‘धुरंधर’ के लिए पाकिस्तानी नेता को फॉलो किया:राकेश बेदी बोले- किरदार में अपना ह्यूमर डाला, क्योंकि मैं कमेडियन नहीं रंग बदलने वाला आदमी हूं
एक्टर राकेश बेदी अपनी हालिया रिलीज फिल्म ‘धुरंधर’में पाकिस्तानी राजनेता जमील खान के किरदार में नजर आए हैं। दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान राकेश बेदी ने इंडस्ट्री में टाइपकास्टिंग के संदर्भ में प्रभाव पर खुलकर चर्चा की। बेदी ने बताया कि कैसे उन्होंने इस भूमिका में हल्का-फुल्का ह्यूमर जोड़ा और डायरेक्टर आदित्य धर के मार्गदर्शन में अपने अभिनय को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने अपने अभिनय के प्रति समर्पण, किरदार की तैयारी और इंडस्ट्री के बदलते माहौल पर भी बात की। पेश है कुछ खास अंश.. सवाल: आपने फिल्म ‘धुरंधर’ में जिस तरह का किरदार निभाया, वैसे किरदार में आज तक किसी ने आपको नहीं देखा था, कहना गलत नहीं होगा कि इंडस्ट्री के लोगों की भी नजर बड़ी देरी से पड़ी। क्या कहना चाहेंगे? जवाब: यह इंडस्ट्री अब टाइपकास्टिंग पर ही चलती है। मतलब, स्टार्स के लिए पहले से तय होता है कि हीरो कैसा होगा, हीरोइन कैसी, हीरोइन की बहन कैसी, और विलेन कैसे होंगे। ये सब एक तरह से रुकावट है कास्टिंग में। लेकिन अगर ध्यान से देखें तो इसमें ह्यूमर भी है। जब मैंने पूरी स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मुझे लगी कि ये फिल्म बहुत गंभीर, टेंशन वाली और जासूसी वाली है। इसमें मर्डर और स्पाई वाले तमाम मामले हैं, रोमांस बहुत कम है, और कॉमेडी लगभग नहीं है। इसलिए मैंने सोचा कि जब मैं स्क्रीन पर आऊंगा, तो लोग मुझसे थोड़ी उम्मीद जरूर करेंगे, कुछ हल्की-फुल्की हंसी या ह्यूमर की उम्मीद होगी। मैंने धीरे-धीरे उन जगहों की तलाश की जहां थोड़ा-बहुत ह्यूमर आ सके, लेकिन ज्यादा नहीं, क्योंकि मैं कॉमेडियन नहीं बल्कि रंग बदलने वाला आदमी हूं। मैं अलग-अलग रोल कर सकता हूं और इसलिए थोड़ा हंसना तो मुनासिब है। जैसे पल में मैं नमस्ते कहता हूं और अगले पल किसी और की बात करता हूं। इसलिए वह तरीका काम कर गया। सवाल: फिल्म के डायरेक्टर आदित्य धर ने आपको जमील खान के किरदार के बारे में कैसे सोचा। क्या इस बारे में उनसे चर्चा हुई थी? जवाब: फिल्म के डायरेक्टर आदित्य धर ने मुझसे इस किरदार के बारे में चर्चा जरूर की थी। जब मुझे रोल बताया गया, तो उन्होंने कहा कि ये किरदार बहुत चालाक और मौका देखकर काम करने वाला आदमी है। वह तुरंत समझ जाता है कि किसके साथ कैसे व्यवहार करना है। उसे पता है कि कब किसी के पैर के नीचे से जमीन खींचनी है और किसे आगे बढ़ाना है। ये दोनों चीजें उसे अच्छी तरह से पता हैं और जब मैं ऐसा किरदार निभाता हूं, तो उसमें अपनी बनावट और अपनी खुद की आदतें भी दिख जाती हैं। मेरा अपने काम का अंदाज कहीं न कहीं उसमें झलकता है। कुछ लोगों ने तो ये भी कहा कि जब मैं पहली बार स्क्रीन पर आता हूं, तो वे पहचान नहीं पाते कि ये राकेश बेदी हैं। सवाल: मतलब जब आपने डायलॉग बोले, तब लोग आपको पहचान गए? जवाब: हां, जब मैं पहली बार स्क्रीन पर आया, थोड़ी देर बाद लोग पहचान गए कि ये मैं हूं। मेरा गेटअप और एटीट्यूड दोनों की वजह से। बहुत मजा आया ऐसा रोल करने में, बहुत दिनों बाद। मैं आदित्य का बहुत शुक्रगुजार हूं, उन्होंने मुझे बहुत अच्छे ढंग से तैयार किया। मैं हमेशा कहता हूं कि तुम डायरेक्टर नहीं, जौहरी हो क्योंकि तुमने मुझे निखारा है। सवाल: आदित्य धर ने 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' के बाद 6 साल तक एक अच्छी फिल्म का इंतजार किया। सेट पर उनका और टीम का माहौल कैसा था, खासकर जब नए और पुराने कलाकार मिलकर काम करते हैं? जवाब: आदित्य धर बहुत शांत और कूल रहते हैं। बड़ी फिल्म के दौरान भी वह गुस्सा या तिलमिला नहीं जाते। वे कहते हैं, "फिक्र मत करो, मैं संभाल लूंगा।" वे सभी कलाकारों के साथ इज्जत से पेश आते हैं, चाहे कोई बड़ा हो या छोटा। सवाल: क्या आप का किरदार किसी पाकिस्तानी नेता से प्रेरित है? जवाब: देखिए, ये जरूरी नहीं कि पूरी तरह प्रेरित हो। मैंने कुछ पाकिस्तानी नेताओं को देखा, उनकी बात करने की शैली और हाव-भाव नोट किए। फिर उसमें से जो उपयुक्त लगा, चुना। एक नेता की आवाज भी मैंने उतार ली और उसकी स्पीच बार-बार सुनकर अभ्यास किया। कार में जाते वक्त भी उनकी लंबी-लंबी बातें सुनता रहा, ताकि मेरी आवाज में उसी असर आए। मेरी पत्नी ने पूछा, "कौन बोल रहा है?" मैंने कहा, "मेरी ही आवाज है, बस थोड़ा बदल गया है।" आदित्य जी ने कहा कि आवाज ज्यादा बदली नहीं चाहिए, ताकि फोकस और सीन की अहमियत बनी रहे। मैंने माना कि ये सही है। सवाल: आप इतने सालों से थिएटर और फिल्मों में काम कर रहे हैं, फिर भी हर किरदार के लिए पूरी तैयारी की क्यों जरूरत महसूस होती हैं? जवाब: इसका मतलब है कि अगर कोई शेफ 50 साल से खाना बना रहा है, तो वह आज खाना खराब नहीं बना सकता। आप उनसे कह सकते हैं, "साहब, आप तो 50 साल से ये काम कर रहे हैं, तो आज का खाना भी बढ़िया ही बनेगा। देखिए नमक सही है या नहीं, खाना ठीक से पका है या नहीं, ये सब ध्यान देना चाहिए। बस यूं ही चालाकी से काम नहीं चलाना चाहिए। असली प्रोफेशनल होता है जो अपने काम पर ध्यान देकर सही तरीके से करता है। सवाल: आजकल के कई एक्टर्स तैयारी कम करते हैं, आप क्या सोचते हैं? जवाब: बिल्कुल सही कह रहे हैं। मेरे सारे काम, पहली फिल्म 'चश्मे बद्दूर', से लेकर 'ये जो जिंदगी है' और 'श्रीमान श्रीमती' सीरियल तक लोगों के दिमाग में आज भी हैं, क्योंकि उस समय हम सबने खूब मेहनत की थी। इसलिए लोग मुझे याद रखते हैं। अगर मेहनत न की जाए, तो नाम नहीं रहता। सवाल: आप के दौर में ऐसा भी एक वक्त था जब प्रोड्यूसर- डायरेक्टर किसी भी एक्टर को सामने से फोन करते थे। अब सबकुछ कास्टिंग डायरेक्टर फाइनल कर रहे हैं, इस बदलते दौर को आप कैसे देखते हैं? जवाब: देखिए, बदलाव तो होता है और यह जरूरी है। क्योंकि कलाकारों की संख्या बहुत बढ़ गई है। एक रोल के लिए 100-100 लोग आ जाते हैं, इसलिए चयन प्रक्रिया जरूरी हो जाती है। मैं अपनी बात करूं तो, मैंने हमेशा अपनी शर्तों पर जीने की कोशिश की है। मैं कभी किसी के ऑफिस काम मांगने नहीं गया। किसी ग्रुप से नहीं जुड़ा कि यशराज में घुस जाऊं और उनकी फिल्में मिलती रहें। न किसी डायरेक्टर के साथ चिपककर चलने का काम किया। मैंने बस यही किया कि अगर किसी को मेरी जरूरत पड़ेगी, तो वो खुद आएगा। लेकिन उसके लिए तैयार रहना जरूरी है। तैयारी हमेशा जारी रखनी चाहिए। जैसे, मैंने अभी आदित्य धर के साथ फिल्म ‘धुरंधर’ में काम किया है। अगर वो अगली फिल्म बनाएं, तो मेरा हक है फोन करने का। भाई, फिल्म बना रहे हो? तो माहौल बन जाएगा। लेकिन जिसे मैं नहीं जानता, उसके पास कभी नहीं जाऊंगा।
from बॉलीवुड | दैनिक भास्कर https://ift.tt/8uJt12h
via IFTTT





No comments:
Post a Comment