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» » » 9वीं क्लास में रूई बेचने का काम किया:कम उम्र में सिगरेट-गुटखे की लत लगी थी; पंचायत सीरीज नहीं करना चाहते थे ‘विनोद’ अशोक पाठक

देख रहा है विनोद…. सीरीज पंचायत के इस छोटे से डायलॉग से विनोद का कैरेक्टर बड़े लेवल पर घर-घर में पॉपुलर हो गया। विनोद का किरदार निभाने वाले अशोक पाठक को इस बात का अंदाजा नहीं था। वे तो इस सीरीज में काम करना भी नहीं चाहते थे। हरियाणा में जन्मे अशोक का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। कम उम्र से ही उन्होंने कमाना शुरू कर दिया था। ऐसी बुरी संगत में भी आ गए थे कि सिगरेट और गुटखे की लत लग गई थी। ग्रेजुएशन करते समय अशोक का परिचय एक्टिंग से हुआ और फिर कभी वे खुद को एक्टिंग से दूर नहीं कर पाए। इस बार की स्ट्रगल स्टोरी में पढ़िए पंचायत में विनोद का रोल निभाने वाले अशोक पाठक की संघर्ष भरी कहानी…. बचपन तंगी में बीता परिवार के बारे में अशोक ने कहा, ‘मैं मूल रूप से बिहार का रहने वाला हूं। पिताजी का भरा-पूरा परिवार था, लेकिन बिहार में कमाई का कोई जरिया नहीं था। ऐसे में काम की तलाश में पिताजी हरियाणा के फरीदाबाद आ गए थे। यहीं पर मेरा जन्म हुआ था। पिताजी पहले फायरमैन (भट्टी में कोयला फेंकने वाले) का काम करते थे। परिवार में लोग ज्यादा थे, लेकिन उनकी आमदनी बेहद कम थी। इसके बाद उन्हें बॉयलर अटेंडर का काम मिला, लेकिन कमाई कोई खास नहीं बढ़ी। मैंने जब से होश संभाला था, पिताजी को संघर्ष करते हुए देखा। पता था कि पढ़ाई तो मैं कर नहीं पाऊंगा क्योंकि इसमें मन नहीं लगता था, इसलिए मैंने कम उम्र से ही कमाने का फैसला किया। हालांकि मां और पिताजी चाहते थे कि मैं पढ़ाई करूं। पढ़ाई ना करने पर कई बार तो मार भी पड़ी थी। स्कूल वाले भी मुझसे परेशान हो गए थे।’ नशे की लत लग गई थी, कभी रूई बेचते थे ‘गांव या शहर में ऐसा बच्चा होता है, जिससे मां-बाप अपने बच्चों को दूर रहने की सलाह देते हैं। अपने एरिया में मैं वो बच्चा था, जिससे बाकी बच्चों को दूर रहने की सलाह दी जाती थी। दरअसल मैं पढ़ता तो था नहीं, लेकिन घर की जिम्मेदारियों को पिताजी के साथ बांटना चाहता था। यही वजह रही कि मेरी दोस्ती कभी हमउम्र लड़कों से नहीं हुई। अपने से उम्र में बड़े लोगों के साथ उठता-बैठता था। ऐसे में मैं कुछ खराब लोगों की संगति में आ गया और सिगरेट-गुटखा की लत लग गई। घरवाले मेरी हरकतों से थक गए थे। तंग आकर उन्होंने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया था। इस वक्त मैंने छोटे-मोटे काम भी करने शुरू कर दिए थे। 9वीं क्लास में मैंने रूई बेचने का काम किया था। रोज 20-20 किलोमीटर साइकिल चला कर रूई बेचने जाता था। फिर मैंने जैसे-तैसे 10वीं पास की। इसके बाद चप्पल की फैक्ट्री में और पेंटिंग का भी काम किया। कुछ समय बाद पिताजी पूरे परिवार के साथ हिसार चले गए। वहां पिताजी को जिंदल कंपनी में नौकरी मिल गई थी, जिससे घर की आर्थिक स्थिति थोड़ी सी बेहतर हुई, लेकिन नौकरी का बहाना करके मैं फरीदाबाद में ही रुक गया। हालांकि कुछ समय बाद मुझे खाने-पीने की दिक्कत होने लगी। ज्यादा दिन भूखे ना रहना पड़े इसलिए मैंने पिताजी से कहा कि मुझे आगे पढ़ाई करनी है और उन्हीं लोगों के साथ रहना है। इसके बाद मैंने 11वीं और 12वीं की पढ़ाई हिसार में की।’ NSD में एडमिशन न मिलने पर टूट गए थे अशोक अशोक ग्रेजुएशन के साथ थिएटर करने लगे थे। 1-2 नाटक करने के बाद वे थिएटर से ऐसे जुड़े कि उन्होंने एक्टर बनने का फैसला कर लिया। इस बारे में अशोक ने कहा, ‘मैं कभी ग्रेजुएशन नहीं करना चाहता था। एक दोस्त ने कहा-कॉलेज लाइफ बहुत खूबसूरत होती है, तुम्हें बिल्कुल जाना चाहिए। उसने ही इतने सपने दिखा दिए कि बहुत जद्दोजहद के बाद मुझे एक कॉलेज में एडमिशन मिल पाया। यहां पढ़ाई करने के दौरान मेरा परिचय थिएटर से हुआ। मैंने यूथ फेस्टिवल में पार्टिसिपेट किया, जिसमें मुझे बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला। पूरी तरह से थिएटर में रमने के बाद मैं NSD से एक्टिंग के गुर सीखना चाहता था। प्राइवेट इंस्टीट्यूट नहीं जा सकता था क्योंकि आर्थिक रूप से उतना मजबूत नहीं था। मैंने 2006 में पहली बार NSD का एंट्रेंस एग्जाम दिया था, लेकिन पास नहीं हो पाया। हार-जीत तो लाइफ में होती रहती है, लेकिन इस रिजेक्शन ने मुझे बहुत तोड़ दिया था। मैं बहुत रोया था, डिप्रेशन जैसे हालात हो गए थे। इस कंडीशन में पिताजी का बहुत सपोर्ट मिला। इससे पहले तो वे खुल कर बात नहीं करते थे। तब उन्होंने मुझसे कहा था- तुम परेशान ना हो बाबू। मैं पैसे की व्यवस्था कर देता हूं, तुम मुंबई चले जाओ।’ मैं मुंबई नहीं जाना चाहता था। NSD में अपना फ्यूचर बनाना चाहता था। पिताजी के ऑफर को ठुकराने के बाद मैंने एक साल तक जिंदल कंपनी में उन्हीं के साथ काम किया। 1 साल बाद मैंने फिर से NSD के लिए अप्लाई किया, लेकिन इस बार भी निराशा ही हाथ लगी। 2 बार हार मिलने के बाद मैंने मान लिया कि एक्टर बनना किस्मत में लिखा ही नहीं है। अपने इस ख्वाब को छोड़कर मैंने दूसरी कोई नौकरी करने का फैसला कर लिया था। तभी मुझे भारतेंदु नाट्य अकादमी के बारे में पता चला। 2007 में यहां एंट्रेंस देने के बाद एडमिशन हुआ।’ ‘भारतेंदु नाट्य अकादमी से कोर्स करने के बाद मैंने मुंबई आने का फैसला किया। उस वक्त मेरे पास यहां आने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। पिताजी से भी नहीं ले सकता था। तभी एक शो मिला, जिसे डायरेक्ट करने के बदले मुझे 40 हजार रुपए मिले। उन्हीं पैसों के जरिए मेरा मुंबई आना हुआ। यहां आए मुझे 5 दिन ही हुए थे कि मुझे पहला ऑडिशन देने के बाद काम मिल गया। मैंने पहली नौकरी सोनी मैक्स चैनल में की। यहां काम के बदले 2500 रुपए मिले थे। फिर थोड़े दिन बाद मुझे डोमिनोज के ऐड में काम मिला, जिसके लिए मुझे 70 हजार रुपए मिले थे। जब डोमिनोज के ऐड का कॉल आया था, तो मुझे लगा कि कोई दोस्त मजाक कर रहा है। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े काम का ऑफर मिला है। उस वक्त मेरे अकाउंट में इतने पैसे हो गए थे, जितने मैंने पूरी लाइफ में नहीं देख थे और ना ही सोचा था कि कभी इतने पैसे कमा पाऊंगा। मुझे मुंबई आए 7 ही महीने हुए थे कि फिल्म बिट्टू बॉस में काम मिल गया। इसमें मैंने ड्राइवर का रोल निभाया था, लेकिन मेरा स्क्रीन टाइम बहुत लंबा था। इस फिल्म में काम करके लगा कि अब सब कुछ सेटल हो गया है। आगे की जिंदगी बहुत खूबसूरत बीतेगी, लेकिन इसके बाद भी एक ठोकर मिली। फिल्म बिट्टू बॉस बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गई। जहां से मैंने शुरुआत की थी, वापस वहीं चला गया। मुझे अच्छे रोल्स के ऑफर भी आने बंद हो गए। सिर्फ ड्राइवर के रोल ही ऑफर होते थे। 2014 आने तक काम की कमी हो गई। तब मैंने पंजाबी सिनेमा का रुख किया। वहां की जनता ने मुझे अपनाया। 2016 से 2020 तक मैंने पंजाबी सिनेमा में काम किया, जिससे मेरे घर में खाने-पीने की दिक्कत नहीं हुई। मैंने सेक्रेड गेम्स, 72 हूरें, रंगबाज और फुकरे रिटर्न्स जैसी फिल्मों और सीरीज में काम किया है, लेकिन जिस पहचान का मोहताज था, वो मुझे पंचायत सीरीज से मिली है।’ पंचायत में काम नहीं करना चाहते थे अशोक पंचायत सीरीज का हिस्सा बनने पर अशोक ने बताया, ‘पहला पार्ट देखने के बाद मैं सीरीज और उसकी स्टार कास्ट का फैन हो गया था। मैं बतौर दर्शक ही सीरीज का अगला पार्ट देखना चाहता था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जब मेरे पास दूसरे सीजन के विनोद के रोल के लिए ऑडिशन का कॉल आया तो मैं दुविधा में पड़ गया। इससे पहले मैंने इस तरह के कई रोल किए थे। इस वजह से मैं ये किरदार नहीं करना चाहता था। सीरीज की कास्टिंग टीम में मेरे 1-2 जानने वाले थे, जिन्होंने ऑडिशन देने के लिए बहुत जिद की। आखिरकार मुझे ऑडिशन देना पड़ा। सबको मेरा काम बहुत पसंद आया और इस तरह मैं सीरीज का हिस्सा बना।’ अशोक ने आगे कहा, ‘मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि सीरीज में मेरा छोटा सा रोल लोगों पर इतना गहरा इंपैक्ट छोड़ेगा, लेकिन जैसे सीरीज स्ट्रीम की गई, लोगों के बहुत सारे मैसेजेस और कॉल्स आने लगे। मेरा छोटा सा रोल बड़े लेवल पर पॉपुलर हो गया। लोगों का बेपनाह प्यार देख मैं इमोशनल भी हो गया था। एक वक्त ऐसा था कि घर के आस-पास के लोग एक्टर बनने पर मजाक बनाते थे। वो लोग कहते थे- अशोक ना तुम दिखते ठीक हो, ना तुम्हारी बॉडी है, एक्टर बनोगे कैसे। वही लोग आज मेरी कामयाबी देख मुझे सम्मान देते हैं और कहते हैं- हमें पता था कि तुम बेहतर काम करोगे।’

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