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» » » सुभाष घई @80 कभी स्टूडियोज में एंट्री नहीं मिलती थी:पिता के निधन के वक्त करते रहे शूटिंग; कट्टर दुश्मन दिलीप कुमार-राज कुमार को साथ लाए
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सुभाष घई जब बॉलीवुड में आए, तब उन्हें नहीं पता था कि एक दिन वह राज कपूर के बाद सिनेमा के दूसरे 'शोमैन' बन जाएंगे। सुभाष घई ने डायरेक्टर बनने से पहले एक्टिंग में हाथ आजमाया था। उन्होंने यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट में भाग लिया, जिसमें 5000 हजार कंटेस्टेंट्स में से राजेश खन्ना और धीरज कुमार के अलावा सुभाष घई सिलेक्ट हुए थे। राजेश खन्ना को तुरंत फिल्मों में काम मिल गया, वहीं सुभाष के सामने तमाम मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सुभाष घई ने अपने करियर में सबसे ज्यादा अपने काम को प्राथमिकता दी है। यहां तक कि पिता के निधन के बाद भी वे शूटिंग करते रहे। आज सुभाष घई अपना 80वां जन्मदिन मना रहे हैं। इस अवसर पर उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत की। पढ़िए सुभाष घई की कहानी उन्हीं की जुबानी… स्टूडियो में नहीं दी जाती थी एंट्री एफटीआई से एक्टिंग कोर्स करके आया तो लोग स्टूडियों में घुसने नहीं देते थे। कहते थे कि एक्टर ट्रेनिंग से थोड़े ही बन सकता है। मुझे स्टूडियो के बाहर खड़े रहने को भी कहा गया था। लोग कहते थे कि मेरा फिल्मी बैकग्राउंड नहीं, मुझे कोई नहीं जानता। उन दिनों ट्रेन और बस में सफर करता था। प्रोड्यूसर से मिलने के लिए उनके ऑफिस के बाहर घंटों इंतजार करता था। उस समय एक अलग ही संघर्ष था। जीवन में संघर्ष कभी खत्म नहीं होता है जीवन में आपके कदम-कदम पर संघर्ष आएंगे। करियर की शुरुआत में अलग तरह के संघर्ष थे और आज के संघर्ष अलग हैं। आज हमारे लिए संघर्ष मीडिया से बात करना है। जिंदगी हर कदम एक नई जंग है। जब संघर्ष से प्रेम करने लगेंगे तो संघर्ष आपको अपना लेगा। संघर्ष, आदत और स्वभाव बन जाएगी। उसे आराम से जीत सकते हैं। इंडस्ट्री में छोटे रोल से शुरुआत जब इंडस्ट्री में आया तो छोटे रोल से करियर की शुरुआत की। ‘आराधना’ और ‘उमंग’ में थोड़े बड़े रोल किए। 5-6 फिल्मों में हीरो भी बना। जब एक्टिंग कर रहा था तब मुझे एहसास हुआ कि जो लाइंस बोल रहा हूं। वह किसी और ने लिखी है। डायरेक्टर मुझे प्रजेंट कर रहा है। लाइटिंग, मेकअप और वेशभूषा दूसरे लोग कर रहे हैं। गाना कोई और गा रहा है, मैं सिर्फ लिप्सिंग कर रहा हूं। मुझे सितारा कहा जा रहा है। मैं अपनी मिथ्या में जी रहा हूं। मैं सिर्फ उस पूरी क्रिएशन का एक हिस्सा हूं। एक्टिंग से बोर होने लगा था परफॉर्मिंग आर्ट बहुत बड़ा आर्ट होता है। इसका श्रेय उन्हें भी मिलता है। मुझे इस बात का हमेशा गम था कि इस क्रिएशन साइड में क्यों नहीं हूं? आहिस्ता-आहिस्ता एक्टिंग से बोर होने लगा। अपनी कहानियां लिखने लगा। मैंने 6-7 स्क्रिप्ट लिखी। टॉप डायरेक्टर्स को स्क्रिप्ट दी जिस पर फिल्में बनीं। 7वीं स्क्रिप्ट फिल्म ‘कालीचरण’ की थी। वह स्क्रिप्ट किसी को पसंद नहीं आ रही थी। एक प्रोड्यूसर को पसंद आई तो उन्होंने कहा कि इसे तुम खुद क्यों नहीं डायरेक्ट करते। इस तरह से डायरेक्शन में शुरुआत हुई मुझे तो इस अवसर का इंतजार था। मैंने ‘कालीचरण’ डायरेक्ट की। यह फिल्म टेक्निकली और कॉमर्शियली हिट हुई। वहां से सुभाष घई के रूप में नए करियर की शुरुआत हुई, लेकिन मैं जिस तरह की फिल्में बनाना चाह रहा था वैसी फिल्में सिर्फ फेस्टिवल के लिए बनती हैं। मुझे सत्यजीत रे की फिल्में बहुत पसंद हैं। फिर कॉमर्शियल फिल्म को चुना ‘कालीचरण’ बनाने के बाद सोच रहा था कि आर्ट या कॉमर्शियल में से किस तरह की फिल्में बनाऊं। मैंने सोचा कि जो भी फिल्में करूं, वह मुझे शिद्दत के साथ करनी चाहिए। मैंने कॉमर्शियल सिनेमा के बारे में ही सोचा। उसी के जरिए आर्ट दिखाने की कोशिश की है। 30 सालों से मैं हर साल कॉन्स फिल्म फेस्टिवल जाता हूं। हर बार फेस्टिवल की फिल्में देखता हूं। मेरी प्रेरणा बड़े-बड़े डायरेक्टर हैं। उनकी अच्छी बातें अपनी कॉमर्शियल फिल्मों में यूज करता हूं। कामयाब होने के बाद भी मार्केट का प्रेशर रहता है ‘कालीचरण’ जैसी कामयाब फिल्म बनाने के बाद भी जब मैंने ‘कर्ज’ बनाई तो मार्केट का प्रेशर था। लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या फिल्म बना दी। ‘कर्ज’ दो हफ्ते तक नहीं चली थी। मेरे दोस्त कहते थे कि यह 10-15 साल के आगे की फिल्म है। हालांकि बाद में यह फिल्म खूब चली। एफटीआई से आने के बाद 'जॉगर्स पार्क' की कहानी लिखी थी फिल्म ‘जॉगर्स पार्क’ की कहानी मैंने एफटीआई से आने के बाद लिखी थी। उस समय आर्ट सिनेमा दिमाग में चल रहा था। एक 65 साल के रिटायर्ड जज को 22 साल की मॉडर्न लड़की से प्यार साथ हो जाता है। उस समय यह चीज बड़ी अखरने वाली थी, लेकिन जब फिल्म 2003 में बनी तो लोगों ने पसंद की। उस फिल्म को मैंने डायरेक्ट नहीं किया। मैंने एफटीआई के लड़के अनंत बलानी को बुलाकर फिल्म डायरेक्ट करने के लिए दे दी थी। इसी तरह से ‘राहुल’ फिल्म प्रकाश झा को डायरेक्ट करने के लिए दी। ऐसे बहुत सारे सब्जेक्ट थे जिन्हें मैंने कभी खुद डायरेक्ट नहीं किया। खलनायक पहले निगेटिव नाम से बनने वाली थी ‘खलनायक’ का प्लॉट पहले ‘निगेटिव’ था। इस फिल्म को पहले ‘निगेटिव’ टाइटल से बनाना चाह रहा था। उस समय मैं अमेरिका में था। मेरे एक दोस्त अशोक अमित राज ने इसे इंग्लिश में बनाने की सलाह दी थी। जब मैंने वहां काम करना शुरू किया तब मुझे महसूस हुआ कि अमेरिका के सिस्टम में रहकर काम नहीं कर सकता। मैं इंडिया वापस आया और सोचा कि इसे आर्ट सिनेमा की तरह बनाया जाए। नाना पाटेकर को फिल्म के लिए अप्रोच किया आर्ट सिनेमा के लिए नाना पाटेकर से संपर्क किया। उस समय फिल्म की कहानी पूना और मुंबई के बीच की जर्नी पर थी। उस कहानी का नरेटिव अलग था, लेकिन उसमें गीत-संगीत नहीं था। सिर्फ एक सॉन्ग बैकग्राउंड में था। अपने आप में बहुत ही सहज फिल्म थी। जब राइटर को कहानी सुनाई तो उसने मुझे कॉमर्शियल फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया। खलनायक का रोल कई स्टार्स करना चाह रहे थे ‘खलनायक’ में संजय दत्त वाले किरदार के लिए कई स्टार्स ने दिलचस्पी दिखाई थी। मैं किसी ऐसे व्यक्ति को लेना चाहता था जिसके चेहरे पर प्रेमी, हत्यारे, आतंकवादी की झलक दिखाई दे। मेरा मानना ​​है कि एक एक्टर का असली अभिनय तब सामने आता है जब वह चुप रहता है और उसकी आंखें ही सब कुछ बयां करती हैं। वह सबकुछ मुझे संजय दत्त में नजर आ रहा था, इसलिए उन्हें चुना। शूटिंग के दौरान संजय दत्त ने यह बात मुझसे पूछी भी कि मुझे क्यों चुना? मैंने कहा कि क्योंकि यह चेहरा बिल्कुल खलनायक का है। याद रखना खलनायक में नायक और खल दोनों है। बिना फिल्म देखे ही लोग गलत धारणा पाल लेते हैं जब ‘खलनायक’ रिलीज हुई तो समाज के एक वर्ग ने इसका बहुत विरोध किया था। लोग कहने लगे थे कि सुभाष घई आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। ‘चोली के पीछे’ गाने को लोगों ने अश्लील बताया, लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो इसी गाने को इंडियन सिनेमा का क्लासिक गाना बताया गया। आज भी यह गाना कई समारोहों में खूब बजता है। कुछ लोग बिना फिल्म देखे ही गलत धारणा पाल लेते हैं। दिलीप कुमार और राज कुमार 'सौदागर' में नजर आए, लोग कहने लगे फिल्म नहीं बन पाएगी हिंदी सिनेमा के लीजेंडरी एक्टर दिलीप कुमार और राजकुमार 1959 में फिल्म ‘पैगाम’ में नजर आए थे। इस फिल्म में राजकुमार ने बड़े भाई और दिलीप कुमार ने छोटे भाई का किरदार निभाया था। फिल्म के एक सीन में राज कुमार को बड़े भाई होने के नाते छोटे भाई दिलीप कुमार को थप्पड़ मारना था। शूटिंग के दौरान राज कुमार ने दिलीप कुमार को ऐसा करारा हाथ रख कर दिया कि दिलीप कुमार सन्नाटे में आ गए। शूटिंग रुक गई। दिलीप कुमार चोट से नहीं मगर राज कुमार की इस हरकत से इतना नाराज हुए कि इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी राज कुमार के साथ काम नहीं करने का प्रण ले लिया। 32 साल की दुश्मनी दोस्ती में बदल गई जब सुभाष घई ने दिलीप कुमार और राज कुमार को एक साथ फिल्म ‘सौदागर’ में कास्ट किया तो लोग कहने लगे कि यह फिल्म नहीं बन पाएगी। कई फिल्मकारों ने राज कुमार और दिलीप कुमार को साथ लाने की कोशिश की, मगर कभी सफल नहीं रहे। सुभाष घई ने कहा- मैंने 9 महीने में शूटिंग पूरी करके 9 अगस्त 1991 को फिल्म रिलीज कर दी। मेरी फिल्म की कहानी सुनकर दिलीप कुमार और राज कुमार को ट्रस्ट हो गया था। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों में दोस्ती हो गई। पिता के निधन के बाद भी करते रहे शूटिंग इंडियन आइडल शो के दौरान सुभाष घई ने बताया था कि पिता के निधन के बाद भी वे शूटिंग करते रहे। दरअसल, फिल्म ‘मेरी जंग’ के गाने 'जिंदगी हर घड़ी एक नई जंग है' की शूटिंग के दौरान सुभाष घई को पता चला कि उनके पिता की तबीयत खराब है। वे अस्पताल पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनके पिता का निधन हो गया है। इसके बाद भी सुभाष घई ने शूटिंग नहीं रोकी। वे अगले दिन इसी गाने की शूटिंग के लिए फिर से सेट पर पहुंच गए। परदेस में शाहरुख के साथ हुआ मनमुटाव फिल्म ‘त्रिमूर्ति’ के बाद शाहरुख खान ने सुभाष घई के साथ फिल्म ‘परदेश’ में काम किया था। अरबाज खान के टॉक शो ‘द इनविंसिबल्स सीजन 2’ में सुभाष घई ने शाहरुख खान को लेकर बात की थी। सुभाष घई ने कहा था- मैंने ‘परदेस’ में शाहरुख खान के साथ काम किया। उनके और मेरे बीच मनमुटाव चलता रहता था। हमारी तू-तू मैं-मैं चलती रहती थी। इस फिल्म के बाद हमने साथ में फिर कभी काम नहीं किया। ________________________________________________________________________________ बॉलीवुड से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें … डॉक्टर ने कहा था- बचेंगे नहीं:बाद में प्रोफेशनल रेसलिंग में वर्ल्ड चैंपियन बने संग्राम सिंह, PM मोदी ने मिलने बुलाया ‘जब मैं 3 साल का था, तभी मुझे रुमेटॉइड गठिया हो गया था। डॉक्टर्स ने कहा था कि मैं ज्यादा जी नहीं पाऊंगा। खुद से चल भी नहीं पाता था। हालांकि, जैसे-तैसे मां की मेहनत रंग लाई और मैं रेसलिंग की दुनिया में पहचान बना पाया।’ पढ़ें पूरी खबर..

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