रेरणा की कहानी है, बल्कि हर उस व्यक्ति के संघर्ष को भी सलाम है जो असंभव को संभव में बदलने का सपना देखता है। ‘राइटर ही बाप होता है' जैसे संवाद दर्शकों के दिलों में गूंजते हैं। तकनीकी दृष्टिकोण से भी फिल्म अच्छी बनी है। फिल्म के डीओपी स्वप्निल एस सोनावणे की सिनेमैटोग्राफी और प्रोडक्शन डिजाइनर सैली व्हाइट की कलात्मक सोच ने मालेगांव की बारीकियों को पर्दे पर बखूबी उतारा है। साथ ही, कॉस्ट्यूम और हेयर डिजाइन भी दर्शकों की नजरों से नहीं बच पाते। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? सचिन जिगर का संगीत फिल्म के थीम के अनुरूप बेहतरीन है। बैकग्राउंड म्यूजिक ने हर भाव को गहराई से उकेरा है, जबकि जावेद अख्तर का लिखित 'बंदे' गाना दर्शकों में नई ऊर्जा का संचार करता है। फिल्म का फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं अगर आप एक ऐसी फिल्म की तलाश में हैं जो जिंदगी के संघर्ष, दोस्ती और जुनून को बिना किसी आड़-छाड़ के पेश करे, तो 'सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव' आपके लिए है। दमदार अभिनय, सटीक निर्देशन, बेहतरीन लिखाई और तकनीकी उत्कृष्टता के साथ यह फिल्म आपको उन सपनों की ओर प्रेरित करेगी जो दूसरों के लिए असंभव माने जाते हैं। मालेगांव की असली कहानियों में डूब जाने के लिए और अपने अंदर छुपी उम्मीदों को जगाने के लिए यह फिल्म जरूर देखें।

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An Uneasy Propaganda Alliance

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दीदिया के देवरा…गाने वाली रागिनी मंदिर में गाती हैं:पता नहीं था हनी सिंह के साथ गाना है; खेसारी ने बोलकर भी साथ नहीं गाया

बॉलीवुड सिंगर यो-यो हनी सिंह का मेनियाक सॉन्ग इंटरनेट पर वायरल हो चुका है। इस पंजाबी गाने में भोजपुरी का तड़का भी है। गाने की ‘दीदिया के देवरा चढ़वले बाटे नजरी’ लाइन को बिहार-UP में नहीं बल्कि पूरे देश में सुना जा रहा है। नेटिजन्स को रैपर का भोजपुरिया अंदाज पसंद आ रहा है। इसमें अभिनेत्री ईशा गुप्ता ने भी एक्टिंग की है। इस वक्त सबसे ज्यादा चर्चा भोजपुरी वाले हिस्से को गाने और लिखने वाले लोगों की है। उनका हनी सिंह से संपर्क कैसे हुआ? इसे जानने के लिए दैनिक भास्कर ने गाने की गायिका रागिनी विश्वकर्मा और लेखक अर्जुन अजनबी से बात की। पढ़िए और देखिए… रागिनी को पता भी नहीं था कि हनी सिंह के साथ गाएंगी इस गाने के लिए हनी सिंह की टीम से विनोद वर्मा नाम के शख्स ने रागिनी को संपर्क किया था। उनसे कहा गया कि आपका गाना बॉलीवुड में रिलीज किया जाएगा। वो बताती हैं, इस गाने के लिए मुझे दो महीने पहले विनोद वर्मा का फोन आया था। उन्होंने कहा कि आपको बॉलीवुड में गाना है, लेकिन मुझे नहीं पता था कि हनी सिंह के साथ गाना है। जब गाना पूरा फाइनल आ गया और टीजर आ गया तब मुझे बताया गया कि हनी सिंह के साथ गाना आ गया है। 6 दिन रिहर्सल के बाद बनारस में शूट हुआ, एक गाना और आएगा ये गाना बनारस के कीनाराम बाबा मंदिर के भीतर बने स्टूडियो में शूट किया गया। रागिनी बताती हैं, ‘ये गाना हमने डेढ़ महीने पहले गा लिया था।’ गाने के लिरिसिस्ट अर्जुन अजनबी बताते हैं, ‘हम लोगों ने चार गाने डमी शूट करके सुनाया था। उसके बाद ये गाना फाइनल हुआ था। फिर किनाराम बाबा मंदिर, बनारस के भीतर महादेव स्टूडियो में शूट हुआ। कहा गया है कि एक गाना और आएगा।’ हमने इस गाने के द्विअर्थी होने पर भी सवाल किया। इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘गाने को चलाने के लिए कुछ तो चटक चाहिए ही। इसी तरह की डिमांड थी तो हमने इसी किस्म का गाना लिखा कर दे दिया।’ चटक के चक्कर में इरॉटिक इंटरटेनमेंट के सवाल पर अर्जुन अजनबी ने कहा, ‘इस पर ज्यादा बात नहीं कर पाएंगे। हम अपने काम से संतुष्ट हैं।’ रागिनी का पूरा परिवार मंदिर में मुंडन पर गाने गाता है उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली रागिनी विश्वकर्मा का परिवार तरकुलहा मंदिर के बगल में रहता है। रागिनी के परिवार के सभी लोग मंदिर परिसर में ही ढोलक-हारमोनियम के साथ गाना गाते हैं। उससे मिले पैसे से घर खर्च चलता है। वो कहती हैं, जिस मंदिर के पास हमारा घर है, वहां लोग मुंडन कराने आते हैं। उसी में हम लोग ढोलक -हारमोनियम लेकर गाते हैं। कुछ पैसा मिलता है तो खर्च चलता है। पूरे घर में सब लोग यही करते हैं। 10-11 साल की उम्र से ये कर रही हूं। रागिनी का एक इसी किस्म का वीडियो कोविड के लॉकडाउन के दौरान वायरल हो गया। वो बताती हैं, एक गाना मेरा वायरल हुआ था तबसे हमसे यूट्यूबर लोग मिलते थे। 100-50 रुपए देकर गाना गवाते थे और चले जाते थे। फिर मुझे अनुराग इंटरटेनमेंट के दिवाकर जी मिलने आए। उन्होंने कहा कि तुम अपना वीडियो खुद बनाओ- अपने चैनल पर चलाओ। मगर मुझे कुछ आता नहीं था तो मैंने कहा कि आप ही मेरी मदद कर दीजिए। तब से मैं इनके साथ ही गाती हूं। लोग साथ गाने से कतराते हैं, खेसारी लाल कहकर भी नहीं गाए रागिनी ने बताया, ‘खेसारी लाल यादव का गाया हुआ एक गाना मैंने ढोलक-हारमोनियम पर गा दिया था। इसके बाद खेसारी लाल जी से मैं एक कार्यक्रम में गोरखपुर में मिली। उन्होंने सबके सामने कहा था कि साथ में गाना गाया जाएगा। लेकिन अभी तक इंतजार कर रही हूं। अब तो हनी सिंह के साथ गा ली हूं।’ ‘वायरल होना मेरे लिए नई बात नहीं है, लेकिन भोजपुरी में लोग मेरे साथ गाने से कतराते हैं। बॉलीवुड में हनी सिंह ने मुझे मौका दिया। मैं ढोलक-हारमोनियम पर गाती हूं, शायद इसलिए ऐसा है। मैं छोटे घर से आई हूं तो लोगों का इमेज घट जाएगा। भोजपुरी के लोग गाने से कतराते हैं।’ रागिनी के लिए कई गाने रिकॉर्ड कर चुके अनुराग इंटरटेनमेंट के दिवाकर कुमार ने कई बड़े गायकों पर आरोप लगाते हुए कहा कि रागिनी का गाया गाना दो चार दिन बाद गा दिया और सारा क्रेडिट ले गए। वो दावा करते हैं, ‘रागिनी से मैंने एक गाना गवाया था। गाना था- एगो घरे लगवा द एसी राजा जी। रागिनी के इस वायरल गाने को भोजपुरी गायक समर सिंह ने दो-तीन के बाद गा दिया। एक और गाना भी गायक रितेश पांडे ने उठाकर गा दिया। ऐसे बड़े गायकों को कभी भी ये नहीं लगा कि एक गाना रागिनी के साथ गा देना चाहिए। इसे भोजपुरी के साथ खिलवाड़ मान रहे भाषा के जानकार भोजपुरी भाषा के लिए काम कर रहे पत्रकार निराला विदेसिया इसे एक नीचले स्तर का ट्रेंड मानते हैं। उनका कहना है इस गाने की लिरिस्क इरोटिक कॉन्टेंट को आगे बढ़ा रही है। और इससे भोजपुरी की संस्कृति और लोक परंपरा का नुकसान ही होगा। वो कहते हैं, जमीन से उठाकर स्टार बना देने की बात कहते-कहते बॉलीवुड के सबसे निचले स्तर के ट्रेंड को हनी सिंह ने भी अपना लिया। ये गीत न तो फोक सॉन्ग है और ना ही कोई पारंपरिक गीत की धुन ही है। हनी सिंह भोजपुरी के ट्रेडिशनल फोक से कुछ गाना उठाए होते तो बेहतर होता। हमारे समाने रानू मंडल और कच्चा बादाम के गायकों का हश्र है। इंटरनेट पर प्लेटफॉर्म देना और दुनिया भर में हो रहे कॉन्सर्ट में साथ लेकर चलना दो अलग-अलग बाते हैं। हनी सिंह के गाने के वीडियो में भी उसे जगह नहीं मिली है। ---------------------- ये भी पढ़ें... ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम...भजन पर हंगामा, गायिका को माफी मांगनी पड़ी:सिंगर को 'जय श्रीराम' के नारे लगाने पड़े; पटना में 'मैं अटल रहूंगा’ कार्यक्रम की घटना बिहार के पटना में अटल जयंती समारोह में महात्मा गांधी के भजन रघुपति राघव राज राम...को लेकर हंगामा हो गया था। भजन गायिका देवी को माफी मांगनी पड़ी। जय श्रीराम के नारे लगाने पड़े, तब जाकर मामला शांत हुआ और कार्यक्रम दोबारा शुरू हुआ। उधर, इस घटना पर आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने आपत्ति जताई। पूरी खबर पढ़िए

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शाहिद@44, ‘कबीर सिंह’ के लिए रोज 20 सिगरेट पी:जर्सी के सेट पर हुए घायल, 25 टांके लगे; डायरेक्टर से कहा- मुझे ‘विवाह’ नहीं करनी

एक्टर शाहिद कपूर का आज 44वां बर्थडे है। उन्होंने इश्क-विश्क, विवाह, जब वी मेट, हैदर, कबीर सिंह जैसी फिल्मों में काम किया है। एक वक्त था, जब शाहिद की इमेज चॉकलेटी हीरो वाली थी। लेकिन उन्होंने रोल के साथ एक्सपेरिमेंट्स करके प्रूफ कर दिया कि वे इंटेंस लुक वाले रोल भी कर सकते हैं। हालांकि इन रोल्स के परफेक्शन के लिए शाहिद को बहुत स्ट्रगल करना पड़ा और साथ ही कुर्बानियां भी देनी पड़ीं। कभी उन्हें स्ट्रिक्ट डाइट अपनाना पड़ा तो कभी न चाहते हुए भी दिन में 20-20 सिगरेट पीनी पड़ी। आज 44वें बर्थडे पर जानते हैं शाहिद कपूर की जिंदगी के वो फैसले, जो उन्होंने अपनी फिल्मों के खातिर लिए.. ऋतिक रोशन की वजह से शाहिद का शुरुआती सफर फ्लॉप रहा शाहिद ने फिल्म इश्क विश्क (2003) से बतौर हीरो बॉलीवुड में डेब्यू किया था। यह फिल्म उन्हें 4 साल के स्ट्रगल और करीब 200 ऑडिशन में रिजेक्शन के बाद मिली थी। इसमें शाहिद के चॉकलेटी बॉय लुक को जनता ने बहुत पसंद किया। उन्हें फिल्मों के ऑफर भी मिलने लगे। लेकिन फिर भी कुछ लोगों ने शाहिद से कहा कि इस डेब्यू के बाद भी तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। दरअसल, शाहिद से 2 साल पहले ऋतिक रोशन ने बॉलीवुड डेब्यू किया था। इंडस्ट्री वालों का कहना था कि वे सिर्फ 5 साल में एक ही नए एक्टर को हीरो के तौर पर अपना सकते हैं। उनका कहना सच हुआ। इसका सबूत यह रहा कि 2004 में शाहिद की 2 फिल्म फिदा और दिल मांगे मोर रिलीज हुई, लेकिन दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट गईं। इस बात का जिक्र शाहिद ने मिड डे इंडिया के इंटरव्यू में किया था। शाहिद ने डायरेक्टर से कहा था- मुझे फिल्म विवाह से निकाल दीजिए 2 साल गुजर जाने के बाद शाहिद 2005 में भी कमबैक करने की कोशिश करते रहे, लेकिन सफल नहीं हुए। उनकी फिल्म दीवाने हुए पागल, वाह लाइफ हो तो ऐसी और शिखर बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। शाहिद जब करियर के बुरे फेज से लड़ रहे थे, तब सूरज बड़जात्या फरिश्ता बन कर आए। उन्होंने शाहिद को फिल्म विवाह का ऑफर दिया। सूरज एक सिंपल और गुड लुकिंग लड़के को फीचर करना चाहते थे। शाहिद के लिए फिल्म का कॉन्सेप्ट नया था। उस वक्त उन्हें खुद पर भरोसा भी नहीं था। वे अब और फ्लॉप फिल्म अफोर्ड करने की हालत में नहीं थे। फिर भी उन्होंने सूरज बड़जात्या के ऑफर को एक्सेप्ट कर लिया। लेकिन इस फिल्म की शूटिंग को सिर्फ 8 दिन हुए थे कि शाहिद, सूरज के पास गए और कहा- सर, अगर अभी भी आप किसी दूसरे एक्टर को कास्ट करना चाहते हैं, तो कर सकते हैं। इस पर सूरज ने शाहिद से कहा कि तुम सिर्फ अपनी एक्टिंग पर फोकस करो, बाकी मैं संभाल लूंगा। डायरेक्टर का कहना मान कर शाहिद ने सिर्फ एक्टिंग पर फोकस किया। 10 नवंबर 2006 को रिलीज हुई फिल्म विवाह सुपरहिट साबित हुई। इसने शाहिद के करियर को नया मोड़ दिया। शाहिद के कहने पर करीना कपूर ने साइन की फिल्म साल 2007 भी शाहिद के लिए लकी रहा। इस साल रिलीज हुई फिल्म जब वी मेट को शाहिद की करियर की बेस्ट फिल्म का तगमा मिला। हालांकि वे फिल्म के लिए पहली पसंद नहीं थे। शुरुआत में डायरेक्टर इम्तियाज अली ने बॉबी देओल को फिल्म में कास्ट किया था। बॉबी ने ही इम्तियाज को करीना का नाम सुझाया था। हालांकि कुछ समय के लिए इम्तियाज को फिल्म की शूटिंग रोकनी पड़ी थी। वे किसी दूसरे प्रोजेक्ट में बिजी हो गए थे। काम पूरा करने के बाद जब उन्होंने जब वी मेट की शूटिंग शुरू करनी चाही तब बॉबी किसी दूसरे शूट में बिजी हो गए। फिर इम्तियाज ने आदित्य के रोल के लिए शाहिद और गीत के लिए करीना को चुना। वे दोनों की रियल लाइफ लव स्टोरी को फिल्मी पर्दे पर उतारना चाहते थे। हालांकि करीना इसके लिए तैयार नहीं थीं। फिर शाहिद के कहने पर उन्होंने फिल्म साइन की। इस बात का जिक्र इम्तियाज ने Galatta India के इंटरव्यू में किया था। पैर में चोट लगने के बाद भी शूटिंग करते रहे 2007 के बाद शाहिद का फिर से बुरा दौर शुरू हो गया। 2008 से 2013 तक, किस्मत कनेक्शन, कमीने, दिल बोले हड़िप्पा, डांस पे चांस, पाठशाला, बदमाश कंपनी, मिलेंगे-मिलेंगे, मौसम, तेरी मेरी कहानी, फटा पोस्टर निकला हीरो जैसी फिल्में रिलीज हुईं। इनमें से सिर्फ किस्मत कनेक्शन ने बॉक्स ऑफिस पर औसत कमाई की। 2013 की फिल्म आर राजकुमार के जरिए शाहिद को फिर इंडस्ट्री में खोई हुई सक्सेस वापस मिल गई। यह फिल्म कॉमर्शियली हिट रही। हालांकि फिल्म की शूटिंग के दौरान शाहिद को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, शाहिद क्लाइमेक्स सीन्स की शूटिंग के दौरान घायल हो गए थे। उनके पैर का लिगामेंट फट गया था। वे बहुत दर्द में थे। फिर भी उन्होंने शूटिंग जारी रखी। वे 8 दिन तक फिजियोथेरेपी के साथ एक्शन सीन्स की शूटिंग करते रहे। जिस फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला, उसके लिए फीस चार्ज नहीं की 2014 से पहले शाहिद को अधिकतर फिल्मों में रोमांटिक और सॉफ्ट रोल में देखा गया था। लेकिन फिल्म हैदर ने उनके करियर की कायापलट कर दी। हालांकि इस फिल्म के लिए उन्होंने एक रुपए भी फीस चार्ज नहीं की थी। शाहिद ने कहा था- पूरी स्टारकास्ट में से सिर्फ मैंने ही फ्री में फिल्म की थी। मेकर्स का कहना था कि वे मुझे अफोर्ड नहीं कर पाएंगे। फिल्म की कहानी हटकर थी। फिल्म का बजट भी कम था। अगर मैं फीस की डिमांड करता तो मेकर्स का बजट बढ़ जाता। खैर बिना पैसे लिए ही मेरा भला हो गया। यह बातें शाहिद ने अनुपमा चोपड़ा के इंटरव्यू में कही थीं। शुरुआत से ही डायरेक्टर विशाल भारद्वाज हैदर में शाहिद को कास्ट करना चाहते थे। कहानी सुनने के तुरंत बाद शाहिद भी फिल्म में काम करने के लिए मान गए थे। यहां तक कि उन्होंने सिर भी मुंडवा लिया था। फिल्म की अधिकतर शूटिंग कश्मीर में हुई थी। शूटिंग के दौरान कई बार क्रू पर लोकल लोगों ने हमला किया था। इस वजह से शूटिंग को कई बार रोकना पड़ा था। हालांकि जैसे-तैसे यह फिल्म बनकर रिलीज हुई। जब फिल्मों के लिए शाहिद ने दी फूड की कुर्बानी इसके बाद जिस फिल्म ने शाहिद को फिर से बेस्ट एक्टर का तगमा दिलवाया, वह थी 2016 की उड़ता पंजाब। इस फिल्म से शाहिद ने प्रूफ कर दिया कि वे हर किस्म का रोल आसानी से कर सकते हैं। फिल्म में शाहिद ने ड्रग्स एडिक्ट टॉमी सिंह का किरदार निभाया था, जिसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की थी। फिल्म के डायरेक्टर अभिषेक चौबे ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘शाहिद नॉनवेज, शराब और सिगरेट का सेवन नहीं करते हैं। नतीजतन, मैंने उन्हें ड्रग्स एडिक्ट का रोल प्ले करने के लिए बहुत सारी कॉफी पिलाई थी। वे बहुत कम खाते थे। मैं चाहता था कि वे नशेड़ी दिखें। जैसे कि एक नशेड़ी को खाने से ज्यादा नशे की लत होती है। शाहिद के साथ हमने यह फॉर्मूला अपनाया था।’ 2018 की फिल्म पद्मावत के लिए भी शाहिद ने सबसे ज्यादा अपनी डाइट पर फोकस किया था। इसके लिए वे 14 घंटे की शूटिंग के साथ 2 घंटे जिम में पसीना बहाते थे। राजा-महाराजा की तरह बॉडी पाने के लिए उन्होंने 40 दिन तक स्ट्रिक्ट डाइट फॉलो की थी। उनके डाइट चार्ट को कनाडा के शेफ केल्विन चेउंग ने तैयार किया था। इसके अलावा शाहिद ने 15 दिन तक नमक और चीनी से पूरी तरह से दूरी बना ली थी। कबीर सिंह के सेट पर रोज 20 सिगरेट पीते थे शाहिद शाहिद के करियर की बेस्ट फिल्मों की लिस्ट में 2019 की फिल्म कबीर सिंह का नाम शामिल है। 55 करोड़ में बनी इस फिल्म ने 377 करोड़ की कमाई की थी। लुक के परफेक्शन के लिए शाहिद ने शूटिंग के दौरान ही वजन बढ़ाया और घटाया था। एक कामकाजी शराबी के रोल के लिए उन्होंने 8 किलो वजन बढ़ाया था क्योंकि उन्हें फूला हुआ और बेडौल दिखना था। फिर उसी फिल्म में एक मेडिकल स्टूडेंट की भूमिका निभाने के लिए उन्होंने 12 किलो वजन कम किया था। रियल लाइफ में कभी सिगरेट न पीने वाले शाहिद इस फिल्म की शूटिंग के वक्त दिन में करीब 20 सिगरेट पिया करते थे। इंडियन एक्सप्रेस के इंटरव्यू में शाहिद ने कहा था- मैं दिन में 20 सिगरेट पीता था। फिर घर लौटने से पहले 2 घंटे नहाता था ताकि बच्चों और बाकी लोगों पर मेरे रोल की निगेटिविटी न पड़े। सेट पर हुए घायल, 25 टांके लगे कबीर सिंह के बाद शाहिद ने अपने रोल के साथ एक्सपेरिमेंट करना नहीं छोड़ा। 2022 की फिल्म जर्सी में शाहिद ने चंडीगढ़ के क्रिकेटर अर्जुन तलवार का रोल प्ले किया। इसके लिए उन्होंने क्रिकेट की ट्रेनिंग ली थी। एक दिन शूटिंग के दौरान हेलमेट नहीं पहनने की वजह से शाहिद के होंठ में चोट लग गई थी और उन्हें 25 टांके लगे थे। इस कारण उन्हें शूटिंग से 2 महीने का ब्रेक लेना पड़ा था। शाहिद ने इस घटना का एक वीडियो इंस्टाग्राम हैंडल पर शेयर किया था। हालांकि शाहिद की मेहनत के बाद भी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट गई। 60 करोड़ के बजट की इस फिल्म ने सिर्फ 30.75 करोड़ की कमाई की। आगे शाहिद को 2022 में फिल्म ब्लडी डैडी, 2024 में फिल्म तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया और 2025 में फिल्म देवा में देखा गया। तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया में उनको सॉफ्ट लुक में देखा गया, वहीं बाकी दोनों फिल्मों में उनका इंटेंस लुक देखने को मिला। आने वाले दिनों में शाहिद के पास कई बड़ी फिल्में हैं, जिनमें भी उन्होंने अपने रोल के साथ अलग-अलग एक्सपेरिमेंट्स किए हैं। इस लिस्ट में कॉकटेल 2, आवारा पागल दीवाना 2 जैसी फिल्में शामिल हैं। .............................................. बॉलीवुड से जुड़ी यह खबर भी पढ़िए... संजय लीला भंसाली@62, फिल्म में पैसा लगाकर बर्बाद हुए पिता:घर खर्च के लिए मां ने कपड़े सिले; गुस्से की वजह से FTII से निकाला संजय लीला भंसाली, आज ये नाम फिल्म इंडस्ट्री के बड़े डायरेक्टरों में शुमार है। भंसाली 62 साल के हो गए हैं। कभी 300 स्क्वायर फीट की चॉल में बेरंग दीवारों के बीच गुजारा करने वाले भंसाली, आज भारतीय सिनेमा के सबसे भव्य सेट्स और परफेक्शनिस्ट अप्रोच के लिए जाने जाते हैं। पढ़ें पूरी खबर...

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EastEnders star says wife not over the moon at Martin's exit

James Bye, aka Martin Fowler, came to a tragic end in the soap's special 40th anniversary live episode.

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The Birth of Giovanni Morelli

The Birth of Giovanni Morelli JamesHoare

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SAG Awards: The winners and nominees

The Screen Actors Guild Awards are taking place, honouring the best performances of the last year.

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संजय लीला भंसाली@62, फिल्म में पैसा लगाकर बर्बाद हुए पिता:घर खर्च के लिए मां ने कपड़े सिले; गुस्से की वजह से FTII से निकाला

संजय लीला भंसाली, आज ये नाम फिल्म इंडस्ट्री के बड़े डायरेक्टरों में शुमार है। भंसाली आज 62 साल के हो गए हैं। 300 स्क्वायर फीट की चॉल में बेरंग दीवारों के बीच गुजारा करने वाले भंसाली, आज भारतीय सिनेमा के सबसे भव्य सेट्स और परफेक्शनिस्ट अप्रोच के लिए जाने जाते हैं। संजय की फिल्मों में सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि हर फ्रेम एक चलती-फिरती पेंटिंग होती है। 940 करोड़ रुपए के मालिक भंसाली ने फिल्म इंडस्ट्री के करियर में करीब 10 फिल्मों का डायरेक्शन किया, 7 फिल्मों में बतौर प्रोड्यूसर, 3 फिल्मों में म्यूजिक डायरेक्टर और 16 फिल्मों में राइटर के तौर पर काम किया। लेकिन संजय लीला भंसाली का फिल्म इंडस्ट्री में आना आसान नहीं था। भंसाली के 62वें जन्मदिन के मौके पर जानेंगे उनके डायरेक्शन और परफेक्शन से जुड़े किस्से…. चॉल में जन्म हुआ, कहा था- दीवारें भी बेरंग थीं संजय लीला भंसाली फिल्मों में अपने आलीशान और भव्य सेट के लिए जाने जाते हैं, लेकिन एक समय था जब वो खुद चॉल में रहते थे। उन्होंने कुछ समय पहले ही हॉलीवुड रिपोर्टर से बातचीत में अपने बचपन के संघर्ष को याद किया था। उन्होंने कहा था- मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मैं बिना किसी सुख-सुविधा वाले घर में पैदा हुआ। मैं 300 स्क्वायर फीट के चॉल में पैदा हुआ। खुद को इसलिए भी भाग्यशाली मानता हूं क्योंकि मेरा जन्म ऐसे पिता के घर हुआ, जो अपने पीछे कई अधूरे सपने छोड़ गए। मैं जिस चॉल में रहता था, वहां दीवारें भी बेरंग थीं, छोटी सी जगह में हम 4-5 लोग रहते थे। मैंने बचपन से ही यही बात सुनी थी कि सिनेमा में पैसे लगाना बेकार है। पिता ने फिल्म में पैसे लगाए, परिवार को झेलनी पड़ी आर्थिक तंगी इसी इंटरव्यू में संजय लीला भंसाली ने फिल्मों को अपनी आर्थिक तंगी का कारण भी माना। उन्होंने कहा- मेरे पिता ने जहाजी लुटेरा नाम की फिल्म में पैसा लगाया था, जो मेरे पैदा होने से पहले रिलीज हुई थी। जब मैं पैदा हुआ और बड़ा हो रहा था तो मैंने अपनी फैमिली से हमेशा यही सुना कि सिनेमा में पैसे नहीं लगाना चाहिए। हम सिनेमा की वजह से ऐसी सिचुएशन में पहुंच गए हैं। मेरे घर में शुरू से ही सिनेमा को काफी तवज्जो दी जाती है। मेरी दादी ने एक बार 10 हजार रुपए इकट्ठा किए थे। उन्होंने ये पैसे मेरे पिता के दोस्त को दिए थे, जो एक फिल्म प्रोड्यूस कर रहे थे। वो पैसे हमें कभी वापस नहीं मिले। जिसके बाद मैंने सोच लिया था कि बहुत पैसे कमाने हैं और परिवार को वो 10 हजार रुपए सूद समेत लौटाने हैं। मां को छोटी जगहों में डांस करते देख ठाना- मेरी एक्ट्रेसेस बड़े सेट पर डांस करेंगी संजय लीला भंसाली के पिता ने जब फिल्मों में पैसे लगाए तो परिवार को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा। ऐसे में घर खर्च और गुजारे के लिए उनकी मां सिलाई का काम किया करती थीं। उनकी मां छोटे कार्यक्रमों में डांस भी किया करती थीं। कभी-कभी भंसाली भी कार्यक्रमों में अपनी मां की परफॉर्मेंस देखने जाते थे। एक दिन उन्होंने मां को छोटी सी जगह पर डांस करते देखा, जिसके बाद उन्होंने ठान लिया था कि जब भी वो फिल्म मेकर बनेंगे तो उनकी फिल्म की एक्ट्रेसेस हमेशा बड़े सेट पर डांस करेंगी। गुस्से की वजह से FTII से निकाले गए संजय लीला भंसाली संजय लीला भंसाली ने टाइम्स ऑफ इंडिया से एक पुरानी बातचीत में अपने पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट का किस्सा शेयर किया था। उन्होंने बताया था- मैंने पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में एडिटिंग कोर्स में एडमिशन लिया था। इस कोर्स को पूरा करने के बाद मैंने डिप्लोमा के लिए एडमिशन लिया था। लेकिन तभी मुझे इंस्टीट्यूट से निकाल दिया गया था और मैं अपना डिप्लोमा पूरा नहीं कर पाया था। दरअसल, मैं वहां एडिटिंग का स्टूडेंट था, हमारे लिए डायरेक्शन की क्लास नहीं होती थी। एक दिन हर स्टूडेंट के लिए एक डायरेक्टर को बुलाया गया, जिनकी फिल्में हमें एडिट करनी थीं। मुझे दिलीप घोष की फिल्म मिली थी, लेकिन मुझे उनके साथ काम करने में कुछ परेशानी थी, इसीलिए मैंने अपने इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर के.जी. वर्मा से कहा कि मुझे किसी दूसरे डायरेक्टर की फिल्म दे दी जाए, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसी बात को लेकर थोड़ी बहस हो गई और मैंने कोर्ट में केस कर दिया, जिसमें मैं हार गया। इसके बाद मैं वर्मा सर के पास गया और गिड़गिड़ाया कि मुझे मेरी डिप्लोमा फिल्म पूरी करने दें, लेकिन वे नहीं माने और मुझे इंस्टीट्यूट से निकाल दिया। मैं बहुत गुस्से में था और सोच लिया था कि मुंबई जाकर अपनी फिल्म बनाऊंगा। हालांकि आज भी मुझे डिप्लोमा नहीं कर पाने का अफसोस है। यही वजह है कि मैं अभी भी खुद को अधूरा फिल्ममेकर मानता हूं। कैसे फिल्मों से जुड़ा संजय लीला भंसाली का रिश्ता? संजय लीला भंसाली का नाम आज इंडस्ट्री के बड़े फिल्ममेकर्स में शुमार है। लेकिन एक समय ऐसा था जब उनका फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ना नामुमकिन था। ये तब मुमकिन हो सका जब संजय लीला की बहन ने विधु विनोद चोपड़ा की एक्स वाइफ रेनू चोपड़ा के सामने उनके काम की तारीफ की। जिसके बाद रेनू चोपड़ा ने विधु विनोद चोपड़ा को संजय लीला को काम देने के लिए मजबूर किया था। दरअसल, संजय लीला भंसाली की बहन बेला भंसाली सहगल विधु विनोद चोपड़ा के साथ काम करती थीं। पहले विधु विनोद चोपड़ा ने संजय लीला को रिजेक्ट कर दिया। फिर बाद में उन्होंने उनको अपने साथ काम करने का मौका दिया। संजय लीला ने उनके साथ 8 साल तक काम किया। उन्होंने विधु विनोद चोपड़ा के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया। संजय लीला भंसाली ने विधु विनोद चोपड़ा के साथ काम करने का एक्सपीरियंस शेयर करते हुए बताया था- “मुझे लगता है कि उनके साथ 8 साल तक काम करने के बाद मैं दुनिया की किसी भी सिचुएशन का सामना कर सकता हूं। आज भी अगर विधु विनोद चोपड़ा का कॉल आता है तो मैं खड़ा हो जाता हूं। यह मेरा उस व्यक्ति के प्रति सम्मान है जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।” पहली फिल्म खामोशी: द म्यूजिकल को मिले 5 फिल्मफेयर अवॉर्ड संजय लीला भंसाली ने विधु विनोद चोपड़ा के साथ फिल्म परिंदा (1989) में बतौर असिस्टेंट, 1942: ए लव स्टोरी (1994) में बतौर राइटर-असिस्टेंट कोरियोग्राफर में काम किया। विधु विनोद चोपड़ा चाहते थे कि संजय लीला भंसाली उनके प्रोडक्शन की फिल्म करीब डायरेक्ट करें, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। इस इनकार का असर उनके रिश्ते पर पड़ा। इसके बाद संजय लीला भंसाली ने साल 1996 की फिल्म खामोशी द म्यूजिकल से बतौर डायरेक्टर बॉलीवुड में डेब्यू किया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तो कोई खास कमाल नहीं कर सकी, हालांकि इसे क्रिटिक्स की जमकर तारीफें मिलीं। इस फिल्म ने उस साल 5 फिल्म फेयर अवॉर्ड अपने नाम किए थे। आगे उन्होंने हम दिल दे चुके सनम, देवदास, ब्लैक जैसी बेहतरीन फिल्में डायरेक्टर कर खुद को बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन डायरेक्टर्स में शामिल किया। संजय लीला भंसाली की फिल्मों और परफेक्शन से जुड़े किस्से- संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों की कहानी के साथ-साथ परफेक्शन, आलीशान सेट, एक्टर्स के कॉस्ट्यूम और म्यूजिक पर भी ध्यान देते हैं। ये उनकी कई फिल्मों में देखने को मिला है। भंसाली ने साल 2002 में रिलीज हुई फिल्म देवदास के भव्य सेट को बनाने में 9 करोड़ रुपए लगाए थे। वहीं, 2018 में रिलीज हुई फिल्म पद्मावत के सेट को बनाने में 250 करोड़ रुपए की लागत लगी थी। फिल्म में दीपिका पादुकोण के महारानी लुक पर भी भंसाली ने बहुत खर्च किया था। दीपिका ने जो ज्वेलरी पहनी थी उसे 200 कारीगरों ने 600 दिनों में बनाया था। इतना ही नहीं घूमर गाने की मेकिंग में 12 करोड़ का खर्च आया था। साल 2022 को रिलीज हुई फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी के सेट को बनाने में लगभग 7 करोड़ रुपए का खर्चा आया था। इस सेट को बनाने में 5 से 6 महीने लगे थे। वहीं, साल 2024 में रिलीज हुई संजय लीला भंसाली की पहली वेब सीरीज 'हीरामंडी' के सेट को बनाने में लगभग 200 करोड़ रुपए का खर्च आया था। 3 एकड़ में फैला यह सेट भंसाली के करियर का अब तक का सबसे बड़ा सेट रहा। सेट को बनाने में 700 कारीगरों ने 210 दिनों तक काम किया था। वहीं इस सीरीज का सीक्वल हीरामंडी 2 जल्द ही रिलीज होने वाला है। सीरीज की शूटिंग जारी है। सलमान के बयान से आहत हुए थे संजय लीला भंसाली सलमान खान और संजय लीला भंसाली का रिश्ता काफी लंबे समय तक उतार-चढ़ाव भरा रहा। दोनों ने साथ में खामोशी: द म्यूजिकल (1996) और हम दिल दे चुके सनम (1999) जैसी फिल्में की थीं, लेकिन बाद में सलमान खान के एक बयान से दोनों के बीच अनबन की खबरें सामने आने लगीं। दरअसल, साल 2010 में संजय लीला भंसाली के डायरेक्शन में बनी फिल्म गुजारिश रिलीज हुई थी। फिल्म पर सलमान ने कहा था कि कोई कुत्ता भी फिल्म को देखने नहीं गया। सलमान के इस बयान से संजय लीला भंसाली को काफी ठेस पहुंची और उनके बीच मनमुटाव हो गया। सलमान के साथ भंसाली की फिल्म बंद हुई संजय लीला भंसाली ने इंशाल्लाह नाम की फिल्म अनाउंस की थी, जिसमें सलमान खान और आलिया भट्ट मुख्य भूमिकाओं में थे। यह फिल्म भंसाली और सलमान की 20 साल बाद साथ में वापसी होती, लेकिन प्रोजेक्ट अचानक बंद कर दिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सलमान और भंसाली के बीच क्रिएटिव डिफरेंस थे। सलमान फिल्म में एक्शन और मसाला एलिमेंट्स चाहते थे, जबकि भंसाली इसे एक क्लासिक रोमांटिक फिल्म की तरह बनाना चाहते थे। पाकिस्तानी एक्टर्स को कास्ट करना चाहते थे भंसाली हीरामंडी भंसाली द्वारा डायरेक्ट की गई पहली वेब सीरीज है। इस सीरीज का आइडिया भंसाली के पास पिछले 18 साल से था, उस समय इस सीरीज में वो रेखा, करीना कपूर और रानी मुखर्जी को कास्ट करना चाहते थे। उसके बाद दूसरी कास्ट में उन्होंने पाकिस्तानी कलाकारों के नाम भी सोचे थे। जिसमें माहिरा खान, फवाद खान और इमरान अब्बास का नाम शामिल है। लेकिन ये भी नहीं हो सका, जिसके बाद भंसाली ने हीरामंडी द डायमंड बाजार में मनीष कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, शर्मिन सहगल, ताहा शाह, फरदीन खान और शेखर सुमन और उनके बेटे सुमन अहम रोल में नजर आ रहे हैं। इन फिल्मों के चलते विवादों में रहे संजय लीला भंसाली

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Hot Ones host on Louis Theroux podcast and big Pokémon news: What to stream this week

This week also sees the release of Monster Hunter Wilds, Pamela Anderson's new film, and Lisa's debut album.

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Update: Bog body is young female, not teen male

New research has found that the Iron Age bog body discovered in 2023 in Bellaghy, County Derry, Northern Ireland, initially thought to be a teenaged boy was in fact a female between 17 and 22 years old when she died 2,000 years ago. The vast majority of Iron Age bog-preserved individuals are male, which makes this discovery highly significant.

The headless body — bones, some soft tissues and one kidney — were found in the peat bog in October of 2023. The Police Service of Northern Ireland’s Body Recovery Team were unable to determine if they were recent or archaeological, so archaeologists excavated the remains and a forensic anthropologist performed a post-portem on them. The anthropologist found the remains were definitely archaeological, dating to between 343 and 1 B.C., and that they belonged to a male between 13 and 17 years old.

Those preliminary results have now been upended by an international team of forensic scientists and archaeologists who have spent a year studying the recovered remains.

The individual had an estimated stature of around 5 foot 6 inches. While the body was well preserved, the skull was absent and was not recovered. Cut marks on the neck vertebrae indicate the cause of death as an intentional decapitation in the bog. This may be part of a pattern of ritual and sacrifice during the Iron Age period. Part of a woven item made of plant material was also recovered from below the knees and is thought to be part of an associated artefact. The museum is currently working with specialists to identify what this artefact could potentially be and are describing it as a woven plant-based fabric, likely associated with the individual and dating to this period. […]

Eileen Murphy is Professor of Archaeology at the School of Natural and Built Environment at Queen’s University Belfast. She carried out the osteological assessment which provided a biological profile for the individual and ascertained the cause of their death. She explained,

“It was a privilege to undertake the osteological analysis of these important, but also very poignant, archaeological human remains. As is the case for so many Iron Age bog bodies, the young woman suffered a highly violent death which involved the flow of blood from her throat followed by decapitation. The head was taken away but the body was left where it fell only to be discovered by machine workers some 2000 years later. Further scientific analysis, including the conclusion of an aDNA analysis, will no doubt yield more fascinating findings.”

The human remains and woven artifact are now in the State Pathology Laboratory to National Museums NI where they will undergo conservation after the scientific studies are concluded.



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Florence Pugh opens Harris Reed show as London Fashion Week starts

London Fashion Week has kicked off, showcasing the best of British design.

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'Gimme a hug': Drake's lover-boy comeback after Kendrick feud

As Drake drops a new album after his Not Like Us diss track humiliation - what's his strategy?

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New album will be unexpected, says Rihanna

The multi-Grammy Award winning singer has kept fans waiting for years for her new album.

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New album will be unexpected, says Rihanna

The multi-Grammy Award winning singer has kept fans waiting for years for her new album.

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Iron Age divination spoon found on the Isle of Man

An Iron Age bronze spoon believed to have been used to foresee the future has been unearthed in the parish of Patrick on the Isle of Man. It is one of only 28 examples of this type of spoon known in the world, and the first of them to be discovered on the Isle of Man.

The spoon has a broad strawberry-shaped bowl with spiral designs on each side of the base like tiny leaves. There are two engraved lines that intersect in a cross at the deepest part of the bowl. The handle is circular with a semi-spherical bump in the center.

Allison Fox, Curator for Archaeology for Manx National Heritage said:

“Dating to around 400-100 BC, this bronze spoon is one of the most intriguing objects ever discovered on the Island. Iron Age finds are relatively scarce, with bronze spoons dating to this period rare, making this find all the more remarkable. Although it sounds rather plain because we call it a spoon, it really is an unusual find illustrating potential prehistoric ritual activity taking place on the Isle of Man”. […]

“The spoons are usually found in pairs, and it has been suggested that liquid of some form would have been poured into the spoon which has the cross, and whatever quarter it landed in would tell something about the future. The details of such ceremonies have been lost in the midst of time.

The spoon was found by metal detectorist Rob Middleton on private land belonging to farmer David Anderson on the west coast of the island. The finder and the landowner have donated the spoon to Manx National Collections. As of Valentine’s Day, it is on permanent display at the House of Manannan, a museum dedicated to Man’s history near the find site.



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Musician seeks help to recover ancient violin stolen in pub

The instrument is worth a six-figure sum but also holds a lot of emotional value.

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Man found guilty of attempted murder of Salman Rushdie

Hadi Matar attacked the renowned British-Indian writer on stage at a New York lecture.

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Kendrick Lamar earns first UK number one with Not Like Us

The diss track, the knockout blow in his feud with Drake, is now number one in both the US and UK.

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Curbing the Power of the Popes

Curbing the Power of the Popes JamesHoare

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नूतन की 34वीं डेथ एनिवर्सरी, बदसूरत बुलाते थे लोग:मिस इंडिया बनने वालीं पहली एक्ट्रेस; अफेयर की खबरें उड़ीं तो संजीव कुमार को जड़ा थप्पड़

21 फरवरी, 1991.. ये वो तारीख है, जब हिंदी सिनेमा की एक ऐसी हीरोइन ने दुनिया को अलविदा कह दिया था, जिनकी एक्टिंग का हर कोई मुरीद था। लोग कहते थे कि जब वे पर्दे पर आतीं तो एक्टिंग नेचुरल लगती थी। उनकी मुस्कान और सादगी हर किसी के दिल में घर कर जाती थी। वो एक्ट्रेस थीं नूतन बहल, जिन्हें आज इस दुनिया से रुखसत हुए 34 साल बीत चुके हैं। शुरुआती दौर में उन्हें बदसूरत होने के ताने मिले। कुछ लोग उनके सांवले रंग पर तंज कसते थे, जिस कारण वे खुद को खूबसूरत नहीं मानती थीं। लेकिन जब उन्होंने मिस इंडिया का खिताब जीता तो वही लोग उनकी तारीफ करते भी नहीं थकते थे। वुमन सेंट्रिक रोल वाली फिल्में उनकी पहचान बनीं। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में एक्ट्रेसेस को केवल शोपीस के तौर पर इस्तेमाल करने की परंपरा को बदला। यहां तक मिस इंडिया में हिस्सा लेने वाली पहली एक्ट्रेस थीं। हिंदी फिल्मों में स्विमसूट पहनने वाली भी वो पहली एक्ट्रेस थीं। अपनी जिंदगी की हर लड़ाई को बखूबी लड़कर जीतने वाली नूतन कैंसर से हार गईं। आखिरी दिनों में नूतन का बुरा हाल हो गया था। वे चीखती-चिल्लाती रहती थीं। जिस दिन नूतन को कैंसर का पता चला था, उन्होंने कहा था- आज मी सुटली। यानी आज मैं आजाद हो गई। नूतन की डेथ एनिवर्सरी पर जानते हैं उनकी लाइफ से जुड़े दिलचस्प किस्से… खुद को समझती थीं बदसूरत, ठुकरा दी थी मुगल-ए-आजम साल 1945 में फिल्म नल दमयंती से नूतन ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी। जब वे 14 साल की थीं, तब उन्हें फिल्म मुगल-ए-आजम में अनारकली का रोल ऑफर हुआ। लेकिन वे अपने आप को बदसूरत मानती थीं, जिस कारण उन्होंने इस फिल्म को करने से मना कर दिया। हालांकि, फिर 1950 में फिल्म हमारी बेटी में काम किया। इस फिल्म को उनकी मां शोभना समर्थ ने ही बनाया था। फिल्म में नूतन की छोटी बहन का रोल उनकी असल बहन तनुजा ने निभाया था। मिस इंडिया बनने वाली पहली एक्ट्रेस थीं नूतन नूतन ने साल 1952 में मिस इंडिया का खिताब अपने नाम किया था। उस वक्त उनकी उम्र महज 16 साल थी। ये टाइटल जीतने वाली वो पहली इंडियन एक्ट्रेस थीं। खास बात यह है कि उस साल दो मिस इंडिया पेजेंट्स हुए थे। एक में इंद्राणी रहमान और दूसरे में नूतन विजेता बनी थीं। इसी इवेंट में नूतन को मिस मसूरी का ताज भी पहनाया गया था। वहीं, बालिग होने तक नूतन ने हमलोग, शीशम, परबत और आगोश जैसी फिल्मों में काम किया। इसके बाद वो लंदन चली गई थीं। 'सीमा' से मिला बॉलीवुड में पहला बड़ा ब्रेक लंदन से आने के बाद नूतन को फिल्म सीमा के जरिए बॉलीवुड में पहला बड़ा ब्रेक मिला। इसमें उनके अलावा बलराज साहनी और शोभा खोटे नजर आए। फिल्म का निर्देशन अमिया चक्रवर्ती ने किया। इस फिल्म के लिए नूतन को फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड मिला। इसके बाद उनके फिल्मी करियर को एक अलग पहचान मिली। फिर उन्होंने देव आनंद के साथ पेइंग गेस्ट (1957), राज कपूर के साथ अनाड़ी (1959), सुनील दत्त के साथ सुजाता (1959) और दिलीप कुमार के साथ कर्मा (1986) जैसी फिल्मों में काम किया। लेकिन साल 1963 में आई फिल्म बंदिनी में उन्होंने एक युवा कैदी का रोल निभाया था, जिसमें उनके परफॉर्मेंस की काफी तारीफ हुई थी। शादी के बाद फिल्मी करियर छोड़ना चाहती थीं नूतन 1959 में जब नूतन सिर्फ 23 साल की थीं, तो उन्होंने लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी कर ली थी। नूतन शादी के बाद अपना फिल्मी करियर छोड़ना चाहती थीं। तभी डायरेक्टर बिमल रॉय उनके पास फिल्म बंदिनी का ऑफर लेकर आए। लेकिन नूतन ने फिल्म का ऑफर ठुकरा दिया। फिर जब पति रजनीश ने उन्हें समझाया तो उन्होंने इस फिल्म को करने के लिए हामी भर दी। ये फिल्म उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म बन गई। इस फिल्म के लिए भी नूतन को फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला। फिल्म की शूटिंग के दौरान वो प्रेगनेंट भी थीं। नूतन इससे पहले भी बिमल रॉय के साथ फिल्म सुजाता काम कर चुकी थीं और उस फिल्म के लिए नूतन को फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड भी मिला था। वहीं, शादी के करीब दो साल बाद नूतन ने मोहनीश बहल को जन्म दिया, जो बॉलीवुड के जाने-माने एक्टर हैं। कई फिल्मों में उन्होंने निगेटिव रोल निभाए हैं। एक शो के दौरान उन्होंने अपने माता-पिता की लव स्टोरी के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा, ‘उनकी लव स्टोरी आज भी रहस्य बनी हुई है। किसी को नहीं पता कि वे कैसे मिले, लेकिन मैंने अपनी एक कल्पना बनाई है। चूंकि मेरे पिता रॉयल नेवी में थे, तो शायद मेरी मां कभी शिप पर गई हों और वहीं उनकी मुलाकात हुई होगी। फिर दोनों में प्यार हो गया और शादी कर ली।’ मोहनीश ने यह भी बताया, 'पिता को नहीं पता था कि मां इतनी बड़ी सुपरस्टार हैं। जब उन्हें पता चला कि तो वह शॉक्ड हो गए और कहते थे कि मैंने यह क्या कर दिया। क्योंकि जितने पैसे उन्हें एक फिल्म से मिलते थे, उतनी सैलरी तो मेरे पिता के हेड ऑफिसर की हुआ करती थी। हालांकि, मेरी मां पापा की इनसिक्योरिटी से वाकिफ थीं। इसलिए उन्होंने कभी अपना स्टारडम नहीं दिखाया। वो शूट पर पापा की गाड़ी से ही जाती थीं और घर के खर्च की जिम्मेदारी भी पापा के ऊपर ही थी। शादी के बाद भी कम नहीं हुआ नूतन का स्टारडम फिल्मी इंडस्ट्री में अक्सर देखा जाता है कि अगर किसी एक्ट्रेस की शादी हो जाती है, तो उसका करियर धीरे-धीरे ढलने लगता है। लेकिन नूतन के साथ ऐसा नहीं था, क्योंकि शादी के बाद भी फिल्ममेकर अपनी फिल्मों में उन्हें कास्ट करने को तैयार रहते थे। उन्हें फिल्म में लेने से पहले यह सुनिश्चित किया जाता था कि फीमेल लीड की भूमिका सशक्त हो और वह हीरो के बराबरी की हो। अफेयर की खबरों से बौखलाकर जड़ा था संजीव कुमार को थप्पड़ कहा जाता है कि 1969 में फिल्म देवी की शूटिंग के दौरान नूतन ने संजीव कुमार को सरेआम थप्पड़ मार दिया था। दरअसल, जब फिल्म की शूटिंग शुरू हुई थी तो दोनों एक-दूसरे को जानते नहीं थे। फिर धीरे-धीरे उनकी दोस्ती हो गई। इसके बाद कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दोनों के अफेयर की खबरें छपने लगी थीं। इससे नूतन और उनके पति के बीच भी काफी झगड़ा हुआ था। लेकिन जब नूतन ने देवी के सेट पर एक मैगजीन में अपने और संजीव कुमार के अफेयर की खबर पढ़ी तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने जब इस बारे में संजीव कुमार से बात की तो उन्होंने इस पूरी बात पर बड़ी ही बेपरवाही से रिएक्ट किया। नूतन को ये बात बुरी लगी और उन्होंने फिल्म के सेट पर ही सबके सामने संजीव कुमार को थप्पड़ जड़ दिया। बाद में खबरें आई थीं कि नूतन ने अपने पति रजनीश के कहने पर ऐसा किया था। 50 के दशक में स्विमसूट पहनकर मचाया था तहलका 50 या 60 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं का काम करना ही बहुत बड़ी बात माना जाता था। ऐसे में उसी दशक में नूतन ने स्विमसूट पहन कर सभी को हैरान कर दिया था। एक्ट्रेस ने अपनी फिल्म दिल्ली का ठग में स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहन शॉट दिए थे। बाद में शबाना और स्मिता पाटिल जैसी एक्ट्रेसेज़ भी उनसे प्रेरित हुईं। मां के खिलाफ गईं अदालत, 20 साल नहीं की बात नूतन को उनकी मां ने ही फिल्मों में लॉन्च किया था। लेकिन दोनों की जिंदगी में एक दौर ऐसा भी आया, जब उनके रिश्ते काफी बिगड़ गए थे। दरअसल, नूतन ने अपनी मां पर उनके कमाए पैसों का गलत और उनकी मर्जी के बगैर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। इस वजह से उन्होंने मां के खिलाफ कोर्ट केस तक कर दिया था। इस वजह से दोनों की 20 साल तक बातचीत बंद रही। नूतन अपनी मां से इतनी खफा थीं कि एक बार उन्हें फ्लाइट में देखकर नूतन फ्लाइट से ही उतर गई थीं। शोभना समर्थ ने बेटी के इस बर्ताव पर कहा था कि उन्हें ऐसा करने के लिए उनके पति रजनीश ने भड़काया था। ब्रेस्ट कैंसर से हुआ था निधन 1990 में नूतन को ब्रेस्ट कैंसर का पता लगा। उस समय वह गरजना और इंसानियत फिल्मों में काम कर रही थीं। फिल्म के प्रोड्यूसर ने नूतन से कहा कि वह अपने हिस्से की शूटिंग कर लें। लेकिन एक्ट्रेस ने यह कहकर इनकार कर दिया कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है। जहां एक तरफ गरजना कभी रिलीज ही नहीं हो सकी, वहीं दूसरी तरफ नूतन और विनोद मेहरा के निधन के बाद इंसानियत फिल्म को कास्ट बदलकर साल 1994 में रिलीज किया गया था। नूतन की करीबी दोस्त ललिता ने अपनी लिखी किताब Nutan-Asen Mi.. Nasen Mi में बताया था कि नूतन को बीमारी की शुरुआत एक चुभने वाले दर्द से हुई थी। बगल में ऐसा लगा जैसे कुछ चुभन सी हो रही है। फिर साल 1990 में उन्हें कैंसर का पता चला, तो नूतन ने कहा था आज ही सुतली। यानी आज मैं आजाद हो गई। धीरे-धीर उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया, लेकिन 21 फरवरी 1991 को महज 54 की उम्र में उनका निधन हो गया था। नूतन के अंतिम संस्कार के बाद मां घर आईं, बोली- मुझे खाना दो शोभना समर्थ ने एक इंटरव्यू में बताया था कि नूतन की मौत के बाद उन्हें उनके जाने का अहसास तक नहीं हुआ। बेटी के अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने घर जाकर नौकरों से खाना मांगा था। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे नूतन मरी नहीं है। कुछ हुआ नहीं है। उनके मुताबिक, नूतन में जीने की इच्छा खत्म हो चुकी थी। वह जीना नहीं चाहती थी। दादी की फिल्मों ने मेरी सोच बदली- प्रनूतन नूतन की पोती और एक्टर मोहनीश बहल की बेटी, प्रनूतन ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। उन्होंने कहा दुर्भाग्य से मैं अपनी दादी से कभी मिली नहीं, क्योंकि उनका देहांत 1991 में हो गया था। मेरा जन्म 1993 में हुआ। तो मेरी कोई पर्सनल यादें नहीं हैं, लेकिन उनके सिनेमा के जरिए हम सबने उन्हें बहुत करीब से महसूस किया है। मेरे लिए बंदिनी वो फिल्म थी, जिसने मुझे एक्टर बनने के लिए इंस्पायर किया। इस फिल्म का मुझ पर बहुत गहरा असर पड़ा और एक एक्टर के तौर पर मेरी सोच को बदला। दादी का साथ हमेशा रहे, इसलिए मेरा नाम प्रनूतन रखा गया प्रनूतन ने कहा- मेरे दादाजी ने मेरा नाम रखा था, क्योंकि वे चाहते थे कि मेरी दादी का नाम मेरे साथ हमेशा जुड़ा रहे। वो मुझे नूतन नाम देना चाहते थे, लेकिन पापा को लगा कि उनके लिए थोड़ा अजीब होगा - अपनी मां का नाम सीधे पुकारना। इसलिए मेरे दादाजी ने मेरे लिए ये नाम बनाया - प्रनूतन, जिसका मतलब है नई जिंदगी। ---------------- बॉलीवुड की ये खबर भी पढ़ें.. दिवालिया हो गई थीं रश्मि देसाई:कार में सोना पड़ा; बिग बॉस गईं, वहां सुसाइड के ख्याल आए, सलमान ने समझाया, अब दूसरी इनिंग शुरू टेलीविजन में बड़ा नाम रहीं रश्मि देसाई पिछले कुछ समय से इंडस्ट्री से गायब थीं। पिछले कुछ साल उनके लिए अच्छे नहीं रहे। आर्थिक और शारीरिक रूप से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पूरी खबर पढ़ें..

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What will Amazon do with James Bond?

Long-serving masterminds Barbara Broccoli and Michael G Wilson give creative control to Amazon.

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What will Amazon do with James Bond?

Long-serving masterminds Barbara Broccoli and Michael G Wilson are giving creative control to Amazon MGM Studios.

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How Have Cults Shaped American History?

How Have Cults Shaped American History? JamesHoare

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Crumbling English museums get £270m funding

Some venues said they were at risk of "imminent threat of sale of collections or closure".

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दिवालिया हो गई थीं रश्मि देसाई:कार में सोना पड़ा; बिग बॉस गईं, वहां सुसाइड के ख्याल आए, सलमान ने समझाया, अब दूसरी इनिंग शुरू

टेलीविजन में बड़ा नाम रहीं रश्मि देसाई पिछले कुछ समय से इंडस्ट्री से गायब थीं। पिछले कुछ साल उनके लिए अच्छे नहीं रहे। आर्थिक और शारीरिक रूप से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रश्मि ने बताया कि एक वक्त पर वे दिवालिया (बैंकरप्ट) हो गई थीं। रहने को घर नहीं था। कार में सोना पड़ा था। पैसों के लिए बिग बॉस शो में गईं। वहां की जर्नी भी काफी मुश्किलभरी रही। वहां इतनी परेशान हो गईं कि सुसाइड के ख्याल आने लगे। शो के होस्ट सलमान खान के समझाने पर वे थोड़ी नॉर्मल हुईं। तमाम कठिनाइयों के बाद रश्मि देसाई ने दोबारा अपना करियर रीस्टार्ट किया है। वे इस साल एक गुजराती और हिंदी फिल्म में देखी गईं। संघर्ष से सफलता की कहानी, खुद उनकी जुबानी परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी मेरे परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी। मां टीचर थीं, उनकी सैलरी 15 हजार रुपए थी। मां को मुझे और मेरे भाई को पालना था। इतने पैसे काफी नहीं थे। कभी-कभार खाने को भी लाले पड़ जाते थे। शायद इसी वजह से मैंने कम उम्र में ही कमाने का फैसला कर लिया। ऐसा नहीं है कि मुझे एक्टर बनना था। मुझे डांस कोरियोग्राफर या एयरहोस्टेस बनने का मन था। मैं सरोज खान और माधुरी दीक्षित की डांसिंग स्किल की दीवानी थी। हालांकि जब एक बार एक्टिंग का ऑफर आया, फिर इसी फील्ड में एडजस्ट हो गई। बाकी सारे सपने पीछे रह गए। इनकी भोजपुरी फिल्म को मिला नेशनल अवॉर्ड मैंने 2002 में असमी फिल्म कन्यादान से डेब्यू किया। इसके बाद दर्जनों भोजपुरी फिल्मों में काम किया। 2005 में मेरी एक भोजपुरी फिल्म ‘कब होई गवना हमार’ को बेस्ट भोजपुरी फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला था। इस फिल्म की शूटिंग के वक्त मैं सिर्फ 20 साल की थी। मुझे उस वक्त ज्यादा कुछ समझ नहीं थी। सेट पर सिर्फ खाना खाने से मतलब होता था। इस फिल्म के बाद पहली बार मेरा इंटरव्यू हुआ था। टीवी शो से निकाली गईं 2006 के आस-पास मैंने टेलीविजन का रुख किया। करियर के शुरुआती दिनों की बात है, मैंने एक शो जॉइन किया। सब कुछ होने वाला था, तभी प्रोड्यूसर्स के पास किसी का फोन आया। वहां से कुछ बोला गया और मुझे शो से हटा दिया गया। मेरी जगह पर किसी और को कास्ट कर लिया गया। वह समय मेरे लिए काफी दुखदायी था। टेलीविजन में ही सिमटकर रह गईं मैं कई सीरियल्स में दिखी, लेकिन पहचान कलर्स टीवी पर आने वाले शो उतरन से मिली। उस सीरियल ने मुझे पॉपुलैरिटी दी। यह सीरियल 5 साल तक चला। पैसे भी आते थे। किसी चीज की कमी नहीं थी। हालांकि कुछ वक्त बाद एहसास हुआ कि मैं एक्सप्लोर नहीं कर पा रही हूं। मैंने टेलीविजन में लंबे समय तक एक कमिटमेंट वाला रोल किया। इसी वजह से वहां सिमटकर रह गई थी। बैंकरप्ट हुईं, रहने को छत नहीं 2017 का समय था। मेरे पैसे खत्म हो गए थे। करोड़ों का लोन हो गया था। बैंकरप्ट हो गई थी। पेट कैसे पालना है, यह भी समझ नहीं आ रहा था। मैंने अपनी पूरी लाइफ में बहुत पैसे कमाए, लेकिन इन्हें मैनेज नहीं कर पाई। मुझे उन पैसों से अपने लिए कुछ कर लेना चाहिए था। लोगों ने धोखा दिया, मेरे पैसे खा गए। एक समय ऐसा आया, जब मुझे चार दिन कार में सोना पड़ा। उस स्थिति में मेरी कार ही सबसे ज्यादा काम आई। पैसों के लिए बिग बॉस गईं, वहां सुसाइड के ख्याल आए पैसा ही सबसे बड़ा कारण था, जिसकी वजह से मैं बिग बॉस का हिस्सा बनी। उसके पहले मेरे पास पैसे आए थे, लेकिन घर खरीद लिया। मैं पैसों के लिए बिग बॉस का हिस्सा बन तो गई, लेकिन वहां सर्वाइव करना आसान नहीं रहा। शो में कई बार ऐसा हुआ कि मुझे सुसाइड तक के ख्याल आने लगे थे। मैं कई बार टूटी। मेरी चीजों का बहुत मजाक बनाया गया। भावनाओं के साथ खेला गया। बाहर काफी ट्रोलिंग हुई। मेरा मन बिल्कुल अशांत रहने लगा। फिर एक दिन वीकेंड वाले एपिसोड में सलमान सर ने मुझे समझाया। तब जाकर मुझे थोड़ी हिम्मत मिली। सलमान ने पिता जैसे सपोर्ट किया मैंने सलमान खान के साथ एक ऐड वीडियो में भी काम किया है। हालांकि मैं पब्लिकली उनके बारे में बात करना पसंद नहीं करती। बस इतना समझिए कि वे राजा आदमी हैं। लोगों के लिए बहुत करते हैं। उनसे जब भी बात होती है, हमेशा फ्यूचर को लेकर बात करते हैं। साथ ही हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। सलमान सर ने मेरे लिए जो किया है, वह मैं बता नहीं सकती। एक पिता जितना करते हैं, उतना ही सलमान सर ने मेरे लिए किया है। मां ने इससे भी ज्यादा स्ट्रगल किया मैंने अपनी मां को मुझसे भी ज्यादा स्ट्रगल करते देखा है। परेशानियों से कैसे लड़ते हैं, मैंने अपनी मां से सीखा है। पिता नहीं थे, मां ने ही सिंगल पेरेंट के तौर पर मुझे बड़ा किया। ऐसा नहीं था कि मैं उनके लिए कोई आसान चाइल्ड थी, मुझे झेलना ही उनके लिए बहुत मुश्किल होता था। मेरे मुकाबले भाई ज्यादा समझदार था। मैंने जीवन में इतनी परेशानियां झेली हैं, कोई दूसरा व्यक्ति अब तक खत्म हो गया रहता। शायद, यह मेरी मां की देन है कि मुझे उनके सामने अपनी परेशानियां भी कम लगती हैं। गुजराती और हिंदी फिल्मों से दमदार वापसी मैं ट्रैवल बहुत करती हूं। कुछ समय पहले की बात है। पहाड़ों पर सोलो ट्रिप के लिए गई थी। वहां मैंने पर्वतों से निकलने वाला पानी पी लिया। मुझे पेट में इन्फेक्शन हो गया। मैं 6-7 महीने के लिए बिल्कुल घर बैठ गई। शायद इसी वजह से मैं इन दिनों ज्यादा प्रोजेक्ट्स में नजर नहीं आई। मैं सिर्फ अपनी हेल्थ पर काम कर रही थी। अब दोबारा फिल्में कर रही हूं। मैंने हाल ही में एक गुजराती फिल्म में भी काम किया है। हिंदी भाषी भी इसे पसंद कर रहे हैं। वहीं पिछले महीने रिलीज फिल्म 'हिसाब बराबर' में भी आपने मुझे देखा। ---------------------------- पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी यहां पढ़ें.. एक शो के 20-30 रुपए मिलते थे: कैंसर से गुजरीं पत्नी, सफलता नहीं देख पाईं कुछ तो गड़बड़ है दया…ये डायलॉग सुनते ही दिलों-दिमाग पर एक व्यक्ति की तस्वीर छप जाती है। एक ऐसा व्यक्ति जिन्हें लोग सच में CID का ऑफिसर समझने लगे थे। हम बात कर रहे हैं शिवाजी साटम की। वैसे तो इन्होंने दर्जनों हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया है, लेकिन इनकी असल पहचान CID के ACP प्रदुम्न के रोल से है। पूरी खबर पढ़ें..

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'Real life Squid Game': Kim Sae-ron's death exposes Korea's celebrity culture

Analysts say they are not optimistic that the ruthless "cancel culture" surrounding the industry will change.

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Restoration of 16th c. organ uncovers lost frescoes

The Antegnati organ in the Duomo Vecchio of Brescia is one of the greatest surviving instruments from the Italian Renaissance for both the quantity and the quality of the original materials preserved. Built in 1536 by Gian Giacomo Antegnati, the organ still retains 1,300 original tin pipes, the oldest and largest group of Antegnati pipes in existence today, and much of its original wooden case, carved by sculpture Battista Piantavigna in 1537.

Also known as the Rotonda, the Duomo Vecchio (Old Cathedral) is a rarity in its own right: a Romanesque circular church from the 11th century that is one of the only ones of its kind to survive in Italy. It also bears the distinction of standing right next to what in most circumstances would have been its replacement, the Duomo Nuovo. They are officially co-cathedrals, the old known as the Winter Co-Cathedral of Santa Maria Assunta and the new as the Summer Co-Cathedral.

The Duomo Vecchio was the sole Cathedral of Santa Maria Assunta when the organ was built. (Construction of the Duomo Nuovo began over the demolished San Pietro de Dom in 1604.) The organs made by the Antegnati family were famed for their exceptional quality, and 50 years after the cathedral organ was complete, Constanzo Antegnati boasted that “the organ that is now played in our Domo is considered one of the best and most famous that can be heard today in all of Italy.”

Girolamo da Romano, known as Romanino, was engaged to paint the organ doors in 1539. He painted both the interior left and right doors, visible when the doors were open and the organ was being played, and the exterior doors forming a single double-wide composition when they were closed. The interior left door features the Birth of the Virgin Mary, while the Visit to Elizabeth is on the interior right door. The big scene on the closed double doors is the Marriage of the Virgin.

Romanino integrated the Marriage scene, and therefore the monumental façade of the organ itself, into the architecture of the church, extending the visual motif to frescoes on the walls flanking the organ. In a 17th century catalogue of the churches of Brescia, Bernardino Faino describes Romanino’s painting of the doors and flanking walls:

The doors of this [organ] are painted in oil both inside and outside by the hand of Girolamo Romanino also from Brescia, soft and full coloring that imitates Titian. Painted on the inside are the Visitation of a Woman and the Nativity. On the outside the Marriage of the said Blessed Virgin is represented, with a quantity of figures, and on the façade where the organ is mounted many figures made by the aforementioned in fresco that accompany the said story.

The “many figures” on the frescoes to the left and right are musicians. They flank the depiction of the Marriage of the Virgin painted on the exterior of the double doors of the organ so you see the scene only when they’re closed. (When they’re open they obviously obscure the walls on either side.) The musicians match the wedding scene, a sort of live band for the central festivities, and Romanino matched the revolving columns on the sides of the organ that opened and closed the doors with painted columns in remarkably lifelike realism and perspective. The musicians play percussion and wind instruments only, including a Renaissance cornetto. There are no string instruments, almost certainly a deliberate omission to connect the painted musicians to the sounds produced by the organ. Scholars hypothesize that the two bystanders on the left wall represent Gian Giacomo Antegnati and Giovanni Piantavigna, makers of the organ and case, and the bystander on the right wall is a self-portrait of Romanino, tying the art of the organ, both the painting on it and the music from it, to its creators.

This marvelously unified vision was split up and hidden over the centuries as the organ underwent numerous modifications and restorations. The original organ doors were moved to the Duomo Nuovo when it was finally completed 200 years ago, framed and mounted on a chapel wall as a triptych. The frescoes were whitewashed into oblivion. The organ was enlarged in 1826 by organ-makers the Serassi Brothers of Bergamo. They were contractually obligated to preserve all of the sound materials, most importantly the Antegnati tubing.

Less than two centuries after that restoration, the precious pipes were in parlous condition, attacked by “tin cancer,” a type of corrosion frequently seen in historic organs in northern Italy. In 2014, the parish, city and non-profit organizations began to raise and allocate funds for an emergency intervention to address the corrosion before it ate away at the pipes. Conservators found many other issues that needed addressing including gaps and dents at the base of the pipes and rotted leather gaskets and bellows.

The damage required that the organ be dismantled and restored by specialists off-site. In 2017, the comprehensive restoration began. The Piantavigna case, which remained in the cathedral, was restored in situ. It was during work on the case that restorers removed the whitewash on the walls to the side of the organ and revealed the long-lost Romanino frescoes last mentioned by Faino. Twelve figures emerged from the white-out: eight musicians and four bystanders.

The original organ doors were reclaimed from the Duomo Nuovo and returned to their proper placement on the revolving columns. The columns were repaired and a new remote-controlled system installed to open and close them. Another historic gem was found inside one of the columns: a note folded 32 times that had been hidden by the craftsman who made the column. It reads: “Mi Pasì da Pasira si fat questi coloni de l’orgen del dom / El dì 12 de aprilil mili 538,” meaning “I, Pasino da Passirano, made these columns of the organ of the Duomo/The day 12 of April 1538.”

Detail of restored pipes. Photo courtesy La Voce del Popolo.The organ has been completely restored by the Fratelli Mascioni company and reassembled. The large bellows have been placed in the specially prepared room behind it. The windchests (boxes that receive the air introduced by the bellows to transmit it to the pipes) of the double basses (the pipes of the lowest registers) with the long wooden pipes have been positioned inside the ancient case, freeing the view of the rediscovered frescoes by Romanino. The master windchest and the auxiliary ones have been connected to the keyboard and pedal board. Most of the pipes, after the meticulous restoration, have been placed in their original positions.

The bellows were opened and cleaned and re-cased after removing the old exhausted skins. The wind pipes were restored by repairing the cracks, replacing the gaskets and restoring the original paint. The mechanics were restored and integrated where missing. The keyboard was rebuilt according to the original measurements and shapes, the natural note keys were covered in ebony and those of the altered notes in walnut, with ivory plating kindly donated by a private individual.

The pedalboard was rebuilt according to the “lectern” type, with measurements taken from the Serassi organ in the church of S. Oliveto. The restoration of the pipes required a great deal of effort to remove the “tin cancer” that had attacked a good part of the “Antegnati” pipes.

On November 19th, 2023, the restored Antegnati organ played again after six years of silence. You can hear its restored sound in this Italian news story:



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