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» » » रियलिटी शो लाफ्टर शेफ की मेकिंग:28-30 कैमरे, 600-800 मिनट फुटेज और 75-80 मिनट की एंटरटेनमेंट डिश; जानिए पर्दे के पीछे की दिलचस्प कहानी

टीवी पर ‘लाफ्टर शेफ’ देखना जितना मजेदार लगता है, उतना ही दिलचस्प इसका पर्दे के पीछे का सफर भी है। हाल ही में दैनिक भास्कर को इस शो के सेट पर जाकर इसकी मेकिंग को करीब से देखने का मौका मिला। कैमरे के सामने एक्टर्स जब कुकिंग करते हुए मजेदार किस्से सुनाते हैं, तो उनके हंसने-हंसाने की मेहनत असल में हफ्तों की प्लानिंग और घंटों की एडिटिंग से होकर गुजरती है। सोचिए, एक एपिसोड बनाने के लिए 28-30 कैमरे लगते हैं, 600-800 मिनट का फुटेज रिकॉर्ड होता है और फिर उसमें से बेस्ट मोमेंट्स चुनकर 75-80 मिनट की एंटरटेनमेंट डिश तैयार की जाती है। लेकिन यह सब कैसे होता है? आइए जानते हैं इस शो के क्रिएटिव डायरेक्टर पूनम संधर ठाकुर, राइटर वन्कुश अरोड़ा और कुछ कंटेस्टेंट्स से— क्रिएटिव टीम की मेहनत के बिना अधूरा शो पूनम कहती हैं, ‘सच बताऊं, तो यह शो वैसा है ही नहीं कि एक इंसान अपने कंधों पर पूरी जिम्मेदारी ले। हम बहुत लकी हैं कि हमारे पास एक शानदार टीम है। यह बहुत मजेदार शो है, लेकिन इसमें सातों दिन काम करना पड़ता है। किसी भी समय चार से छह एपिसोड्स पर एकसाथ काम चल रहा होता है। काम बहुत है, लेकिन जब रिजल्ट अच्छे आते हैं, तो सारी मेहनत सफल लगती है।’ कैसे प्लान होता है एक हफ्ते का शो? हमारी शूटिंग हफ्ते में एक बार होती है। जैसे अगर मंगलवार को शूटिंग होनी है, तो बुधवार से अगले दो एपिसोड्स की प्लानिंग शुरू हो जाती है। हम थीम डिस्कस करते हैं, यह तय करते हैं कि किस तरह का खाना बनेगा। अगर कोई त्योहार आने वाला हो, तो उस हिसाब से मेन्यू प्लान होता है। हमारे शो में सेलेब्रिटी गेस्ट कम बुलाए जाते हैं, क्योंकि हमारे 12-14 स्टार्स ही अपने आप में काफी एंटरटेनिंग हैं। हम उनके कन्वर्सेशन थ्रेड्स डिस्कस करते हैं, क्योंकि हमारा शो स्क्रिप्टेड नहीं है, तो बैकएंड प्लानिंग बहुत जरूरी हो जाती है। फूड टीम का अहम रोल खाने का चयन बहुत सोच-समझकर किया जाता है। हमारी फूड टीम हमें बताती है कि कौन-सा डिश बनाने में ज्यादा वक्त लगेगा, कौन-सा मेन्यू हमारे कंटेस्टेंट्स के लिए सही रहेगा। हर डिश की ट्रायल बैक किचन में होती है, जहां हमारी शेफ आदिती चेक करती हैं कि मार्केट में सही इंग्रेडिएंट्स उपलब्ध हैं या नहीं। एंटरटेनमेंट का तड़का यह शो अनस्क्रिप्टेड है, इसलिए कई बार सब कुछ इतना मजेदार हो जाता है कि कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी कंटेस्टेंट खाना बनाना ही भूल जाते हैं और मस्ती-मजाक में लग जाते हैं। तब हमारे पास इतना कंटेंट इकट्ठा हो जाता है कि डिसाइड करना मुश्किल हो जाता है कि क्या रखना है और क्या हटाना है। शो में हंसाने की जिम्मेदारी किसकी? किसी को कोई बंधन नहीं है कि उसे सिर्फ शायरियां बोलनी हैं या जोक्स सुनाने हैं। सभी कंटेस्टेंट्स अपने हिसाब से परफॉर्म करते हैं। लेकिन कभी-कभी जब किसी का मूड डाउन हो जाता है, तो कृष्णा और भारती उनकी एनर्जी बढ़ाने में मदद करते हैं। सबकी पर्सनैलिटी अलग-अलग है, इसलिए हर कोई अपने जोन में सहज रहता है। ‘लाफ्टर शेफ’ के सेट की इनसाइड स्टोरी जब आप शो में होते हैं, तो आपकी नजरों के सामने जितना कुछ दिखाई देता है, उससे कहीं ज्यादा कुछ उस कमरे में होता है, जहां हम शो की निगरानी कर रहे होते हैं। इस कमरे को हम क्रिएटिव कंट्रोल रूम (CCR) कहते हैं। यहीं पर हमारी क्रिएटिव टीम मौजूद होती है, जो हर एक मोमेंट पर नजर रखती है। हमारे पास 28-30 कैमरे होते हैं, जो हर मूवमेंट को रिकॉर्ड करते हैं, ताकि कुछ भी मिस न हो। इसके अलावा, एक साउंड रूम भी है, जहां 14 लोगों की आवाजें रिकॉर्ड की जाती हैं। इन सभी पहलुओं के बीच, प्रोडक्शन कंट्रोल रूम (PCR) की तकनीकी टीम इस पूरे शो की मॉनिटरिंग करती है, ताकि हर चीज सही तरीके से चल सके। एक एपिसोड को तैयार होने में कितना वक्त लगता है? हम एक एपिसोड को शूट करने में करीब 4.5 घंटे लगाते हैं और ऑडियंस के सामने वह 75-80 मिनट का बनकर आता है। हर एपिसोड के लिए हमें लगभग 600-800 मिनट का फुटेज मिलता है। एडिटिंग टीम इस फुटेज को 75-80 मिनट के एपिसोड में ढालती है। एडिटिंग टीम दिन-रात मेहनत करती है और हमें एक एपिसोड एडिट करने में कम से कम 5 दिन लगते हैं। क्या एडिटिंग में एक्टर्स की पॉपुलैरिटी मायने रखती है? जो कंटेंट अच्छा होगा, वही शो में दिखेगा। अगर कोई बहुत पॉपुलर एक्टर है, लेकिन शो में कुछ बोल ही नहीं रहा, तो उसे एडिट में रखना मुश्किल हो जाता है। इसीलिए वही कंटेंट चुना जाता है, जो एपिसोड को और मजेदार बना सके। शो रनिंग के असली राज, राइटर वन्कुश अरोड़ा की जुबानी: बिना स्क्रिप्ट, लेकिन प्लानिंग जरूरी शो स्क्रिप्टेड नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि प्लानिंग की जरूरत नहीं होती। हम पॉइंटर्स बनाते हैं ताकि रिश्तों की गहराई दिखे, नए मोमेंट्स जुड़ें और फैमिली वाइब बनी रहे। स्क्रिप्टेड शो में इमोशंस पहले से तय होते हैं, लेकिन हमारे यहां हर इमोशन खुद-ब-खुद उभरता है – यही इसकी असली खूबसूरती है। राइटिंग टीम की सबसे बड़ी चुनौती? लिखना ही नहीं मैंने कई शो लिखे हैं, लेकिन यह शो बिल्कुल अलग है – यहां हमें कुछ भी लिखने की जरूरत नहीं पड़ती। 12 सेलिब्रिटीज, एक होस्ट और एक शेफ के साथ शूटिंग होती है, तो हमें सिर्फ यह देखना होता है कि खाने के साथ ऐसा क्या एंटरटेनमेंट निकले जो ऑडियंस को बांध कर रखे। कंटेंट कहां बढ़ाना है, कहां रोकना है – यह सब ऑन द स्पॉट तय होता है। हर एपिसोड को ताजा और मजेदार बनाए रखना अगर खुद हमें लगे कि कंटेंट रिपीट हो रहा है, तो मजा ही खत्म हो जाएगा। इसलिए हर एपिसोड नया दिखे, इसके लिए हमारी पूरी टीम दिन-रात मेहनत करती है। शूटिंग के दौरान ही अगले एपिसोड का आइडिया प्लान होने लगता है। लेकिन कहते हैं न, मेहनत और अनुभव के साथ कुछ न कुछ मैजिक हो ही जाता है। बिना स्क्रिप्ट के शो को चलाने वाली टीम इस शो की ताकत इसकी टीम है। राइटिंग टीम के विवेक, प्रज्वल, महेश भल्ला जैसे कई लोग इसमें शामिल हैं। हम स्क्रिप्ट नहीं लिखते, सिर्फ आइडियाज क्रैक करते हैं। कंटेस्टेंट्स को हल्के-फुल्के पॉइंटर्स दिए जाते हैं, लेकिन उनकी रिएक्शन नेचुरल होते हैं। एडिटिंग टीम के लिए भी यह बड़ी चुनौती होती है – हर कंटेस्टेंट की स्टोरी को बैलेंस और एंटरटेनिंग बनाए रखना। लास्ट मिनट पर बताया जाता है कि क्या बनाना है: शेफ हरपाल सिंह, शो के जज इस शो की खूबसूरती यही है कि हमें कोई तैयारी का वक्त नहीं मिलता। लास्ट मिनट पर बताया जाता है कि क्या बनाना है, कई बार तो पैंट्री में खड़े-खड़े डिसाइड करना पड़ता है। कंटेस्टेंट्स को भी पहले से कोई गाइडेंस नहीं मिलती - जब मैं डिश अनाउंस करता हूं, तभी उन्हें पहली बार पता चलता है। शूटिंग के दौरान हमें सिर्फ हल्की-फुल्की जानकारी मिलती है, बाकी सब ऑब्जर्वेशन और एक्सपीरियंस से निकालना होता है। मुश्किल रेसिपीज भी चैलेंज की तरह होती हैं, लेकिन हमारा मकसद सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं, बल्कि ऑडियंस को सही गाइड करना भी है। सुबह 7 बजे सेट पर होती हूं, शूटिंग रात 2-3 बजे तक चलती है: मनारा चोपड़ा, कंटेस्टेंट इस शो में कुछ भी पहले से तैयारी नहीं होती - हम सेट पर पहुंचते ही थीम के बारे में जानते हैं, उसी वक्त डिसाइड होता है कि क्या बनने वाला है। मैं सुबह 7-7:30 बजे सेट पर पहुंचती हूं, और शूटिंग कभी 2-3 बजे रात तक भी चलती है। रेडी होने में सबसे ज्यादा वक्त बालों पर जाता है, खासकर इंडियन वियर में, लेकिन मेकअप में ज्यादा देर बैठना मुझे पसंद नहीं। कुकिंग सिर्फ शो के लिए नहीं करनी होती, बल्कि सही से सीखनी पड़ती है। अब तो मेरी सोशल मीडिया फीड में भी कुकिंग वीडियोज ज्यादा दिखने लगे हैं - शो ने सोच ही बदल दी है। कलर्स प्रवक्ता 'लाफ्टर शेफ्स' का आइडिया कुकिंग और कॉमेडी को नेचुरल तरीके से जोड़ने से आया, जहां सेलिब्रिटीज सिर्फ खाना नहीं बनाते, बल्कि हंसी का जायका भी परोसते हैं। 'डिनरटेनमेंट' यानी 'डिनर + एंटरटेनमेंट' का यह कॉन्सेप्ट इस विचार से निकला कि परिवार और दोस्तों के साथ बिताया सबसे मजेदार वक्त वही होता है जब खाने के साथ हंसी-मजाक भी हो। सबसे बड़ी चुनौती थी कि सेलिब्रिटीज ना सिर्फ मजाकिया माहौल बनाए रखें, बल्कि सच में खाना भी बनाएं। हमने स्क्रिप्टेड जोक्स की बजाय सिचुएशनल ह्यूमर और उनकी केमिस्ट्री पर फोकस किया। शूटिंग के दौरान कई मजेदार लम्हे बने - कोई गेहूं का आटा और मैदा नहीं पहचान पाया, तो किसी को सूजी देखकर समझ नहीं आया कि यह क्या है। किचन की अफरातफरी और अनप्लान्ड कॉमेडी ने शो को और भी दिलचस्प बना दिया। हमें भरोसा था कि कुकिंग + कॉमेडी का यह फॉर्मेट ऑडियंस को पसंद आएगा। जब इसे ऑडियंस के बीच टेस्ट किया गया, तो शानदार रिस्पॉन्स मिला। यहां कोई प्रोफेशनल शेफ नहीं, बस मस्ती और हंसी है।

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