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‘वैष्णो देवी मंदिर में शूटिंग करना मुश्किल था’:शबाना आजमी बोलीं- घंटों लाइन में खड़े होते थे, रास्ते में बाथरूम की सुविधा भी नहीं थी

राजेश खन्ना और शबाना आजमी की फिल्म अवतार 1983 में रिलीज हुई थी, जिसे राजेश खन्ना का कमबैक माना जाता है। हाल ही में शबाना आजमी ने इस फिल्म के गाने चलो बुलावा आया है की शूटिंग के दौरान का किस्सा शेयर किया। उन्होंने कहा कि उस समय वहां लंबी लाइनें लगती थीं और रास्ते में कोई टॉयलेट की सुविधा भी नहीं थी। शबाना आजमी ने रेडियो नशा के साथ बातचीत में कहा, 'उस समय वैष्णो देवी के मंदिर में शूटिंग करना बहुत कठिन था। तब हेलीकॉप्टर की सुविधा नहीं थी। हमें मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चढ़ाई करनी पड़ती थी। रास्ते में टॉयलेट की कोई सुविधा नहीं थी, जिस कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।' शबाना ने कहा, 'क्या आप सोच सकते हैं कि राजेश खन्ना, जो सुपरस्टार थे, वह डालडा के डिब्बों के साथ लाइन में खड़े होते थे? इतना ही नहीं, उस समय ठंड भी बहुत ज्यादा थी। सभी लोग धर्मशालाओं में फर्श पर सोते थे। हमारे पास गद्दे थे। लेकिन उन पर लगभग 12 परतों की कंबल डाली जाती थीं। हम छह परतों से खुद को ढकते थे। इसके बाद भी ठंड महसूस होती थी। उस समय हम सभी एक टीम की तरह थे। किसी के मन में यह नहीं था कि हम सुपरस्टार हैं, तो एडजस्ट नहीं करेंगे।' शबाना आजमी ने कहा, ‘राजेश और मैं अच्छे दोस्त थे। एक बार हम मीडिया से बात कर रहे थे। वह अंदर आए और हमने देखा कि उन्होंने अपनी टांग पर पट्टी बांधी हुई थी और वह लंगड़ाते हुए चल रहे थे। एक पत्रकार ने यह देखा और पूछा था क्या हुआ उनकी टांग को? तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया था कल मैं घोड़े की सवारी कर रहा था, और घोड़े से गिर गया। उस समय मैं हैरान रह गई और सोचने लगी मैं तो उनके साथ थी, उन्होंने घोड़े की सवारी की शूटिंग कब की?’ शबाना ने आगे बताया, ‘राजेश ने मेरे पैरों को टेबल के नीचे लात मारी और इशारा किया कि चुप रहूं। बाद में उन्होंने कहा मैं गिर गया था, और तुम हमेशा सच क्यों बोलती हो? जाहिर है, मैं पत्रकार को नहीं बताऊंगा कि मेरा पैर धोती में फंस गया, इसलिए मैं गिर गया। मुझे तो अपना पल जीने दो। तुम्हें क्या परेशानी है? यह सुनकर मैं बहुत हंसी।’

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फिल्में न मिलने पर बांग्लादेश चले गए थे चंकी पांडे:बोले- वहां पर प्रॉपर्टी डीलिंग का काम किया, सर्वाइवल के लिए यह करना पड़ा

चंकी पांडे ने खुलासा किया है कि करियर की शुरुआत में उन्हें बहुत स्ट्रगल करना पड़ा था। एक वक्त ऐसा आया था कि कई हिट फिल्मों में काम करने के बाद उनके पास काम की कमी हो गई थी। नतीजतन उन्हें बांग्लादेश जाकर वहां की फिल्म इंडस्ट्री में काम करना पड़ा। फिल्में करने के साथ वहां उन्होंने प्रॉपर्टी डीलिंग का भी काम किया था, ताकि बेहतर तरीके से गुजारा हो सके। यह बातें चंकी ने यूट्यूब चैनल वी आर युवा के एपिसोड में कही हैं। इस दौरान उनकी बेटी अनन्या पांडे भी मौजूद थीं। चंकी ने बताई अनन्या को सेट पर लेकर न जाने की वजह अनन्या ने चंकी से पूछा कि वो कभी सेट पर उन्हें लेकर क्यों नहीं जाते थे। जवाब में चंकी ने कहा- मैं बताता हूं कि तुम मेरे सेट पर कभी क्यों नहीं आई। जब मेरी और तुम्हारी मम्मी की शादी हुई, तब मैं लो फेज में था। मैं बस बांग्लादेश से लौटा ही था और मैं खुद के लिए काम की तलाश कर रहा था। मैं कभी भी तुम्हें सेट पर बुलाने या तुम्हारी मां को सेट पर बुलाने की बात में नहीं पड़ा और यह तब से ऐसे ही चलता आया। पिता ने एक्टिंग सीखने की सलाह दी थी चंकी ने यह भी बताया कि एक्टर के तौर पर उन्हें खुद को स्थापित करने के लिए बहुत स्ट्रगल करना पड़ा था। इस बारे में चंकी ने कहा- जब मैंने पापा को एक्टर बनने की बात बताई तो उन्होंने कहा था कि ठीक है तुम एक्टर बनना चाहते हो, लेकिन तुम्हारे पास कोई एक्टिंग बैकग्राउंड नहीं है। पहले खुद को तैयार करो। इस वजह से मैं अलग-अलग एक्टिंग क्लासेस में गया और पैसे कमाने के लिए मॉडलिंग करना शुरू कर दिया। मुझे पैसे कमाने की बहुत आदत थी। मैंने 19 साल से 23 साल तक कोशिश की। मुझे कई ऑडिशन से रिजेक्ट किया गया था। बांग्लादेश में प्रॉपर्टी डीलिंग का काम किया हिंदी फिल्मों में काम न पाने के बाद चंकी किस्मत आजमाने बांग्लादेश चले गए थे। इस बारे में उन्होंने कहा- मेरे पास ब्लॉकबस्टर फिल्में थीं। फिल्म आंखें के ठीक बाद मेरे पास सच में बिल्कुल काम नहीं था। फिल्म आंखें के बाद जो एक फिल्म मुझे मिली थी, वो तीसरा कौन थी। इसके बाद तो पूरा सूखा पड़ गया था। इस वजह से मैं बांग्लादेश चला गया। वहां पर फिल्में कीं। किस्मत से वो फिल्में चल गईं। मैंने उसे एक तरह से अपना घर बना लिया था। लेकिन हां ये डरावना था, लेकिन मैंने काम करना बंद नहीं किया था। मैंने वहां पर इवेंट कंपनी खोली थी। मैंने इवेंट्स करना शुरू कर दिया था। मैंने प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करना शुरू किया, जमीनें खरीदीं। मैंने अपने ईगो को साइड में रख दिया था और मैंने खुद से कहा था कि मुझे सर्वाइव करना है। इसीलिए मैंने यह सब किया, लेकिन इस प्रोसेस में मैंने बहुत कुछ सीखा भी। चंकी बोले- पेरेंट्स से पैसे नहीं मांग सकता था चंकी ने लास्ट में कहा- मैं आर्थिक तंगी से बुरी तरह से टूट गया था। अगर आप एक लड़के हैं और आपने अपना करियर शुरू कर दिया है, तो आप वापस जाकर पेरेंट्स से पैसे नहीं मांग सकते हैं। मैंने यह बातें किसी तो बताई भी नहीं थी।

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कम उम्र में प्रियंका को भेजा गया था बोर्डिंग स्कूल:मां मधु चोपड़ा बोलीं- इस फैसले पर आज भी रोती हूं, पति भी नाराज हुए थे

प्रियंका चोपड़ा की मां मधु चोपड़ा ने हाल ही में खुलासा किया है कि उन्होंने कम उम्र में बेटी को बोर्डिंग स्कूल भेज दिया था। यह फैसला उन्होंने बेटी के हित के लिए लिया था। लेकिन आज भी उन्हें इस फैसले पर पछतावा होता है। वो उस पल को याद करके आज भी रोती हैं। मधु चोपड़ा ने यह भी खुलासा किया है कि प्रियंका को बोर्डिंग स्कूल भेजने के फैसले से उनके पति खुश नहीं थे। यहां तक कि उन्होंने एक साल तक मधु से ढंग से बात भी नहीं की थी। मधु चोपड़ा- पति ने एक साल तक मुझसे बात नहीं की थी Rodrigo Canelas के पॉडकास्ट में मधु चोपड़ा ने कहा- मुझे नहीं पता है कि यह सही फैसला था। लेकिन आज मुझे इस फैसले पर पछतावा होता है। हालांकि उस वक्त मुझे इस बात का एहसास था कि मैं सही कर रही हूं। आज भी मैंने रोने लगती हूं, जब छोटी बच्ची को दूर भेजने के बारे में सोचती हूं। वो लंबे समय तक इकलौती संतान थी। जब मैंने यह बात अपने पति को बताई तो वो बहुत ज्यादा गुस्सा हो गए थे। हमारे बीच एक साल तक नॉर्मल बातचीत भी नहीं हुई। बोर्डिंग स्कूल जाने के बारे में अनजान थीं प्रियंका उन्होंने आगे कहा- खैर वो बोर्डिंग स्कूल गई, लेकिन उसे नहीं पता था कि वो बोर्डिंग स्कूल जा रही है। उसे लग रहा था कि वो अब एक बड़े स्कूल में जा रही है। हम उसे हॉस्टल ले गए। मेट्रन आईं और उन्होंने कहा- सभी पेरेंट्स, अब आपके जाने का वक्त हो गया है। तब प्रियंका ने कहा- आप क्यों जा रही हैं? क्या मैं भी आपके साथ चलूंगी? मैंने कहा- नहीं बेटा, यह तुम्हारा नया स्कूल है। यह तुम्हारा नया बेड है, नए दोस्त हैं। मम्मी तुमसे मिलने आया करेंगी। प्रियंका इन चीजों के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी। मैं आज भी इस बारे में सोच कर रोती हूं, अफसोस करती हूं। यह मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मधु चोपड़ा ने बताया- मैं हर शनिवार को अपना काम खत्म करके ट्रेन पकड़ती थी और हर शनिवार को उससे मिलने जाती थी। यह उसके लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा था क्योंकि वह अपने बोर्डिंग स्कूल में तालमेल बिठाने में सक्षम नहीं थी। शनिवार को वो मेरे आने का इंतजार करती थी और फिर रविवार को मैं उसके साथ रहती थी। और पूरे हफ्ते टीचर यही कहती थीं- आना बंद करो। आप नहीं आ सकती हैं। यह एक पछतावे से भरा फैसला था, लेकिन प्रियंका ठीक निकली। वह अपने पैरों पर खड़ी हो गई। जॉन सीना के साथ फिल्म में दिखेंगी प्रियंका प्रियंका के वर्कफ्रंट की बात करें तो आने वाले समय में वे जॉन सीना की एक्शन-कॉमेडी फिल्म हेड्स ऑफ स्टेट में दिखाई देंगी। उन्होंने हाल ही में सिटाडेल के दूसरे सीजन की शूटिंग खत्म की है।

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उदित नारायण @69, बचपन में मेले में गाने गाते थे:5 रुपए मिलते थे; पिता कहते थे- किसानी करो, आज 25000 गाने गा चुके

लीजेंडरी सिंगर उदित नारायण ने बचपन में जब गायक बनने का सपना देखा तो उनके पिता को लगा कि किसान का बेटा गायक नहीं बन सकता। उनके पिता हरेकृष्ण झा चाहते थे कि वे किसानी करें या फिर डॉक्टर और इंजीनियर बनने की सोचें। उदित नारायण की मां भुवनेश्वरी देवी लोक गायिका हैं। उन्हें अपने बेटे पर विश्वास था कि एक दिन उनका बेटा बड़ा गायक बनेगा। आज उदित नारायण 40 अलग-अलग भाषाओं में 25 हजार गाने गा चुके हैं। 69 की उम्र में आज भी उनके आवाज में वही ताजगी है। उदित कहते हैं कि मेरी मां 106 वर्ष की हो चुकी है। आज भी वह घर पर गाती रहती हैं। उनकी गायकी को सुनकर मुझे हमेशा प्रेरणा मिलती हैं। आज उदित नारायण अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं। इस अवसर पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। बातचीत के दौरान उन्होंने क्या कहा, जानते हैं उन्हीं की जुबानी… रेडियो पर गाने सुनकर सिंगिंग सीखा मैं लता मंगेशकर, रफी साहब और किशोर कुमार के गाने रेडियो में सुना करता था। उस समय रेडियो गांव के मुखिया या किसी बड़े आदमी के घर पर ही हुआ करता था। दूर से ही रेडियो पर गाना सुन सुन कर मैंने गाना सीखा। मेरी मां गांव के घरों में गाती थीं। गाने की प्रेरणा मुझे उन्हीं से मिली। पिता चाहते थे डॉक्टर या इंजीनियर बने मेरी गायकी से पिता जी बहुत नाराज रहते थे। वह कहते थे कि पढ़ लिखकर डॉक्टर इंजीनियर बनो। तुम एक किसान के बेटे हो। यह संभव नहीं है कि एक किसान का बेटा मुंबई जाकर गायक बने। इसलिए यह सपना देखना बेकार है। शौकिया गाना अलग बात है, लेकिन इसमें कहां करियर बनाया जा सकता है। मेले में गाकर 4-5 रुपए कमाता था मैं गांव के छोटे-छोटे मेले में जाकर गाया करता था। मेरे बड़े भाई दिगंबर झा अपने कंधे पर बैठाकर नदी के पार मेले मे ले जाते थे। मुझे 4-5 रुपए मिल जाते थे। इतने ही पैसो में बहुत खुशी मिलती थी। स्कूल में जब छुट्टी होती थी तब भी गाया करता था। मैंने 10वीं तक की पढ़ाई बिहार से की, लेकिन कोई रास्ता नहीं समझ में आ रहा था कि जीवन में क्या करना है? नेपाल रेडियो से हुई शुरुआत उसी दौरान एक मिनिस्टर के यहां गाने गया। गाना सुनकर वो बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि अगर तुम नेपाल रेडियो के लिए मैथिली लोक गीत गाना चाहते हो तो मैं सिफारिश कर सकता हूं। उसके बाद मैं काठमांडू गया और रेडियो जॉइन कर लिया। वहीं पर मैंने 12वीं की पढ़ाई भी की। दिन में रेडियो पर गाता था। रात में पढ़ाई और फाइव स्टार होटल में जाकर गाने भी गाता था। वहां से मुझे कुछ पैसे मिल जाते थे, जो जीवन यापन के लिए पर्याप्त था। इस तरह से वहां 7-8 साल बीत गए। रफी साहब के साथ मौका मिला तो यकीन नहीं हुआ मुंबई 1978 में आया और यहां पर भारतीय विद्या भवन से क्लासिकल संगीत की शिक्षा ली। शाम को मेरी क्लास रहती थी। दिन में सभी म्यूजिक डायरेक्टर से उनके स्टूडियो में मिलने जाता था। मुझे पहला मौका लीजेंडरी सिंगर मोहम्मद रफी साहब के साथ फिल्म 'उन्नीस-बीस' में गाने का मिला। मेरे लिए यह किसी सपने से कम नहीं था। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिनको बचपन से सुनता आ रहा हूं, उनके साथ गाने का मौका मिलेगा। लता मंगेशकर के साथ गाना मेरा सौभाग्य फिल्म 'उन्नीस-बीस' के बाद जैसा मैं चाह रहा था वैसे गाने नहीं मिल रहे थे। 1978 से 1988 तक बहुत संघर्ष रहा। इस दौरान फिल्मों में 2-4 लाइन गाने को मिलता रहा। ‘कयामत से कयामत तक’ जब मिली, उसके बाद तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने करियर में लता मंगेशकर के साथ मैंने जितने गाने गाए हैं। मुझे नहीं लगता कि मेरी जनरेशन का कोई सिंगर उतना गीत गाया होगा। डर, दिल तो पागल है, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, वीर जारा, जैसी कई फिल्मों में गाने का मौका मिला है। इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं। कहते हैं कि एक पुरुष की कामयाबी में महिला का बहुत बड़ा योगदान होता है। उदित नारायण के करियर में उनकी पत्नी दीपा नारायण का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उदित नारायण के जन्मदिन पर उनकी पत्नी और सिंगर दीपा नारायण ने दैनिक भास्कर से बातचीत की.. मुझे लगा था कि उदित जी क्या गा पाएंगे? मैं एयर होस्टेस थी। गाने का मुझे भी शौक था। मैं नेपाली में एक म्यूजिक एल्बम निकालना चाह रही थी। म्यूजिक डायरेक्टर ने उदित जी से मिलवाया था। उस समय तक उनको नहीं जानती थी। बहुत ही दुबले पतले थे। मुझे लगा कि इतने दुबले पतले हैं, कैसे गा पाएंगे? लेकिन जब गाए तो उनकी आवाज सुनकर हैरान रह गई। नेपाली भाषा की वह सुपर हिट एल्बम साबित हुई। इसके बाद लोग नेपाल से आकार उदित जी और मेरी आवाज में एल्बम रिकॉर्ड करने लगे थे। एक दिन बोले अपनी पॉकेट में रखूंगा उदित जी मन ही मन मुझे पसंद करने लगे थे। एक दिन मुझे रिकॉर्डिंग के दौरान घूर कर देखे जा रहे थे। मुझे लगा कि ऐसे क्यों देख रहे हैं? एक दिन मुझे बोले कि आपको अपनी पॉकेट में रखूंगा। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कहना चाहते हैं? फिर उन्होंने कहा कि आपको दिल में रखूंगा, प्यार करूंगा। मैंने सोचा कि अच्छे इंसान और अच्छे गायक हैं तो शादी कर लेनी चाहिए। उदित जी स्टैबलिश हुए तब जॉब छोड़ी शादी के बाद भी मैं जॉब करती रही। फिल्म लाइन में कब सफलता मिलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं होती है। मैं सोच रही थी कि उदित जी पहले स्टैबलिश हो जाए उनके बाद जॉब छोड़ू। जब ‘कयामत से कयामत तक’ हिट हुई और उदित जी की गाड़ी चल पड़ी तब मैंने जॉब छोड़ी। इसी दौरान बेटा आदित्य नारायण पैदा हो चुका था। उदित जी अक्सर मुझसे जॉब छोड़ने की बात करते थे। आदित्य और सास-ससुर की सेवा में ही दिन बीत जाता था। वैसे भी जॉब के लिए समय निकलना मुश्किल था। फिर भी मैंने उदित जी से कहा कि पहले अच्छा सा फ्लैट लीजिए और कुछ बैंक बैलेंस कीजिए। उसके बाद जॉब छोड़ दूंगी। एक कमरे में 7-8 लड़कों के साथ रहते थे शादी से पहले मैंने कलिना सांताक्रूज में एक छोटा सा फ्लैट लिया था। शादी के बाद उदित जी मेरे साथ उसी फ्लैट में शिफ्ट हो गए। उदित जी जब मुंबई में आए तो महालक्ष्मी में एक कमरे में 9-10 लड़कों के साथ एक पेइंग गेस्ट के रूप में रहते थे। स्ट्रगल के दौरान उन्होंने 7-8 घर चेंज किए होंगे। हमारे जीवन की शुरुआत कलिना वाले फ्लैट से हुई थी। इसलिए हमने आज तक उस फ्लैट को नहीं बेचा। नेपाली फिल्म में हीरो बने तो हिंदी में भी ऑफर मिलने लगे उदित जी जब गायिकी के लिए संघर्ष कर रहे थे तभी एक नेपाली फिल्म ‘कुसुमे रुमाल’ में एक्टिंग करने का मौका मिला। इस फिल्म में मुझे हीरोइन और उदित जी को हीरो का ऑफर मिला था। मैंने तो एक्टिंग नहीं की, लेकिन उदित जी ने फिल्म की और वह फिल्म सुपर हिट हो गई। हालांकि, उदित जी का मन एक्टिंग में नहीं था। मैंने ही उन्हें एक्टिंग के लिए प्रोत्साहित किया था। क्योंकि उस समय पैसे की बहुत जरूरत थी। इसके बाद एक और नेपाली फिल्म की थी। जिसमें उनकी डबल भूमिका थी। बाद में हिंदी फिल्मों में भी एक्टिंग के ऑफर मिलने लगे, लेकिन मुझे लगा कि दो नाव पर पैर नहीं रखना चाहिए। उदित जी सिंगर बनना चाहते हैं, तो उनको वहीं बनना चाहिए। ऐसे बिजी हुए कि खाने का मौका नहीं मिलता था यह ईश्वर की कृपा रही कि फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के बाद उदित जी काफी बिजी हो गए। उस समय एक दिन में कम से कम 8-10 गाने रिकॉर्ड करते थे। शोज भी बहुत होते थे। कभी-कभी तो खाने का भी समय नहीं मिलता था। गाड़ी में ही उनको अपने हाथ से खाना खिलाती थी। कामयाब होने के बाद भी उदित जी वैसे ही विनम्र हैं जैसे पहले थे। जो भी अपने हाथ से बनाकर देती हूं। बड़े प्रेम से खाते हैं। उनके कपड़े भी मैं ही डिजाइन करती हूं। मां की गायकी सुनकर हमेशा प्रेरणा मिलती है उदित नारायण की गायकी में पिछले 41 वर्षों में एक जैसी ताजगी नजर आती है। इसका क्रेडिट वह अपनी मां भुवनेश्वरी देवी को देते हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान उदित नारायण ने कहा था- मेरी मां 106 वर्ष की हो चुकी हैं। आज भी वह घर पर गाती रहती हैं। उनकी गायकी को सुनकर मुझे हमेशा प्रेरणा मिलती हैं। अगर वह इस वर्ष की उम्र में गा सकती हैं, तो मैं क्यों नहीं? इसी सोच से मुझे बेहतर गाने की प्रेरणा मिलती है। 5 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला उदित नारायण को 5 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुका है। पहली बार फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के सुपरहिट सॉन्ग ‘पापा कहते हैं’ के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। दीपा नारायण कहती हैं, ‘जब इस अवॉर्ड के लिए हम लोग गए तो उदित जी बहुत घबराए हुए थे। यह अवॉर्ड मिलना हमारे जीवन का बहुत ही इमोशनल क्षण था। उस दिन उदित जी मैं डिनर पर लेकर गई, लेकिन खुशी के मारे खाना नहीं खा पाए। पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित 2009 में उदित नारायण को भारत सरकार की तरफ से संगीत की दुनिया में अहम योगदान देने के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2016 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 4 बार नेशनल फिल्म अवार्ड्स मिले उदित नारायण को 2001 में फिल्म ‘लगान’ के ‘मितवा’ और ‘दिल चाहता है’ का ‘जाने क्यों लोग’ के लिए बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला था। 2002 में फिल्म ‘जिंदगी खूबसूरत है’ के सॉन्ग ‘छोटे छोटे सपने हो’ और 2004 में फिल्म ‘स्वदेस’ के गीत ‘ये तारा वो तारा’ के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था। जल्द ही उदित नारायण को अमृत रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। दीपा नारायण कहती हैं- 17 साल के बाद पहला नेशनल अवॉर्ड मिला था। जब इसके बारे में सुनी थी तो खुशी से उछल पड़ी और बेड से नीचे गिर पड़ी। पहली भोजपुरी फिल्म को मिला था नेशनल अवॉर्ड उदित नारायण भोजपुरी फिल्म ‘कब होई गवना हमार’ का निर्माण कर चुके हैं। भोजपुरी सिनेमा की यह पहली फिल्म है। जिसके लिए उदित नारायण ने बतौर प्रोड्यूसर नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीता था। ____________________________________________________________ बॉलीवुड से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… मॉडल तामी आनंदन, जिसने शक में BF की हत्या की:खून से लथपथ बॉयफ्रेंड का तड़पते हुए वीडियो बनाकर लीक किया मशहूर कहावत है- 'इस दुनिया में हर मर्ज का इलाज है, लेकिन शक और वहम का नहीं।' कई मायनों में ये कहावत एक दम सटीक बैठती है। आज अनसुनी दास्तान में हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं, वो भी शक और वहम से होती हुई जुनून, सिरफिरेपन और कत्ल में तब्दील होती है। पूरी खबर पढ़ें..

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