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» » » खर्चे के लिए नदी से सिक्के निकालते थे मानव कौल:कभी टूथपेस्ट खरीदने तक के पैसे नहीं थे; फिर अक्षय-अमिताभ के साथ फिल्में कीं

‘आप स्ट्रगल की बात कर रहे हैं, मेरी तो पूरी लाइफ ही रोलर कोस्टर जैसी रही है। मैं एक ऐसे परिवार से आता हूं, जहां पर पॉकेट मनी जैसी कोई चीज नहीं थी। दो टाइम का खाना नसीब हो जाए वही बड़ी बात थी। मैंने जिंदगी का ज्यादातर समय मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में बिताया है। जब मैं पांचवी या छठी क्लास में था, तब दोस्तों के साथ नर्मदा नदी में डुबकी लगाने जाता था। वहां जो श्रद्धालु नदी में सिक्के फेंकते थे, हम सारे दोस्त उन पैसों को निकाल लेते थे और उसी से हमारे चाय-नाश्ते का जुगाड़ हो जाता था।’ दोपहर 2 बजे मुंबई के वर्सोवा स्थित अपने घर पर एक्टर, राइटर और डायरेक्टर मानव कौन अपनी सफलता तक पहुंचने की कहानी मुझे बता रहे हैं। थोड़ी देर मौन रहने के बाद मानव कहते हैं, ‘पहले मेरा पूरा परिवार कश्मीर में रहता था। फिर हम होशंगाबाद आ गए। उस वक्त मैं शायद 5वीं क्लास में था। परिवार की माली हालत बिल्कुल ठीक नहीं थी। पिता जी मुझे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का खर्चा भी अफोर्ड नहीं कर सकते थे। साल बर्बाद न हो इसलिए मेरा एडमिशन सरकारी स्कूल में करा दिया गया। मैं पढ़ाई में ठीक नहीं था, अच्छा हुआ सरकारी स्कूल में दाखिला करा दिया, वर्ना पैसे ही बर्बाद होते। (हंसते हुए) यह सुनते ही मैं उनसे पूछ बैठा- आप तो नेशनल लेवल के स्विमर भी रहे हैं? हां, यह बात सच है। एक दिन जब मैं नदी से सिक्के निकाल रहा था, तभी एक स्विमिंग कोच की नजर मुझ पर पड़ी। उन्होंने मुझे बतौर स्विमर करियर में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। मैंने नेशनल लेवल तक स्विमिंग कॉम्पिटिशन जीता है। मेरे पास कुल 14 नेशनल अवॉर्ड हैं। मजेदार बात यह है कि मुझे इसके जरिए सरकारी नौकरी भी मिलने वाली थी, लेकिन एक्टिंग के पागलपन की वजह से मुझे उसे ठुकराना पड़ा। तो कब लगा कि एक्टर बनना है? एक दिन मैंने भोपाल के भारत भवन में नाटक देखा। इसे देखने पर मेरा परिचय एक नई दुनिया से हुआ। कुछ दिन तक तो खुद को उस नाटक के बारे में सोचने से रोक ही नहीं पाया। आखिरकार फैसला किया कि अब बस एक्टिंग ही करनी है, चाहे कुछ भी हो जाए। घरवालों ने इस फैसले का विरोध नहीं किया? मैंने सबसे पहले एक्टर बनने की बात मां को बताई थी। उन्होंने मुझसे कहा था- तुम्हें अगर एक्टर बनना है तो सिर्फ उसी पर फोकस करो। बाकी सब कुछ साइड में कर दो। मां की इन बातों से मुझे बहुत भरोसा मिला और अपना ख्वाब पूरा करने के लिए मैं मुंबई निकल पड़ा। मुंबई के संघर्ष को देखकर आपको एक्टर बनने के फैसले पर पछतावा नहीं हुआ? मानव ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया, लेकिन उन्होंने मुंबई के संघर्ष के बारे में जरूर बताया। उन्होंने कहा, ‘मुंबई का संघर्ष तो वाकई थका देने वाला रहा। मैं यहां चॉल में तीन दोस्तों के साथ रहता था। फिल्मों में काम मांगने की जद्दोजहद के साथ थिएटर भी करता था। खाने-पीने की दिक्कत भी रही। मुझे याद है कि एक दिन हम तीनों दोस्तों के पास सिर्फ 75 रुपए बचे थे। कमाई का दूसरा कोई जरिया नहीं था। किसी से उधार लेने की भी हालत नहीं थी। चॉल छोड़ने तक की नौबत आ गई। तब हम तीनों मलाड में रहने वाले एक दोस्त के पास चले गए। हालांकि वे भी चॉल में ही रहते थे, लेकिन उन्होंने हमारी मदद की। उन्होंने अपने किसी परिचित के चॉल में हमारे रहने की व्यवस्था कराई। हमें रहने के लिए आसरा मिल गया। उनकी पत्नी रोज हमें खाना भी खिला देती थीं। इस घटना से यह तो समझ में आ गया कि भले काम न हो, लेकिन आप भूखे तो नहीं मर सकते। कहीं न कहीं से खाने का इंतजाम हो जाएगा। एक बार का किस्सा है कि हम तीनों में से एक की नौकरी लग गई थी। वह हर दिन 100 रुपए कमाने लगा था। हमें लगा कि उसकी नौकरी से हमारा भी भला हो जाएगा। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। एक दिन हमने देखा कि वह टूथपेस्ट से ब्रश कर रहा है। मेरे पास तो टूथपेस्ट खरीदने तक के पैसे नहीं थे। इतना ही नहीं कि उसके बैग में 700-800 रुपए भी मिले। यह देख मेरा दिल टूट गया और उसी वक्त मैं घर छोड़कर चला गया। उस दिन मुझे गत्ते पर सोना पड़ा था।’ संघर्ष के दिनों की कहानी सुनाते हुए भी मानव के चेहरे से मुस्कान गायब नहीं हुई। मानो वे कह रहे हों कि उन्होंने आज की सफलता से इन दुखों पर फतह पा ली है। बिना वक्त गवाएं मैं उनसे पूछ बैठा, आपकी यह हालत देखकर परिवार वालों का क्या रिएक्शन था? एक बार मेरा भाई कमरे में आया। कमरे की हालत देखकर वह मुझ पर भड़क गया और बोला- एक दिन झोला लेकर घूमेगा। आज के बाद कभी तेरे घर नहीं आऊंगा। वह जानता था कि मैं जिद्दी हूं, मुझे डर नहीं लगता है। यही वजह रही कि भले ही परिवार वालों के मन में थोड़ी-बहुत नाराजगी रही हो, लेकिन उन्होंने हर कदम पर सपोर्ट किया है।’ टीवी शोज में काम करने के बाद उससे दूरी क्यों बना ली? टीवी इंडस्ट्री में लोग बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं। 17-18 घंटों तक शूटिंग चलती है। इससे इंसान बहुत थक जाता है और यह थकान फ्रस्टेशन के रुप में झलकने लगती है। ठीक मेरे साथ भी हुआ। मैं टीवी शोज करके थक गया था। दिन ब दिन बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा होता जा रहा था। आखिरकार मैंने टीवी शोज में काम करने से मना कर दिया। इस वक्त तक मैं ऐसी स्टेज पर पहुंच चुका था कि सिर्फ वह काम करूंगा, जिससे खुशी मिलेगी। मैंने दुनिया के हिसाब से फैसले लेने बंद कर दिए। क्या आपने पहली फिल्म जजंतरम-ममंतरम करने के बाद एक्टिंग से ब्रेक लिया था? हां, यह सच है। पहली फिल्म के बाद मैंने कुछ समय के लिए फुल टाइम एक्टिंग से ब्रेक लिया था। थिएटर में सिर्फ राइटिंग और डायरेक्शन का काम किया। यह बात सबको मालूम है कि थिएटर में आमदनी बहुत कम है। जब पैसे बिल्कुल नहीं होते थे तब टीवी शोज में एपिसोडिक काम और फिल्मों में साइड रोल कर लेता था। मैंने बतौर जूनियर आर्टिस्ट भी काम किया है। फिर क्या ऐसी वजह थी जिसने आपको फिल्म काई पो छे में काम करने के लिए मोटिवेट किया? मैंने एक फिल्म ‘हंसा’ डायरेक्ट की थी, जो फ्लॉप हो गई। बहुत ज्यादा पैसे डूब गए। उस वक्त मुझे पैसों की बहुत सख्त जरूरत थी। तभी मुझे पता चला कि फिल्म ‘काई पो छे’ का ऑडिशन चल रहा है। मैंने भी ऑडिशन दिया और सिलेक्ट हो गया। इस फिल्म में काम करने के बाद मुझे एक्टिंग में मजा आने लगा। इस फिल्म के लिए बहुत ज्यादा तो फीस नहीं मिली थी, लेकिन थोड़ा-बहुत कर्ज जरूर कम हो गया। चॉल से निकल कर घर में रहने की हैसियत हो गई थी। आमतौर पर रिजेक्शन तो फेस करना पड़ता है। इस सिचुएशन को कैसे डील करते थे? रिजेक्शन की वजह से मुझमें आत्मविश्वास की कमी आ गई थी। अगर कोई फिल्ममेकर मुझे अपनी फिल्म में कास्ट कर लेता था, तो मैं सोचने लगाता कि इसको जरूर मुझसे कोई मतलब होगा। लोगों की तारीफ पर शक होने लगता था। क्या यह सच है कि फिल्म काई पो छे की सक्सेस पार्टी के वक्त आपके पास घर जाने तक के पैसे नहीं थे? मेरे इस सवाल पर मानव जोर-जोर से हंसने लगते हैं। कहते हैं, ‘हां यह बात भी सच है। दरअसल, फिल्म की सक्सेस पार्टी के बाद मैं रात को घर जाने के लिए होटल से निकला। जेब में हाथ डाला तो पता चला कि पास में सिर्फ 22 रुपए बचे हैं। 22 रुपए में घर जाना बिल्कुल पॉसिबल नहीं था। तब मैंने तकरीब निकाली। एक ऑटो वाले के पास गया और कहा- भैया मेरे पास सिर्फ 22 रुपए हैं। जहां तक इन 22 रुपए के हिसाब से आपकी गाड़ी चले, वहां तक मुझे ले चलो। फिर उतार देना। ऑटो वाले ने मेरी बात मान ली और आधे रास्ते ले जाकर उतार दिया। बचा हुआ रास्ता मैंने पैदल कवर किया। क्या आप मानते हैं कि फिल्म काई पो छे के बाद आपका करियर पटरी पर आ गया? हां, मैं इस बात से सहमत हूं। इस फिल्म के बाद मैंने ‘सिटीलाइट्स’, ‘वजीर’, ‘जॉली LLB 2’ और ‘तुम्हारी सुलु’ जैसी फिल्मों में काम किया। ‘वजीर’ में मुझे अमिताभ बच्चन और ‘जॉली LLB 2’ में अक्षय कुमार के साथ काम करने का मौका मिला। ‘तुम्हारी सुलु’ में मैंने विद्या बालन और सीरीज ‘फेम गेम’ में माधुरी दीक्षित जैसी बड़ी एक्ट्रेसेस के साथ काम किया। इन फिल्मों के किरदारों ने इंडस्ट्री में मुझे नई पहचान दिलाई है। अब उस स्टेज पर खड़ा हूं कि मैं किसी परिचय का मोहताज नहीं हूं। अब काम मांगने की जद्दोजहद भी नहीं करनी पड़ती। मैं अब मनमुताबिक स्क्रिप्ट चुनने के लिए भी फ्री हूं। लाइफ में भी फ्री रह सकूं इसलिए मैंने शादी भी नहीं की। (हंसते हुए) हाल में मुझे सीरीज ‘त्रिभुवन मिश्रा CA टॉपर’ में देखा गया। यह सीरीज नेटफ्लिक्स इंडिया में लगभग 5 हफ्तों तक टॉप 1 पर ट्रेंड की है। आने वाले दिनों में मेरी सीरीज ‘बारामुला’ रिलीज होने वाली है, जिसकी कहानी आदित्य धर जैसे बड़े डायरेक्टर-राइटर ने लिखी है। इसके अलावा मेरे पास फिल्म ‘सलाम नोई अप्पा’ है, जिसमें मैं फेमस एक्ट्रेस डिंपल कपाड़िया के साथ काम करूंगा। मेरी सक्सेस का एक सीक्रेट भी है। मैंने अपने खर्चे बहुत कम कर दिए हैं। ज्यादा ताम-झाम में भरोसा नहीं करता हूं। इस वजह से लाइफ बहुत आसान और खूबसूरत हो गई है…

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