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» » » डॉक्टरी की ताकि फिल्मों में आ सकें:डेडबॉडी तक का रोल किया; कार बेचकर साइकिल पर आए; अब छावा के कवि कलश बन छाए विनीत
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विनीत कुमार एक ऐसा नाम जिसने सही मायनों में संघर्ष का मतलब बताया। आज-कल की दुनिया में हम एक-दो साल स्ट्रगल करके थक जाते हैं और खुद को दुखिया साबित कर देते हैं। विनीत कुमार 2000 के आस-पास मुंबई आए थे। 25 साल हो गए। इस दौरान काफी फिल्मों मेंं भी दिखे, लेकिन असल पहचान अब जाकर मिली है। भारत जैसे देश में डॉक्टरी की पढ़ाई करना अपने आप में एक युद्ध से कम नहीं होता। विनीत ने डॉक्टरी की पढ़ाई सिर्फ इसलिए की, ताकि रात में मरीज देख सकें और दिन में फिल्मों के लिए ऑडिशन दे सकें। जो लोग सिनेमा के शौकीन होंगे, उन्होंने इन्हें गैंग्स ऑफ वासेपुर और मुक्काबाज जैसी फिल्मों में देखा होगा। इन दोनों फिल्मों में इनके काम को जरूर सराहा गया, लेकिन प्रसिद्धि नहीं मिली। 14 फरवरी को रिलीज हुई फिल्म छावा ने शायद विनीत को वो पहचान दिला दी है, जिसके वे हमेशा से हकदार थे। इस फिल्म में उन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज के दोस्त कवि कलश का किरदार निभाया है। आज सक्सेस स्टोरी में कहानी एक्टर विनीत कुमार की.. जन्म बनारस में, पिता गणितज्ञ मेरा जन्म बनारस मे हुआ था। मेरे पिताजी डॉ. शिवराम सिंह मैथ के बहुत बड़े जानकार हैं। उन्हें बनारस के यूपी कॉलेज (उदय प्रताप कॉलेज) में रहने के लिए घर मिला हुआ था। इस तरह जीवन के शुरुआती 20 साल मेरे वहीं बीते। कॉलेज 100 एकड़ में फैला था। घर के सामने ही बड़ा सा मैदान था, जहां मैं खेला करता था। उस मैदान में इंटरनेशनल लेवल के प्लेयर्स प्रैक्टिस करने आते थे। मैं उन्हें देखकर इंस्पायर होता था। बास्केटबॉल में नेशनल खेल चुके, हाइट की वजह से छोड़ा मेरे घर पर सभी लोग एजुकेशन डिपार्टमेंट में हैं। घर पर पूरा पढ़ाई-लिखाई वाला माहौल था। हालांकि, मेरा इसमें मन नहीं लगता था। बास्केटबॉल खूब खेलता था। सब जूनियर और जूनियर लेवल पर नेशनल भी खेल चुका हूं। आगे चलकर एहसास हुआ कि यह खेल मेरे लिए नहीं है। इसके लिए लंबी हाइट होनी चाहिए थी। मैं भले ही 5 फीट 10 इंच था, लेकिन यह काफी नहीं था। बास्केटबॉल के लिए 6 फीट से ज्यादा हाइट सूटेबल होती है। घर वाले मुंबई भेजने के खिलाफ थे यूपी कॉलेज में काफी सारे कल्चरल इवेंट्स होते थे। मैं उसमें पार्टिसिपेट करता था। सरस्वती पूजा वाले दिन हर साल बड़े प्रोजेक्टर पर फिल्में दिखाते थे। मैं फिल्में देखकर खुद को उनसे रिलेट करता था। धीरे-धीरे मेरे अंदर एक्टिंग का रुझान पैदा हो गया। अब मेरी नजरों के सामने मुंबई की दुनिया दिखने लगी। घर वालों को एक-दो बार बताया भी, उन्होंने कोई खास रिस्पॉन्स नहीं दिया। वे मेरे मुंबई जाने के बिल्कुल खिलाफ थे। डॉक्टरी चुनी ताकि एक्टिंग के लिए समय निकाल सकें मैं समझ गया कि घरवाले तो कभी मुंबई भेजेंगे नहीं और न ही एक्टिंग की इजाजत देंगे। मैंने फिर थोड़ा हटकर सोचा। मैंने सोचा कि डॉक्टरी की पढ़ाई कर लेता हूं। डॉक्टर बन गया तो रात में मरीज देखूंगा और दिन में एक्टिंग के लिए मौके तलाशूंगा। यही सोच कर मैंने CPMT का पेपर दिया और निकाल भी लिया। हालांकि, उससे पहले मैंने BHU (बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी) से कल्चरल ऑनर्स में एडमिशन लिया था। CPMT निकलने के बाद मैंने पुराना कोर्स छोड़ दिया। हरिद्वार में एडमिशन लिया ताकि हर हफ्ते दिल्ली जा सकें मैंने हरिद्वार के एक सरकारी कॉलेज से BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) में दाखिला ले लिया। मुझे बनारस और लखनऊ में कॉलेज मिल रहे थे, लेकिन मैं ऐसे जगह रहना चाहता था, जहां से दिल्ली नजदीक हो। मैं हफ्ते में एक दिन हरिद्वार से दिल्ली ट्रैवल करता था। दिल्ली इसलिए क्योंकि वहां NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) था। मैं हर हफ्ते NSD जाकर प्ले और ड्रामे देखता था। कलाकारों को अभिनय करते देखकर सीखता था। चुनौती थी तो यूनिवर्सिटी टॉप किया BAMS कम्प्लीट होने वाला था। अब मुझे कैसे भी करके मुंबई जाना था, लेकिन वहां रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी। किसी सीनियर ने कहा कि तुम दूसरे स्टेट से पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर सकते हो, अगर ग्रेजुएशन में ज्यादा नंबर ला दो। मैंने मुंबई के कॉलेजेस सर्च किए। मैंने सोचा कि अगर वहां एडमिशन हो गया तो पढ़ाई भी करता रहूंगा और साथ में एक्टिंग के लिए भी ट्राई करता रहूंगा। इसी सोच के साथ मैंने यूनिवर्सिटी टॉप कर दिया। हालांकि, मुंबई में नहीं नागपुर के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला। चलो मुंबई नहीं तो नागपुर ही सही। मैंने भले ही नागपुर में एडमिशन ले लिया, लेकिन रहता मुंबई में था। दरअसल, मुंबई के पोद्दार मेडिकल कॉलेज में मेरे कुछ सीनियर थे। मैं उन्हीं के साथ चोरी-छिपे हॉस्टल में रहता था। इस तरह चोरी छिपे 4-5 साल तक मुंबई में ही रहा। इसी टाइम पीरियड में अपने लिए मौके तलाशता था। इसी दौरान मेरी मुलाकात डायरेक्टर महेश मांजरेकर से हुई। 2002 की उनकी फिल्म ‘पिता’ में मुझे छोटा सा रोल मिला, लेकिन पहचान नहीं मिली। डेडबॉडी तक का रोल किया महेश मांजरेकर सर ने मुझे अपने साथ रख लिया। मैं उनकी फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर बना। वहां से बहुत सारी चीजें सीखने को मिलती थी। इस दौरान मैं बस यही कोशिश करता था कि कैसे भी करके बस लोगों की नजरों में आ जाऊं। आप यकीन नहीं करेंगे कि मैंने एक फिल्म में डेड बॉडी तक का रोल किया है। एक फिल्म में सुनील शेट्टी का बॉडी डबल भी बना। क्राइम पेट्रोल जैसे शोज में छोटे-मोटे रोल भी किए। मेडिकल कॉलेज में चोरी पकड़ी गई मैं फिल्मों में काम करने के साथ ही पढ़ाई भी पूरी कर रहा था। महीने के 20 दिन अगर मुंबई रहता तो बाकी 10 दिन नागपुर जाकर सारा कोर्स कम्प्लीट करता था। मेडिकल में कितना पढ़ना पड़ता है, आपको पता ही है। अंतिम साल में मेरी चोरी पकड़ी गई। कॉलेज के डीन को पता चल गया कि मैं क्लासेस कम अटेंड करता हूं, साथ ही दूसरा काम भी करता हूं। उन्होंने मेरा एडमिट कार्ड रोक दिया। उसके बाद मैं पूरे एक साल कहीं नहीं गया, सिर्फ नागपुर रहा। 100% अटेंडेंस मेंटेन किया। एक दिन डीन ने बुलाकर पूछा कि आखिर तुम करना क्या चाहते हो? मैंने कहा कि MD (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) की डिग्री लेना चाहता हूं और पापा को दिखाना चाहता हूं। मुझे इस डिग्री में कोई इंटरेस्ट नहीं है, मैं तो बस अपने पिता की इच्छापूर्ति कर रहा हूं। डिग्री मिली तो उनके हाथ पर रख दूंगा और मुंबई निकल जाऊंगा। मैंने उनसे वादा किया था कि पढ़ाई नहीं छोडूंगा चाहे जो हो जाए। मेरी बात सुनते ही डीन ने एडमिट कार्ड निकाला और दे दिया। उन्होंने कहा कि भाई, तुम अलग ही मिट्टी के बने हो। मुझे तो तुम्हें पिछले साल ही रिलीज कर देना चाहिए था। इस तरह मैंने MD की डिग्री पूरी की और पापा के सामने जाकर रखा और वापस मुंबई निकल गया। भोजपुरी सीरियल्स में भी काम किया मुंबई आने पर मैंने कुछ टीवी सीरियल्स में काम किए। वहां से जो पैसे आते थे, उसी से खर्चे निकालता था। भोजपुरी सीरियल्स में भी बतौर लीड काम किया। जहां जैसा मौका मिला, काम करता गया। हालांकि, मुझे फिल्मों में एक्टर के तौर पर काम करना था, उन्हीं की तलाश में था, जो कि मिल नहीं रहे थे। महेश भट्ट ने कहा- तुम्हारे अंदर इरफान खान की झलक इसी बीच कुछ समय के लिए बनारस चला गया था। मेरे भाई ने बताया कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में महेश भट्ट साहब आने वाले हैं। मेरे भाई ने जुगाड़ लगाया और मेरी और महेश भट्ट साहब की मीटिंग फिक्स कराई। मैं दिन भर उनके साथ रहा। भट्ट साहब ने तब कहा कि विनीत मुझे तुम्हारे अंदर इरफान खान जैसा रॉ टैलैंट दिखता है। तुम्हारे अंदर कुछ भी बनावटी नहीं है। उन्होंने कहा कि मुंबई आना तब जरूर मिलना। फिल्म फेस्टिवल, बर्गर की शॉप और अनुराग कश्यप से मीटिंग 2009 में मेरी मुलाकात अनुराग कश्यप से हुई। हम लोग एक फिल्म फेस्टिवल में मिले। वहां फिल्मों की स्क्रीनिंग चल रही थी। अनुराग सर बैठने के लिए सीट ढूंढ रहे थे। मैंने उन्हें अपनी सीट देनी चाही। उन्होंने मना कर दिया। मैंने सोचा कि यार मौका हाथ से निकल गया। बाद में वे कहीं गायब हो गए। फिर मैं कुछ खाने के लिए बाहर निकला। वहां बर्गर की शॉप थी। अनुराग सर भी लाइन में आकर लग गए। मैंने उनसे कहा कि सर आप बैठिए, मैं आपके लिए ऑर्डर कर देता हूं। मैंने अपने और उनके लिए फूड लिए। उन्होंने कहा कि आओ, साथ में बैठकर खाते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या नाम है, क्या करते हो, कहां से हो? मैंने बताया कि बनारस से हूं। वे थोड़े उत्सुक हो उठे। उन्होंने पूछा कि कितने साल से मुंबई में हो? मैंने बताया कि 9-10 साल तो हो ही गए होंगे। वे चौंक गए। उन्होंने कहा कि इतने साल से मुंबई में हो तो कभी मिले क्यों नहीं? मेरे पास सच में उन्हें कुछ दिखाने को नहीं था। जो भी था, वो काफी नहीं था। फिर भी मैंने अब तक जो भी काम किया था, वो सारी चीजें एक CD में कैद थीं, मेरे भाई ने वह CD अनुराग सर को दिखाई। अनुराग सर को मेरी एक्टिंग प्रभावित कर गई। यह वही समय था जब गैंग्स ऑफ वासेपुर की कास्टिंग चल रही थी। अनुराग सर ने मुझे फिल्म के लिए कास्ट कर लिया। फिल्म में मेरा काफी यंग रोल था। इसके लिए मैंने 17 किलो वजन कम किया था। अनुराग कश्यप से बोले- सिर्फ सहबला नहीं, दूल्हा भी बनाइए एक दिन मैंने अनुराग सर से कहा कि कब तक मुझे सहबला बनाते रहेंगे, कभी दूल्हा भी तो बनाइए। उन्होंने कहा कि तुझे जितना निचोड़ना था, निचोड़ लिया है। मैं फिर थोड़ा संकोच में आ गया, अब कैसे काम मांगूं। तब मैंने फिल्म मुक्काबाज की कहानी लिखी। वह कहानी लेकर मैं कई फिल्म मेकर्स के पास गया। कुछ लोगों को कहानी काफी पसंद आई। वे मुझे स्टोरी के बदले 1 करोड़ तक दे रहे थे, लेकिन उनकी शर्त थी कि फिल्म में एक्टर कोई और रहेगा। मैं इसके लिए कतई तैयार नहीं था। मैं खुद हीरो बनना चाहता था। जब कहीं बात नहीं बनी, तब मैं फैंटम फिल्म (प्रोडक्शन कंपनी) के पास पहुंचा। अनुराग सर इस कंपनी से एसोसिएट थे। मैं चूंकि उन्हीं के जरिए फैंटम तक पहुंचा था, तो सोचा कि एक बार उन्हें भी कहानी सुना दूं। कहानी सुनते ही वे खुद ही फिल्म डायरेक्ट करने को तैयार हो गए। उन्होंने स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव किए और मुझे बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेने की हिदायत दी। कार सहित सब कुछ बेचकर पटियाला पहुंचे मैं मुंबई से सब कुछ बेचबाच कर ट्रेनिंग के लिए पटियाला निकल गया। मैंने अपनी कार भी बेच दी। मेरे पास 2.50 लाख रुपए इकट्ठा हो गए थे। ट्रेनिंग के दौरान किसी को नहीं बताया कि मैं एक्टर हूं। ट्रेनिंग के दौरान मुझे काफी मुक्के पड़े। बहुत खून बहा। काफी इंजरी हुई। ट्रेनर ने यहां तक कह दिया कि अगर रुके नहीं तो तुम्हारी जान भी जा सकती है। बॉक्सिंग ट्रेनिंग के दौरान अजूबा हुआ ट्रेनिंग के दौरान एक दिलचस्प वाकया हुआ। बॉक्सिंग के लिए न्यूरो मस्कुलर रिफ्लेक्सेस का सही तरीके से काम करना बहुत जरूरी होता है। साथ ही यह एक समय तक ही डेवलप होता है। 6 महीने तक लगातार ट्रेनिंग के दौरान एक अजूबा हुआ। मेरी आंखें झपकनी बंद हो गईं। मैं बहुत आराम से सामने वाले बॉक्सर का मूव देख पा रहा था। मेरे ट्रेनर ने कहा कि विनीत मैंने अपनी लाइफ में ऐसा अजूबा बस एक बार देखा था। आज दूसरी बार देख लिया है। मुक्काबाज के बाद भी ग्रोथ नहीं मिली, कार से सीधे साइकिल पर आए मुक्काबाज को लोगों ने प्यार बहुत दिया, लेकिन मुझे ग्रोथ नहीं मिल पाई। इस फिल्म के लिए मैंने ऑलरेडी अपना सब कुछ लगा दिया था। बिल वगैरह भरने के लिए भी पैसे नहीं थे। कार भी बेच दी थी। अब साइकिल से चलने की नौबत आ गई थी। उस वक्त यही सोच थी कि जो काम मिला, कर लूंगा। अब वो समय है, जब लोगों ने मुझे सच में पहचाना है। फिल्म छावा के जरिए मेरे काम को पहचान मिली। मुझे मास लेवल पर लोगों ने प्यार दिया। कवि कलश के रोल में ढलने के लिए मैं महाराष्ट्र के तुलापुर भी गया था। यहीं पर छत्रपति संभाजी महाराज और कवि कलश जी की समाधि स्थल है। जब मैं वहां बैठा, तब मुझे उनके होने का एहसास हुआ। मैं उस फीलिंग को साथ लेकर सेट पर आया। शायद इसी वजह से एक्टिंग काफी नेचुरल निकल पाई। ------------------------------------------ पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी यहां पढ़ें... दिवालिया हो गई थीं रश्मि देसाई: बिग बॉस गईं, वहां सुसाइड के ख्याल आए, अब दूसरी इनिंग शुरू टेलीविजन में बड़ा नाम रहीं रश्मि देसाई पिछले कुछ समय से इंडस्ट्री से गायब थीं। पिछले कुछ साल उनके लिए अच्छे नहीं रहे। आर्थिक और शारीरिक रूप से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पढ़ें पूरी खबर...

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