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» » » लोग कहते थे- नाचता रहता है, गे है क्या:पिता ऑटो चलाते थे; कभी-कभार चूल्हा नहीं जल पाता था, एक डांस शो ने खोली किस्मत
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फैजल खान, एक ऐसा लड़का जो मुंबई की गलियों में बड़ा हुआ। गरीब घर में जन्म हुआ। पिता ऑटो चलाते थे। मजबूरी ऐसी कि जिस दिन गाड़ी नहीं चली, खाना मिलना भी मुश्किल था। फैजल के अंदर डांस का टैलेंट था। आज इसी टैलेंट की बदौलत वे टीवी के बड़े स्टार हैं। 2012 में वे डांस रियलिटी शो DID लिटिल मास्टर-2 के विनर बने। शो ने उन्हें पहचान दिलाई। देखते ही देखते एक्टिंग के भी ऑफर आने लगे। खुद के पैसों से मुंबई में घर लिया। मर्सिडीज कार खरीदी। पिता के लिए दुकान खोल दी। हालांकि, यह सब इतना आसान नहीं था। हर मोड़ पर परेशानियां आईं। लोगों के ताने सुने। एक वक्त ऐसा भी आया कि खुद को खत्म कर लेना चाहते थे। फैजल के पास कभी खाने को पैसे नहीं थे, लेकिन आज जिस भी शो में जाते हैं, हाईएस्ट पेड एक्टर या कंटेस्टेंट बन जाते हैं। संघर्ष से लेकर सफलता की कहानी खुद उनकी जुबानी जिस दिन ऑटो खराब हुई, घर का चूल्हा नहीं जल पाता था मेरे करियर की शुरुआत डांस इंडिया डांस लिटिल मास्टर से हुई थी। मुझे बचपन से सिर्फ डांस ही आता था, एक्टिंग का कुछ अता पता नहीं था। हमारी हैसियत डांस क्लास की फीस देने की भी नहीं थी। मेरे पापा ऑटो चलाते थे। उसी से घर चलता था। वह ऑटो भी खुद का नहीं था, पापा ने किसी से रेंट पर लिया था। जिस दिन ऑटो में कोई खराबी हो गई, उस दिन चूल्हा नहीं जल पाता था। हम लोग भूखे रह जाते थे। रिश्तेदार कहते थे- डांस करता है, गे है बचपन में जब डांस करना शुरू किया तो आस-पास के लोगों ने ताने दिए। कुछ रिश्तेदारों ने तो मुझे गे (समलैंगिक) तक कह दिया था, क्योंकि मैं डांस करता था। मैं पापा के कपड़े पहन लेता था, यह भी चीज उन्हें खराब लगती थी। कहते थे, देखो अपने बाप के कपड़े पहनकर घूम रहा है। सिर्फ पापा ही वो शख्स थे, जिसने मुझे सबसे ज्यादा सपोर्ट किया। वे मुझे लोकल ट्रेन में बिठाकर ऑडिशन के लिए ले जाते थे। आते-जाते वक्त ट्रेन में ही उनके गोद में सो जाता था। कभी-कभार डांस करते-करते बॉडी अकड़ जाती थी। तब पापा घर पर पूरा शरीर दबाते थे। मेरी मसल्स को रिलीज करते थे। यह बात मैंने किसी को नहीं बताई है। 100 रुपए की टी-शर्ट पहनकर ऑडिशन देने पहुंचे डांस इंडिया डांस के ऑडिशन के वक्त 100 रुपए की टी-शर्ट और 200 का पैंट पहनकर शो में गया था। रोड के किनारे लगे ठेलों से कपड़े खरीदता था। उस वक्त पता ही नहीं था कि शोरूम वगैरह क्या होता है। शोरूम को बस दूर से ही देख लेता था। चॉल में रहते थे, फिर सीधा फ्लैट खरीदा टीवी शो महाराणा प्रताप में काम करने के बाद मेरी जिंदगी बदल गई। अपनी फीस से मैंने मुंबई के मीरा रोड पर फ्लैट खरीद लिया। उसके पहले घाटकोपर में एक चॉल में पूरी फैमिली रहती थी। जब घर खरीदा तो मेरे जानने वाले सभी लोग शॉक्ड थे। उन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि चॉल से सीधे बड़ी सी बिल्डिंग में घर कैसे खरीद लिया। किसी को यकीन नहीं था कि डांस करने से इतनी शोहरत भी मिल सकती है। पैर टूटा तो लगा सब कुछ खत्म हो गया जीवन में एक पल ऐसा भी आया कि जब लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। मेरा पैर टूट गया था। डांस करना नामुमकिन हो गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। मेरे ऊपर घर की जिम्मेदारी थी। अगर घर बैठ जाता तो फिर खर्चे निकालने मुश्किल हो जाते। सोचने लगा कि मेरे अंदर डांसिंग के अलावा और कौन सी स्किल है। मुझे ड्राइविंग आती थी। इतना तक सोच लिया कि अगर कुछ नहीं हो पाया तो किसी का ड्राइवर ही बन जाऊंगा। सुसाइड के ख्याल आने लगे, बिल्डिंग से कूद जाने का मन करने लगा जब पैर थोड़ा-बहुत ठीक हुआ तो लॉकडाउन लग गया। करने को कुछ नहीं था। उस वक्त डिप्रेशन में आ गया। दिमाग में उल्टे-सीधे ख्याल आने लगे। मन करता था कि बिल्डिंग से कूदकर जान दे दूं। लेकिन, यह भी सोचता कि अगर मुझे कुछ हो गया तो परिवार का क्या होगा। हालांकि, कुछ दिन बीतने के साथ चीजें बेहतर होती गईं। पैर पूरी तरह ठीक हो गया तो काम भी मिलने लगा। थोड़ी परेशानी के बाद सब कुछ ठीक हो गया। दिखने में गोरे थे, इसलिए यशराज की फिल्म नहीं मिली मैंने संजय लीला भंसाली की फिल्म बाजीराव मस्तानी के लिए ऑडिशन भी दिया था। उसमें सिलेक्ट भी हो गया था। भंसाली सर काफी खुश थे। सब कुछ फाइनल हो गया। फिर लास्ट में अचानक क्या हुआ कि सामने से मना कर दिया गया। मैं बिल्कुल टूट गया। इसी तरह यशराज बैनर की फिल्म गुंडे भी मिलते-मिलते रह गई। उस फिल्म में मुझे रणवीर सिंह या अर्जुन कपूर में से किसी एक के बचपन का रोल करना था। वह रोल सिर्फ इसलिए नहीं मिला, क्योंकि मैं दिखने में गोरा था। मेकर्स को डस्की स्किन वाले लड़के की तलाश थी। मैंने कहा भी कि मैं धूप में खेल-खेलकर खुद को सांवला कर लूंगा, लेकिन प्रोडक्शन वालों को शायद कुछ और ही चाहिए था। खैर, जो होता है, अच्छा ही होता है। जिस वक्त ये दोनों फिल्में हाथ से निकलीं, उसी समय मुझे दो अलग-अलग शोज मिल गए। उन दोनों शोज से फेम और पैसा दोनों मिल गया। पहली गाड़ी मारुति की थी, अब मर्सिडीज के मालिक मुझे बचपन से गाड़ियों का बहुत शौक था। जब मेरे पास कुछ नहीं था, तब भी मैं सिर्फ गाड़ियों के बारे में सोचा करता था। DID जीतने के बाद मैंने सेकेंड हैंड मारुति वैगन-आर खरीदी। पहली बार खुद की गाड़ी में बैठना बहुत सुखद अनुभव था। ------------------------------- सक्सेस स्टोरी का पिछला एपिसोड यहां पढ़ें.. लोग कहते थे- बच्चन की नकल करता है:भीष्म बने तो इज्जत मिली, उधार लेकर शक्तिमान बनाया तकरीबन 50 साल लंबे करियर में इन्होंने पैसों से ज्यादा आदर्शों और सिद्धांतों को तरजीह दी। करोड़ों रुपए के ऑफर ठुकरा दिए। काम मांगने के लिए किसी फिल्ममेकर के दरवाजे पर नहीं गए। पूरी खबर पढ़ें..

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