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» » » सिंगिंग रियलिटी शो में सचेत-परंपरा बने मेंटर्स:म्यूजिक इंडस्ट्री में बदलाव पर बोले- यहां टीमवर्क की कमी, सब अपनी-अपनी राह पर चल रहे हैं

सिंगिंग रियलिटी शो 'सा रे गा मा पा' का नया सीजन शुरू हो चुका है। शो में म्यूजिक कंपोजर-सिंगर जोड़ी सचेत और परंपरा बतौर मेंटर्स शामिल हुए हैं। हाल ही में दोनों ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान अपने अनुभव शेयर किए। 'सा रे गा मा पा' का हिस्सा बनकर आपको किस तरह की प्रेरणा मिली है? परंपरा: मैं इस शो का हिस्सा बनकर बहुत खुश और मोटिवेटेड महसूस कर रहा हूं। यह केवल हमारे लिए नहीं, बल्कि सभी कंटेस्टेंट्स के लिए भी एक शानदार अनुभव है। 'सा रे गा मा पा' एक खास शो है, जो संगीत के क्षेत्र में अपनी पहचान रखता है। मैंने इसे अपने बचपन से देखा है और हमेशा से इसका हिस्सा बनना चाहता था। जब हमें इस शो का मौका मिला है, तो यह हमारे लिए एक सुनहरा अवसर है। यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां हम अपने सपनों को सच करने का एक और कदम बढ़ा रहे हैं। रियलिटी शो टैलेंट्स के लिए कितना मायने रखता है? सचेत: रियलिटी शो टैलेंट के लिए बहुत जरूरी हैं। जब कंटेस्टेंट इस शो में आते हैं, तो वे केवल अपने गाने नहीं गाते, बल्कि अपनी प्रतिभा को निखारने और सुधारने का मौका भी पाते हैं। हर दिन जो वे यहां बिताते हैं, वह उनके लिए सीखने और अपने कौशल को बढ़ाने का एक अनमोल अवसर होता है। इस दौरान उन्हें जो भी फीडबैक मिलता है, वह उनकी जर्नी को और भी आसान बनाता है। क्या आप लोगों को इंडस्ट्री में किसी तरह का चैलेंज का सामना करना पड़ा है? परंपरा: हां, मुझे लगता है कि सबसे बड़ा चैलेंज यह था कि हमें अपनी ओरिजिनलिटी कैसे ढूंढनी है। जब हम शुरुआत कर रहे थे, तो हमें यह समझना था कि अगर हम सच में ओरिजिनल हैं, तो हमें जल्दी से नोटिस किया जाएगा। शुरुआत में, हमें यह समझने में वक्त लगा कि हमारे गाने कितने अलग और खास होने चाहिए। यह एक बड़ा चैलेंज था। पहले तीन-चार साल हमारे लिए काफी मुश्किल थे, लेकिन हमने मेहनत पर ध्यान दिया और अपने लक्ष्यों से नहीं भटके। हमने अपने काम पर फोकस किया और खुद को साबित करने के लिए मेहनत की। इंडस्ट्री में कौन सा बदलाव लाना जरूरी है? सचेत: पहले लोग एक साथ बैठकर काम करते थे, जो कि बहुत अच्छा था। अब लोग ज्यादातर अपनी-अपनी राह पर चल रहे हैं, और यह मुझे ठीक नहीं लगता। मैं चाहता हूं कि सभी क्रिएटर्स फिर से एक साथ मिलकर गाने बनाने की प्रोसेस में लौटें। पहले जैसे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और अन्य म्यूजिशियंस जब एक साथ बैठकर काम करते थे, तब एक बेहतरीन तालमेल बनता था। परंपरा: हां, जब सभी म्यूजिशियंस और डायरेक्टर्स एक साथ बैठते थे, तो एक टीम बनती थी। सब मिलकर गाने लिखते थे और फिर उसे नया रूप देते थे। यह पूरी प्रोसेस काफी मजेदार और प्रेरणादायक होती थी। अगर हम फिर से इस प्रोसेस को अपनाएं, तो यह बहुत फायदेमंद होगा। क्या आप मानते हैं कि क्रियेटिव टीम को एकजुट होकर काम करना चाहिए? सचेत: बिल्कुल। मुझे पता है कि जिनका म्यूजिक वर्क पिछले कुछ सालों में किया गया है, उनकी टीमें मेहनती होती हैं। वे काफी बैठकों में हिस्सा लेते हैं, क्योंकि क्रिएशन एक बार में नहीं आता। हर गाना एक जर्नी होती है, और इस जर्नी में सहयोग बहुत जरूरी है। जब हम एक साथ बैठते हैं, तो हमारे विचारों का आदान-प्रदान होता है, और इससे हम और बेहतर नतीजे पा सकते हैं। परंपरा: अगर हम पुराने तरीके से काम कर पाते हैं, तो बहुत अच्छा होगा। जब प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और क्रिएटर्स सब मिलकर एक साथ काम करेंगे, तो असली म्यूजिक बनाने की प्रोसेस कभी भी थकाऊ नहीं होगी। इससे न केवल हमारी क्रिएटिविटी बढ़ेगी, बल्कि ऑडियंस को भी असली और दिल से बना संगीत सुनने को मिलेगा।

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