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» » » लोग बिना फोटो देखे रिजेक्ट कर देते:घर में चूहे दौड़ते, 6 लोगों के साथ रहना पड़ता; कोविड में मसीहा बने, अब दूसरी इनिंग शुरू

हौसला रख एक समय ऐसा आएगा, जब घड़ी किसी और की होगी और समय तेरा बताएगा… यह लाइन उस आउटसाइडर एक्टर पर सटीक बैठती है, जिसे आज गरीबों का मसीहा कहा जाता है। हम बात कर रहे हैं सोनू सूद की। ऑडिशन के दौर में लोग इनकी फोटो बिना देखे ही रिजेक्ट कर देते थे। हालांकि यह आत्मविश्वास ही था कि उन्होंने सपनों से समझौता नहीं किया। पंजाब की गलियों से निकलकर सोनू सूद ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई। सलमान खान-शाहरुख खान के साथ फिल्मों में काम किया। कोविड के दौर में वे आम लोगों के मसीहा बन कर उभरे। कभी फिल्मों में काम के लिए तरसने वाले सोनू ने हाल ही में डायरेक्शन में डेब्यू किया है। सोनू के संघर्ष से सफलता तक की कहानी, उन्हीं की जुबानी… पिता चाहते थे इंजीनियर बने, दोस्तों के कहने पर एक्टिंग लाइन में आए सोनू के पिता कपड़े की दुकान चलाते थे। हालांकि उनकी ख्वाहिश थी कि बेटा इंजीनियर बने। पिता के इसी सपने को पूरा करने के लिए सोनू मोंगा की गलियों से निकलकर नागपुर पहुंचे। यहां उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई करने के साथ सोनू फैशन शो में हिस्सा लेने लगे। पॉपुलैरिटी मिलने पर दोस्तों ने सुझाव दिया कि उन्हें एक्टिंग में भी ट्राई करना चाहिए। दोस्तों का कहना मान वे 1996 में सपनों की नगरी मुंबई आ गए। ऑडिशन के सफर में बहुत रिजेक्शन मिले मुंबई पहुंचते ही सबसे पहले फिल्म सिटी गए। गेट पर गए तो वॉचमैन अंदर घुसने नहीं दे रहा था। सोनू ने 400 रुपए घूस दी और अंदर गए। उस वक्त फिल्म सिटी में आमिर खान की फिल्म 'राजा हिंदुस्तानी' की शूटिंग चल रही थी। सोनू ऐसे ही टहलने लगे, इस सोच में कहीं किसी डायरेक्टर-प्रोड्यूसर की नजर पड़ गए। हालांकि किसी ने देखा तक नहीं। सोनू को लग गया कि यहां डगर आसान नहीं होने वाली। सोनू ने कहा, 'मुझे लगता था कि मुंबई की सड़कों पर चलते-फिरते डायरेक्टर्स एक्टर्स को कास्ट कर लेते हैं। मैंने फिल्म सिटी में बहुत चक्कर भी लगाए। हालांकि ऐसे बिल्कुल बात नहीं बनी। फिर ऑडिशन का सिलसिला शुरू हुआ। बहुत रिजेक्शन मिले, लेकिन खुद पर भरोसा था। मुझे मालूम था कि सब अच्छा होगा, बस मेहनत जारी रखना है।' लोगों को अपनी फोटो दिखाते, सामने वाला उस पर ध्यान भी नहीं देता था सोनू ने आगे कहा, ‘मैंने बोरीवली से चर्चगेट के लिए ट्रेन का पास बनवाया था। हर दिन काम पाने के लिए एक जगह से दूसरी जाता था। काफी सारी फोटोज खिंचा कर अपने पास रख ली थीं। मैं डेली किसी न किसी स्टूडियो जाकर अपनी फोटोज दे देता था। हालांकि वहां मेरी तरफ कोई देखता भी नहीं था। बस कहते कि फोटो रखिए और जाइए। मैं सोचता था कि कम से कम एक बार देख तो लेना चाहिए।’ 6 लोगों के साथ एक छोटे कमरे में रहते थे सोनू महज 5500 रुपए लेकर मुंबई पहुंचे थे, जो उनकी खुद की कमाई थी। उन्हें लगा था कि इतने पैसे में वे 1-2 महीना आसानी से गुजार लेंगे। हालांकि ये पैसे सिर्फ 6-7 दिन में ही खत्म हो गए। वे घर से बहुत ज्यादा मदद नहीं लेना चाहते थे। ऐसे में उन्होंने 6 लोगों के साथ एक छोटे से कमरे में रहकर गुजारा किया। सोनू ने कहा, 'शुरुआत में मैंने एक घर किराए पर लिया था। मकान मालिक ने मुझसे हर महीने का लगभग 4 हजार रुपए किराए मांगा था। लगा कि सिर पर छत हो गई है, बस काम के लिए मेहनत करनी है। सारा काम निपटाने के बाद जैसे मैं सोने गया तो देखा कि लाइट के तारों पर बहुत सारे चूहे दौड़ रहे हैं। ये देख मेरे होश उड़ गए। मैं झट से घर से बाहर निकल गया। सोचने लगा कि क्या घरवालों से पैसे लेकर अच्छा घर ले लूं या बस स्ट्रगल करता रहूं। बहरहाल, मैंने 3-4 साल में लगभग 28-30 घर बदले थे।' मुंबई में काम नहीं मिला तो साउथ की तरफ रुख किया मुंबई में सोनू को बड़े ब्रेक का इंतजार था। कई महीनों तक मुंबई में रिजेक्शन का सामना करने के बाद सोनू हैदराबाद पहुंचे। यहां उन्हें काम मिलना शुरू हो गया। सोनू को साल 1999 में तमिल फिल्म काल्लाझगर और नैंजीनीले से डेब्यू करने का मौका मिला। सोनू ने कहा, 'जब मुझे पहली फिल्म मिली थी, तो मैं खुशी से झूम उठा था। लगा था कि आखिरकार मुझे वो मिल गया, जिसका इंतजार था। इस दिन बहुत बारिश हो रही थी, उसी बारिश में मैं मोबाइल बूथ पर गया और घरवालों-दोस्तों को इस कामयाबी की जानकारी दी।' फिल्म के पोस्टर्स पर क्रेडिट नहीं मिलता था फिल्मों में आने के बाद सोनू के साथ कई बार ऐसा हुआ कि उन्हें लास्ट मोमेंट पर फिल्म के पोस्टर्स से हटा दिया गया। ट्रेलर में बहुत कम स्क्रीन टाइम दिया गया। ट्रेलर लॉन्च में सबका नाम बोला गया, बस उन्हें छोड़ दिया गया। सोनू ने कहा कि यह सब घटनाएं उन्हें कमजोर नहीं बल्कि मजबूत बनाती थीं। सोनू का मानना है कि कहीं न कहीं लोग उन्हें देखकर इनसिक्योर होते थे, तभी जानबूझकर साइडलाइन कर देते थे। एक्टिंग के रास्ते में सोनू सूद को तमाम परेशानियों से जूझना पड़ा, लेकिन वे आगे बढ़ते गए। टैलेंट को देखते हुए उन्हें फिल्मों में विलेन की भूमिका निभाने का मौका मिला। साल 2002 में सोनू ने बॉलीवुड फिल्म शहीद-ए-आजम में भगत सिंह की भूमिका निभाकर सबका दिल जीत लिया। पहले डायरेक्टर ने पोर्टफोलियो देखने से मना किया, बाद में उसी ने फिल्म ऑफर की सोनू ने बताया कि एक दिन वे एक सेट पर पहुंचे थे, जहां किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी। उनके पास पोर्टफोलिया था और तब तक उन्होंने साउथ की दो फिल्मों में काम भी कर लिया था। उन्होंने जाकर डायरेक्टर से बात की और अपना वर्क एक्सपीरियंस भी बताया। उन्होंने डायरेक्टर से गुजारिश कि वो उनका पोर्टफोलियो देख ले, लेकिन डायरेक्टर ने मना कर दिया। कुछ साल बीत जाने के बाद जब सोनू सूद का इंडस्ट्री में नाम हो गया तो वही डायरेक्टर उन्हें अपनी फिल्म में कास्ट करने से लिए उनके आगे-पीछे चक्कर लगा रहे थे। एक्टर ने बताया कि डायरेक्टर को खुद इस घटना की जानकारी अभी तक नहीं है। जिस मैगजीन ने कभी फोटो छापने से मना किया, बाद में खुद उसी ने पहल की कुछ साल पहले स्टारडस्ट मैगजीन ने सोनू सूद का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू अपने कवर पेज पर छापा था। ये वही मैगजीन थी जिसने सोनू की तस्वीरों को अपनी मैगजीन में प्रिंट करने से इनकार कर दिया था। इंटरव्यू सामने आने के बाद सोनू ने इसे रीपोस्ट करते हुए लिखा था- एक दिन था, जब पंजाब से मैंने अपने कुछ फोटो स्टारडस्ट के ऑडिशन के लिए भेजे थे, लेकिन मुझे रिजेक्ट कर दिया गया। आज स्टारडस्ट का शुक्रिया करना चाहता हूं, इस प्यारे कवर के लिए। आभार। फिल्मों में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने के बाद सोनू सूद ने कोविड-19 के दौरान देश सेवा की पहल की। जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था, तब उन्होंने गरीब अप्रवासियों को उनके घर पहुंचाने में मदद की थी। उन्होंने फाइनेंशियल और मेडिकल सपोर्ट भी मुहैया कराया था। अभी भी सोनू चैरिटी फाउंडेशन के जरिए जरूरतमंद लोगों की मदद करना जारी रखते हैं। इस बारे में उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि खुद से जुड़े रहने के लिए यह सब करना जरूरी होता है। मेरी मां कहती हैं- अपनी जिंदगी की कलम से दुआओं की स्याही डाल लो, फिर तुम्हारा नाम पन्नों पर नहीं, इतिहास में लिखा जाएगा। जब आप दुआएं कमाते हैं, तो लोग घर में बैठकर आपके लिए दुआ करते हैं। यह सब इसी का असर है। मेरी कोशिश रहती है कि दुआएं मिलती रहें। बाकी ऊपरवाला मंजिल दिखा ही देगा और फतेह करवा ही देगा।' बॉलीवुड से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें... मॉडल जेसिका लाल हत्याकांड:एक पैग के लिए गोली मारी, 33 गवाह मुकरे; केस लड़ने वाली बहन सबरीना 3 साल पहले नहीं रहीं ये कहानी है दिल्ली की जानी-मानी मॉडल जेसिका लाल की। वही जेसिका लाल, जिनकी हत्या सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने एक रईसजादे को एक पैग शराब परोसने से इनकार कर दिया। वही जेसिका जिनके हत्याकांड पर 2011 में सुपरहिट फिल्म नो वन किल्ड जेसिका बनी थी। इस फिल्म का टाइटल ही जेसिका की कहानी बयां करता है। पढ़ें पूरी खबर...

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